लोकसभा चुनाव की जीत से लौटेगा छत्तीसगढ़ के भाजपा कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास
लोकसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद मिल रहे जीत के संकेत से कार्यकर्ताओं और नेताओं में आत्मविश्वास फिर से लौटा है।
कमलेश पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ में महज चार माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में करारी हार ने भाजपा नेताओं-कार्यकर्ताओं का हौसला तोड़ दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव के संपन्न होने के बाद मिल रहे जीत के संकेत से कार्यकर्ताओं और नेताओं में आत्मविश्वास फिर से लौटा है। इससे पहले पार्टी की बैठकों में बड़े नेता आपस में लड़ते- झगड़ते दिखे। पूर्व मंत्रियों तक को कार्यकर्ताओं की भारी नाराजगी से बैठकें छोड़ भागना पड़ रहा था। इस बीच आम चुनाव का बिगुल फूंका गया तो भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने हालात तुरंत भांप लिए।
छत्तीसगढ़ में छोटे से छोटे नुकसान को भी टालने के लिए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने बड़ी सर्जरी करने का कड़ा फैसला लिया। पहले प्रदेश नेतृत्व बदला गया, फिर सभी दस सांसदों के टिकट काटे गए। इस सर्जरी ने असंतोष की धार कुंद कर दी। अगर छत्तीसगढ़ में वैसे ही नतीजे आते हैं जैसे एक्जिट पोल में सामने आए हैं तो इसका मतलब होगा कि इस राज्य में भाजपा काफी कुछ नुकसान की भरपाई करने में सफल रही है।
राज्य गठन के बाद हुए तीन आम चुनावों में भाजपा का दबदबा रहा है। 11 में 10 सीटें भाजपा जीतती आ रही है। इस बार की चुनौती बड़ी थी। भाजपा को 90 विधानसभाओं वाले राज्य में महज 15 विधायक मिले। केंद्रीय नेतृत्व ने बिना समय गंवाए प्रदेश नेतृत्व बदल दिया। दांव निवर्तमान सांसद विक्रम उसेंडी पर खेला गया। उसेंडी आदिवासी समाज से आते हैं। सभी सांसदों का टिकट काट कर यह संदेश दिया गया कि पार्टी किसी भी दशा में नुकसान नहीं चाहती। मुद्दों पर घेरेबंदी भी चरणवार बदलती रही।
पहले व दूसरे चरण के चुनाव में भाजपा ने दंतेवाड़ा विधायक भीमा मंडावी की नक्सल हमले में हत्या पर कांग्रेस को घेरा तो तीसरे चरण के चुनाव में साहू मतदाताओं को साधने का दांव खुद प्रधानमंत्री मोदी ने फेंका। भाजपा छत्तीसगढ़ पर अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती है। इस लिहाज से वह अभी भी अपनी जीत के लिए आश्वस्त नहीं होगी। उसे अभी इस राज्य में और इम्तिहान देने हैं।
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