आरक्षित सीटों पर भाजपा बनाम कांग्रेस का ट्रेंड, पिछले लोकसभा चुनाव परिणामों पर एक नजर
80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में 17 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे ज्यादा आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी।
नई दिल्ली, हरिकिशन शर्मा। दलित और आदिवासियों के मुद्दों को लेकर कई क्षेत्रीय दल राजनीति तो करते हैं, लेकिन इन समुदायों के लिए सुरक्षित सीटों पर वे पैठ नहीं बना पाये हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों पर सिर्फ दो राष्ट्रीय दलों कांग्रेस और भाजपा का ही वर्चस्व बरकरार है। हाल के चुनावों का अनुभव बताता है कि इन सीटों पर एक बार भाजपा आगे रहती है तो दूसरी बार कांग्रेस।
हालांकि, बीच-बीच में एक-दो क्षेत्रीय दल इन सीटों पर अपनी छाप छोड़ने में कामयाब भी रहे हैं। लोकसभा में 84 सीटें अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इनमें से 40 सीटें जीती थीं। भाजपा के बाद इस मामले में दूसरा स्थान तृणमूल कांगेस का था, जिसने एससी के लिए आरक्षित सीटों में से 11 सीटें जीतीं।
यह पहली बार था, जब कांग्रेस पार्टी एससी के लिए आरक्षित सीटों पर खाता नहीं खोल पाई थी। 2009 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर बिल्कुल अलग थी। इस चुनाव में एससी के लिए आरक्षित सीटों में से सर्वाधिक 30 सीटें कांग्रेस ने जीती थीं। उस चुनाव में एससी के लिए आरक्षित 12 सीटें जीतकर भाजपा दूसरे और 10 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी तीसरे नंबर पर रही।
2004 के लोकसभा चुनाव में एससी के लिए 79 सीटें आरक्षित थीं, जिसमें से भाजपा ने 18 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस की झोली में 14 सीटें गईं। इस तरह विगत तीन लोकसभा चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि दलितों के लिए आरक्षित सीटों पर इन दोनों राष्ट्रीय दलों का ही दबदबा कायम है।
हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को इन सीटों पर झटका लगा था। वहीं तृणमूल कांग्रेस एक क्षेत्रीय दल के रूप में मतदाताओं को रिझाने में कामयाब रही थी। कुछ ऐसी ही सूरत अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों की है। 2014 के लोकसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा के खाते में 27 सीटें आईं थीं। कोई अन्य दल इन सीटों पर दहाई के अंक में नहीं पहुंच सका। 2014 के लोकसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित सीटों में से कांग्रेस की झोली में सिर्फ पांच आईं जबकि बीजू जनता दल ने चार सीटों पर जीत दर्ज की। वहीं तृणमूल कांगेस व टीआरएस दो-दो और कई अन्य दलों को एक-एक सीट से ही संतोष करना पड़ा।
इसी तरह 2009 के लोकसभा चुनाव में एसटी के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कांग्रेस ने 20 और भाजपा ने 13 सीटें जींतीं जबकि बीजेडी तीन व माकपा दो सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। शेष सीटें अन्य दलों के खाते में गईं। वहीं 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने एसटी के लिए आरक्षित 41 सीट में से 15 और कांग्रेस ने 14 सीटें पर जीत दर्ज की। जबकि माकपा व झारखंड मुक्ति मोर्चा को तीन-तीन सीटों से ही संतोष करना पड़ा।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि एससी-एसटी और पिछड़ों की राजनीति करने वाले क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के मुकाबले भाजपा और कांग्रेस ऐसी सीटों के मामले में इसलिए भी आगे रहे हैं क्योंकि दोनों ही पार्टियों का फैलाव देशव्यापी है।