हिमाचल में चारों संसदीय सीटों पर कब्जे की तैयारी में जुटी भाजपा, सीएम जयराम कर रहे हैं प्रचार
हिमाचल में चारों संसदीय सीटों पर कब्जे के लिए भाजपा पूरी तरह से जुट गई है। ताे दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी प्रदेशभर में पार्टी प्रत्याशियों की जीत के लिए जुटे हैं।
धर्मशाला, नीरज आजाद। हिमाचल प्रदेश की चारों संसदीय सीटों पर कब्जे के लिए राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा पूरी तरह जुट गई है। प्रचार का जिम्मा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने संभाल रखा है। मंत्रियों व विधायकों को सख्त संदेश है कि चुनाव के बाद मंत्रिमंडल का विस्तार भी होगा और फेरबदल भी, लेकिन इसमें लीड को ही प्रमुख आधार माना जाएगा।
आगामी विधानसभा चुनाव में टिकट का पैमाना भी इसी आधार पर रहेगा। उधर, पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी 85 की उम्र पार करने के बावजूद प्रदेशभर में पार्टी प्रत्याशियों की जीत के लिए जुटे हैं। उन्होंने प्रचार के दौरान यह भी कहा था कि जो प्रत्याशी उनकी पसंद के हैं उनके लिए भी पूरी तरह प्रचार करेंगे। हालांकि बाद में उन्होंने बयान पलट दिया था। कहा था कि जो पार्टी के प्रत्याशी हैं वे उनके भी प्रत्याशी हैं। मंडी में पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा पार्टी प्रत्याशी हैं। इसी क्षेत्र से वीरभद्र सिंह संसद में प्रतिनिधित्व करते रहें हैं। उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी यहीं से सांसद रही हैं। इतिहास गवाह है कि वीरभद्र सिंह के सुखराम के साथ कभी मधुर संबंध नहीं रहे हैं।
सुखराम ने इस बार कहा था कि उन्होंने वीरभद्र सिंह से माफी मांग ली है, लेकिन प्रचार के दौरान वीरभद्र सिंह उस टीस को छिपा नहीं पा रहे हैं। मंडी संसदीय हलके में प्रचार के दौरान वीरभद्र अक्सर कहते रहे हैं कि बुजुर्गों की सजा बच्चों को नहीं दी जा सकती। सभी जानते हैं कि यह इशारा सुखराम के प्रति ही रहा है। वीरभद्र ने अधिकतर समय कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे पवन काजल के समर्थन में लगा रखा है। शुरू में वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री जयराम के खिलाफ कुछ भी कहने से बचते रहे हैं, लेकिन अब अधिकतर भाषणों में उनका निशाना जयराम ठाकुर पर ही है।
भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार व प्रेम कुमार धूमल भी अपने संसदीय हलकों से बाहर भी प्रचार में उतर गए हैं। मंत्री भी अपने-अपने क्षेत्रों में अधिक से अधिक लीड के लिए दिन रात एक किए हुए हैं। यही कारण है कि विधानसभा चुनाव में पार्टी से बागी होकर चुनाव लड़ने वाले नेताओं की भी घर वापसी की जा रही है। कांग्रेस ने भी इसी फार्मूले पर कई नेताओं की घर वापसी की है। एक-दूसरे दलों में भी सेंध लगाने की भी कोशिश की जा रही है।
कांगड़ा : कपूर बनाम काजल
शांता कुमार के चुनाव न लड़ने की घोषणा के बाद भाजपा ने प्रदेश सरकार में मंत्री किशन कपूर को चुनावी जंग में उतारा था। कपूर गद्दी समुदाय से संबंधित हैं। इस समुदाय के करीब चार लाख मतदाता हैं। पहली बार है कि बड़ी पार्टी ने इस समुदाय का कोई प्रत्याशी संसदीय चुनाव में उतारा है। कांग्रेस ने ओबीसी समुदाय से कांगड़ा के विधायक पवन काजल को चुनावी जंग में उतारा है। जब तक पवन काजल प्रत्याशी घोषित हुए तब तक कपूर संसदीय क्षेत्र का एक दौरा पूरा कर चुके थे। भाजपा ने कांगड़ा से ही ओबीसी नेता व कांग्रेस के पूर्व विधायक सुरेंद्र काकू को भाजपा में शामिल कर इस ओबीसी वर्ग को साधने के साथ ही विपक्षी दल को करारा झटका दिया है। उधर, कांग्रेस के ओबीसी चेहरा रहे पूर्व सांसद चंद्र कुमार सिर्फ अपने ही विधानसभा क्षेत्र तक सीमित हैं।
किशन कपूर व पवन काजल दोनों शांता कुमार के राजनीतिक शिष्य रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में टिकट न मिलने पर काजल निर्दलीय विधायक बने थे। इसके बाद वह अगले चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने हैं। पवन काजल अब शांता कुमार पर ही विकास कार्य न कराने के आरोप लगा रहे हैं। मतदाताओं में इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं दिख रहा है। वीरभद्र सिंह करीब सात दिन तक क्षेत्र में रहे लेकिन इसके बाद काजल को वरिष्ठ कांग्रेसियों का साथ नहीं मिल रहा है। इस संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले 17 विधानसभा क्षेत्रों में से 13 पर भाजपा का कब्जा है।
हमीरपुर : दो खिलाड़ियों में मुकाबला
बीसीसीआइ के पूर्व अध्यक्ष एवं सांसद अनुराग ठाकुर इस बार जीत का चौका लगाने की जुगत में हैं। करीब एक साल से हलके में सक्रिय रहे अनुराग प्रचार के दो दौर पूरे कर चुके हैं। यहां पर कांग्रेस ने प्रत्याशी चयन में ही काफी देर कर दी। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं तीन बार सांसद रहे सुरेश चंदेल को पार्टी प्रत्याशी बनाए जाने को लेकर पार्टी में एकमत नहीं हो पाया। कांग्रेस ने यहां पर विधायक रामलाल ठाकुर को चुनाव में उतारा है। कबड्डी और कुश्ती में दांवपेंच लगा चुके रामलाल के सामने क्रिकेट खिलाड़ी अनुराग ठाकुर हैं।
यहां दो खिलाड़ियों में रोचक जंग है। यह अलग बात है कि इस संसदीय क्षेत्र से रामलाल को तीन बार हार का मुंह देखना पड़ा है, लेकिन पिछली हार के गम को भुलाकर चुनावी अखाड़े में रामलाल भी पूरे जोश में नजर आ रहे हैं। कांग्रेस में चल रही टिकट की कशमकश के बीच चंदेल को प्रत्याशी बनाने की बात भी उछली थी। तीन बार भाजपा सांसद रहे सुरेश चंदेल भी प्रत्याशी बनने के बाद ही कांग्रेस में शामिल होना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस में ही विरोध के स्वर उठने के बाद चंदेल टिकट की दौड़ से बाहर हो गए। काफी जद्दोजहद के बाद वह कांग्रेस में शामिल हुए। चंदेल का उनके ही गृह जिले बिलासपुर में ही विरोध होता रहा। हालांकि बाद में पार्टी हाईकमान के निर्देश पर मामला शांत हुआ है लेकिन अंदरखाने विरोध की चिंगारी अभी शांत नहीं हुई है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के 17 विधानसभा हलकों में से 10 पर भाजपा, छह पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय विधायक है। निर्दलीय विधायक भाजपा सरकार का समर्थन कर रहे हैं लेकिन अभी तक वह किसी भी पार्टी के समर्थन में नहीं आए हैं।
शिमला : दो पूर्व सैनिक आमने-सामने आरक्षित
संसदीय क्षेत्र शिमला में दो पूर्व सैनिक आमने-सामने हैं। भाजपा ने इस बार सांसद वीरेंद्र कश्यप की जगह पच्छाद के विधायक सुरेश कश्यप को मैदान में उतारा है। वह दूसरी बार विधायक बने हैं। कांग्रेस ने पूर्व सासंद व सोलन के विधायक धनीराम शांडिल को प्रत्याशी बनाया है। कश्यप वायुसेना से सेवानिवृत्त हुए हैं, जबकि शांडिल कर्नल रहे हैं। शांडिल दो बार सांसद रहे हैं। पहली बार हिमाचल विकास कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते थे। दूसरी बार कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने हैं। शिमला संसदीय क्षेत्र में वीरभद्र सिंह का दबदबा रहा है, लेकिन इस बार भाजपा ने सिरमौर से प्रत्याशी उतार कर मुकाबले को कड़ा बना दिया है। ऊपरी शिमला कांग्रेस का गढ़ रहा है। रामपुर से कई बार विधायक रहे सिंघी राम कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हो चुके हैं।
ऊपरी शिमला में भाजपा काफी समय से पैठ बना रही है। सोलन से पूर्व विधायक महेंद्र नाथ सोफत ने भाजपा में घर वापसी कर ली है। मंडी में सुखराम की साख दांव पर पूर्व केंद्रीय मंत्री सुखराम के पौत्र व प्रदेश में सत्तासीन भाजपा सरकार में मंत्री रहे अनिल शर्मा के बेटे आश्रय शर्मा कांग्रेस प्रत्याशी हैं। इनकी टक्कर भाजपा प्रत्याशी सांसद रामस्वरूप शर्मा से है। रामस्वरूप काफी अरसे से जनता के बीच में हैं। सुखराम पहले पौत्र आश्रय शर्मा के लिए भाजपा से टिकट की मांग करते रहे। जब बात नहीं बनी तो कांग्रेस से टिकट हासिल कर लिया। यहां बेटा कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है, जबकि पिता भाजपा के टिकट पर विधायक। बेटे को टिकट मिलने के बाद बयानों की तल्खी के बीच अनिल शर्मा को मंत्री पद छोड़ना पड़ा। अब वह भाजपा विधायक होने के कारण बेटे के लिए चुनाव प्रचार नहीं कर पा रहे हैं। भाजपा ने अनिल को घर में ही घेरने के लिए उनके हलके से कई नेताओं को भाजपा में शामिल कर लिया है।
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