Lok Sabha Election 2019: भाजपा की किलेबंदी, कांग्रेस में लगा रही सेंध
लोकसभा चुनाव को देखते हुए गुजरात में अमित शाह ने अपने जोड़ तोड़ का खेल पहले ही शुरू कर दिया था। कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल कई नेताओं को पार्टी अपना उम्मीदवार बना सकती है।
गांधीनगर, शत्रुघ्न शर्मा। आम चुनाव से पहले भाजपा ने गुजरात में किलेबंदी शुरू कर दी है। पार्टी सभी 26 सीटों को जीतने के करिश्मे को दोहराना चाहती है। इसके लिए कांग्रेसी खेमे में सेंध लगाने से भी गुरेज नहीं है। पाटीदारों की मान मनौव्वल के साथ भाजपा कांग्रेस के अन्य कद्दावर नेताओं को अपने पाले में लाकर विधानसभा चुनाव के घाटे की भरपाई करने में जुटी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह खुद प्रदेश के मामलों को अपने स्तर पर देख रहे हैं।
गुजरात में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सौराष्ट्र के दो चेहरे कुंवरजी बावलिया व जवाहर चावड़ा को कैबिनेट मंत्री बनाने के बाद भाजपा जमीनी स्तर पर मजबूत नजर आती है। वहीं कांग्रेस में प्रदेश आलाकमान के खिलाफ ही असंतोष बढ़ रहा है जिससे और कई विधायक भाजपा में शामिल होने को श्रीकमलम पर कतार लगाए हैं। प्रधानमंत्री व भाजपा अध्यक्ष के दौरों ने राज्य में भाजपा की जड़ों को और गहरा दिया है। केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला प्रदेश के गांवों में घूमकर पार्टी व कार्यकर्ताओं को सक्रिय रखने के साथ कमजोर कड़ियों को मजबूती से जोड़ रहे हैं।
वहीं दक्षिण गुजरात व सौराष्ट्र से संबंध रखने वाले केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया ने दांडी यात्रा के जरिए पार्टी व जनता के बीच संवाद को मजबूत किया। प्रधानमंत्री मोदी अब स्टेच्यू ऑफ युनिटी को गुजरात का गौरव कहने से नहीं चूकते। भाजपा राज्य में कहीं न कहीं गांधी व सरदार की विरासत के साथ खुद को जोड़ती नजर आती है। कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया, जवाहर चावड़ा, डा आशा पटेल के भाजपा में शामिल होने व दो नेताओं को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ ही भाजपा ने सौराष्ट्र व उत्तर गुजरात में एक बार फिर अपनी पकड़ मजबूत कर ली है।
कांग्रेस के दो विधायक ध्रांगध्रा के पुरुषोत्तम साबरिया व जामनगर ग्रामीण के वल्लभ धारविया ने भाजपा का दामन थाम लिया है। चुनाव के दौरान पाटीदार आरक्षण आंदोलन, ओबीसी एकता आंदोलन व दलित अधिकार आंदोलनों के चलते पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर व दलित नेता जिग्नेश मेवाणी जरूर कुछ समय के लिए प्रदेश की राजनीति में अपना प्रभाव दिखाने लगे, लेकिन कब इनका असर समाप्त हो गया वे खुद भी नहीं समझ पा रहे ।
हालांकि, अल्पेश व जिग्नेश विधायक बनने में सफल रहे लेकिन अब उनके ही समुदाय में विरोधी गुट सक्रिय हो गए हैं। उधर हार्दिक पटेल के राजनीतिक रूप से सक्रिय होने के साथ ही पाटीदार समाज भी दूरी बना रहा है जिसके चलते अब हार्दिक कांग्रेस में शामिल होने को मजबूर हो गए। कांग्रेस की 12 मार्च को अहमदाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक शक्ति प्रदर्शन के लिहाज से शानदार रही लेकिन कांग्रेस इस ऐतिहासिक बैठक का फायदा उठाने में नाकाम रही।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व महासचिव प्रियंका गांधी गुजरात में 10 चुनावी सभाएं करेंगे ताकि भाजपा से 26 में से कुछ सीटें छीनी जा सके। पाटीदार नेता हार्दिक पटेल गाहे बगाहे कांग्रेस में शामिल हो गए तथा चुनाव लड़ने के लिए कानूनी अडचनें दूरकरने के लिए हाई कोर्ट से भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन पाटीदार समुदाय पहले की तरह उनके पीछे दीवाना होकर निकल पड़े ऐसी संभावनाएं लगभग खत्म सी हो गई है।
केंद्र सरकार की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसद आरक्षण के प्रावधान के बाद तो आरक्षण आंदोलन भी मृतप्राय हो गया। इसीलिए हार्दिक अब किसानों की कर्जमाफी व युवाओं की बेकारी को मुद्दा बना रहे हैं। कांग्रेस के ओबीसी नेता अल्पेश ठाकोर लंबे समय तक भाजपा में शामिल होने को लेकर असमंजस में रहे। अल्पेश अब कांग्रेस नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन भाजपा के पूर्व विधायक जगरूप सिंह राजपूत ने उत्तर भारतीयों के मुद्दे पर खुलकर अल्पेश के भाजपा में प्रवेश का विरोध शुरू कर दिया था। भाजपा पूरी ताकत व एकजुटता के साथ् आगे बढ रही है वहीं कांग्रेस में आंतरिक असंतोष साफ झलक रहा है।