Lok Sabha Election: जिस गांव की मिट्टी ने गढ़ी बिहार की राजनीति, वहां क्या है जमीनी हकीकत? पढ़िए भारत रत्न के गांव से ग्राउंड रिपोर्ट
Bihar Lok Sabha Election 2024 बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को जब भारत रत्न देने का ऐलान किया गया तो हर किसी ने इस फैसले का स्वागत किया लेकिन कर्पूरी ठाकुर जिस गांव से आते हैं वहां पर विकास की जमीनी हकीकत क्या है? पढ़िए बिहार की राजनीति को गढ़ने वाली समस्तीपुर के पितौंझिया (कर्पूरी ग्राम) गांव से खास ग्राउंड रिपोर्ट।
मुकेश कुमार, समस्तीपुर। पितौंझिया ...अब कर्पूरी ग्राम। कभी खेतों की पगडंडियों और झुरमुटों से होकर गिरते-पड़ते दौड़ता बिहार के समस्तीपुर लोकसभा क्षेत्र का यह गांव, जिसने दिल्ली के दिल तक दस्तक दी थी। अब विकास की राह पर भागते इस गांव की मिट्टी से गढ़ी बिहार की राजनीति इसी के इर्द-गिर्द घूमती दिखती है।
जन-जन के मन में बसा यहां का एक नाम पहले जननायक फिर भारत रत्न हो गया। वर्षों के इंतजार के बाद पिछले दिनों मरणोपरांत कर्पूरी ठाकुर को यह सम्मान दिया गया तो यहां की हवा में इसके राजनीतिक निहितार्थ भी सामने आए। अब तो भारत रत्न की मांग करने वाले बोल तो कुछ नहीं रहे, लेकिन उनकी भावभंगिमा बता रही कि हवा किधर है।
भविष्य समझ रहे, उसके अनुसार गिरेगा वोट
आज हम स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ, बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री, दो बार के मुख्यमंत्री और सांसद रहे भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर की जन्मस्थली पर हैं। यहां से राजनीति का ककहरा सीख-समझ कई अब सियासत के धुरंधर हैं। नुक्कड़ पर चाय सुरक रहे बनारसी ठाकुर कहते हैं, गांव अब पितौंझिया की गलियों से आगे निकल गया है। वह इतिहास था, आज वर्तमान है। भविष्य को समझ रहे हैं और उसी के अनुसार वोट गिरेगा। एक दौर था, जब पगडंडियों के सहारे लोग आते-जाते थे। अब तो शहर से बेहतर यह गांव है। सड़कों पर फर्राटे से गाड़ियां दौड़ती हैं। घूम लीजिए...सब दिख जाएगा।
कर्पूरी ग्राम कालेज में शिक्षक नित्यानंद ठाकुर की सुन लीजिए, भई हम तो सबसे पहले शिक्षा की ही बात करेंगे। आप उस शख्सियत की धरती पर खड़े हैं, जिसने अपना घर बनाने की जगह स्कूल बनाना जरूरी समझा। घर के लिए मंगाई गईं ईंटें उन्होंने स्कूल भवन के लिए दे दिया था। शिक्षा के प्रति उस दौर की सजगता आज तक कायम है।
वह बताते हैं कि गांव में ही प्राथमिक, माध्यमिक व हाईस्कूल खुले हैं। उच्च शिक्षा के लिए कालेज भी है। अरे भाई, गांव से बाहर भी देख लीजिए न...रामजानकी मेडिकल कालेज, पूसा केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, इंजीनियर कालेज भी तो है, रामबाबू ने ताव दिया। आप यह नहीं कह सकते कि गांव और उसके आसपास का विकास नहीं हुआ है।
रैक प्वाइंट से मिला रोजगार
उमेश सिंह कहते हैं, कर्पूरी ग्राम स्टेशन पर रैक प्वाइंट ने दर्जनों लोगों को रोजगार दिया। रामचंद्र ठाकुर कहते हैं, एक दौर था जब यहां के युवा और अधेड़ नौकरी के लिए ट्रेन भर-भर के दूसरे राज्यों में जाते थे। बाहर जानेवालों की संख्या खत्म तो नहीं हुई है, लेकिन कई लोग अब अपना काम करने लगे हैं। उन्हें गांव में बाजार मिल रहा है। गांव कृषि पर निर्भर है।
यहां सब्जी की बेहतर खेती होती है। बाजार मिलने से उत्पादकों को लाभ हो रहा है। यह सब ऐसे थोड़े हो रहा, इसके लिए विजन होना चाहिए जो अब दिख रहा है। अभी आगे-आगे देखिए क्या होता है, बस इसी रफ्तार में चलते रहिए, दाएं-बाएं मत होखिए, मनोहर प्रसाद ने समझाया।
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गलियां नहीं, 'स्ट्रीट' कहिए साहब
गेनालाल कहते हैं, यह गांव भले हो, लेकिन गलियां शहर की स्ट्रीट जैसी हैं। इतना खुला गांव है। पुल-पुलिया सभी धीरे-धीरे पक्की हो गईं। साल में दो दिन तो बड़ा उत्सव होता ही है। एक कर्पूरीजी की जयंती तो दूसरी पुण्यतिथि पर। मुख्यमंत्री समेत बड़े नेता आते हैं भाई, गांव का विकास तो होगा ही। स्टेशन पर चले आइए, कई गाड़ियां अब रुकने लगी हैं। पहले जाना पड़ता था समस्तीपुर। हम पूरे गांव की पद परिक्रमा कर लिए, अब गांव में भारत रत्न की चर्चा है। सेनुरिया देवी साफ-साफ कहती हैं, हम तो सिर्फ 'भारत रतन' को जानते हैं, बाकी आपको जो बूझना है, बूझिए...। भोट (वोट) में सब तय हो जाएगा।
कर्पूरी ग्राम व पंचायत : एक नजर
- आबादी : 15 हजार
- मतदाता : 3500
- जातीय संरचना : राजपूत, पासवान, कुशवाहा व नाई
- स्कूल व कालेज : दो प्राथमिक, एक हाई और एक प्लस टू
- अस्पताल : दो
- जिला मुख्यालय से दूरी : सात किमी
- रेलवे स्टेशन पर रुकने वाली ट्रेनों की संख्या : पांच
- सड़क मार्ग : मुजफ्फरपुर और पटना से जुड़ाव