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Khunti, Jharkhand Lok Sabha Election 2019: अर्जुन के लिए कड़‍िया के उत्तराधिकार की राह आसान नहीं; हाल-ए-खूंटी

Khunti Jharkhand Lok Sabha Election 2019. खूंटी में जीत की राह में कील-कांटों की भरमार चर्च भी सक्रिय भितरखाने चल रहा फरमान का दौर हर क्षेत्र के अपने समीकरण। पढ़ें ग्राउंड रिपो

By Alok ShahiEdited By: Published: Sat, 04 May 2019 11:31 AM (IST)Updated: Sun, 05 May 2019 03:36 PM (IST)
Khunti, Jharkhand Lok Sabha Election 2019: अर्जुन के लिए कड़‍िया के उत्तराधिकार की राह आसान नहीं; हाल-ए-खूंटी
Khunti, Jharkhand Lok Sabha Election 2019: अर्जुन के लिए कड़‍िया के उत्तराधिकार की राह आसान नहीं; हाल-ए-खूंटी

खूंटी से प्रदीप सिंह।  Khunti, Jharkhand Lok Sabha Election 2019 - जटिल भौगोलिक परिस्थितियों वाले खूंटी लोकसभा क्षेत्र में इस बार का चुनाव भी उतना ही जटिल है। कडिय़ा मुंडा के पर्याय बने इस सीट पर उनका उत्तराधिकार पाने की होड़ मे भले हीं दो मुंडा महारथी जुटे हैं लेकिन जीत की राह आसान नहीं दिखती। भाजपा के दिग्गज अर्जुन मुंडा के लिए यह क्षेत्र नया नहीं है। वे इसी संसदीय क्षेत्र के तहत आने वाले खरसावां विधानसभा क्षेत्र से ताल्लुक रखने के साथ-साथ विधानसभा पहुंचते रहे हैं।

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पूर्व के चुनावों में उन्होंने यहां प्रचार अभियान की कमान भी संभाली है। इस क्षेत्र के लोगों के मिजाज से भी वे वाकिफ हैं, तभी तो टिकट मिलने के साथ ही उन्होंने अपनी पूरी सक्रियता बनाए रखी है। उनके मुकाबले खड़े कांग्रेस के कालीचरण मुंडा ने पिछले लोकसभा चुनाव मे भी किस्मत आजमाया था। वे तीसरे स्थान पर खिसक गए थे। बदली राजनीतिक परिस्थिति ने इस बार उन्हें मुख्य मुकाबले में ला खड़ा किया है। यह संयोग है कि कालीचरण कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके सगे भाई नीलकंठ मुंडा राज्य की भाजपानीत गठबंधन सरकार में मंत्री भी हैं। नीलकंठ अपने भाई के प्रतिद्वंद्वी अर्जुन मुंडा का साथ देकर राजधर्म का निर्वाह कर रहे हैं। 

यहां का मिजाज नहीं भांप पाइएगा सर। तोरपा में सड़क किनारे चाय की दुकान पर बैठे मनोज पूर्ति कहते हैं-यहां का माहौल कुछ और है तो गांव में कुछ और। संदेश पहुंच चुका है। कमल और पंजा में कांटे की टक्कर है। जो जितना मैनेज कर पाएगा, वही जीत हासिल करेगा। कुछ लोग लोकल इश्यू उठा रहे हैं लोकसभा चुनाव में। देश का चिंता इनको नहीं है। जरा दूर खड़े दिनेश हमारी बातचीत को सुन मुस्कुराते हैं लेकिन कुछ बोलते नहीं। थोड़ा कुरेदने पर कहते हैं-टक्कर जोरदार है। अभी तय नहीं हुआ है किसे देना है वोट। जिधर ग्रामसभा का आदेश होगा, उधर वोट देंगे। इसी संडे को तय हो जाएगा सबकुछ। 

चर्च जारी कर रहा फरमान
खूंटी के चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच मुख्य मुकाबले में बैकग्राउंड से चर्च भी है। यह लोगों का मन-मस्तिष्क अपने हिसाब से निर्धारित करती है। खुले तौर पर चर्च की भागीदारी नहीं दिखती लेकिन भितरखाने पूरा कुनबा सक्रिय है। इसने भाजपा विरोध का फरमान जारी कर रखा है। इसी लिहाज से संदेश पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इससे जुड़े एक व्यक्तिने पूछने पर अपना नाम तो नहीं बताया लेकिन कहा कि संदेश भेजने के लिए हल्ला मचाने की जरूरत नहीं है। ढोल-नगाड़ा काफी है इसके लिए। सबको बताया जा रहा है कि कौन हमारे लिए अच्छा है और कौन खराब। 

नहीं लड़कर भी लड़ रहे
संयोग है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में खूंटी से जीत हासिल करने वाले कडिय़ा मुंडा और एनोस एक्का इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे। कडिय़ा मुंडा को टिकट नहीं मिल पाया लेकिन वे चुनाव में अर्जुन मुंडा की विजय सुनिश्चित कराने के लिए खूब पसीने बहा रहे हैं। वहीं पिछले चुनाव में नंबर दो पर रहे एनोस एक्का अभी जेल में बंद हैं। कहा जा रहा है कि वे जेल से ही निर्देश दे रहे। उनके संगठन का भी प्रत्याशी मैदान में है लेकिन मुख्य मुकाबले से बाहर है। उनका रूख भी इस चुनाव का परिणाम तय करने में महत्वपूर्ण साबित होगा।

खूंटी - फ्लैशबैक
जयपाल सिंह मुंडा ने इस सीट से 1952,1957,1962 में हैट्रिक लगाई।  झारखंड पार्टी से निर्मल एनम होरो ने 1971,1980 में प्रतिनिधित्व किया। कडिय़ा मुंडा पहली बार 1977 में सांसद बने। उन्हें1980 और 1984 में हार का सामना करना पड़ा। 1989, 1991, 1996, 1998 और 1999 में जीतने के बाद 2004 में सुशीला केरकेट्टा ने कडिय़ा मुंडा को हराया। 2009 और 2014 में कडिय़ा मुंडा फिर से जीते।

जो तय करेंगे जीत-हार

  • पत्थलगड़ी - इसे लेकर जनजातीय बहुल गांवों में असंतोष। वे अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करार दे रहे हैं।
  • भीतरी-बाहरी - चुनाव प्रचार में बाहरी-भीतरी प्रत्याशी का शोर। चलाया जा रहा तीखा प्रचार अभियान।
  • चर्च का रूख - सिमडेगा, कोलेबिरा, खूंटी, तोरपा आदि क्षेत्र में चर्च का ज्यादा प्रभाव। इनका रूख अहम।
  • सदानों की पसंद - आदिवासियों से इतर सदान वोटरों का रूख भी अहम। तय कर रहे अपनी रणनीति।
  • नक्सली धड़े - क्षेत्र में नक्सलियों का भी प्रभाव। उनके आदेश-फरमान का भी पड़ेगा असर।

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