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Lok Sabha Election Results 2019: बंगाल और ओडिशा में कामयाब रही शाह की रणनीति

पश्चिम बंगाल में 18 तो ओडिशा में आठ सीटों पर भाजपा को कामयाबी मिली है। भाजपा को ओडिशा में 38 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी वोट मिले हैं।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Thu, 23 May 2019 11:02 PM (IST)Updated: Thu, 23 May 2019 11:02 PM (IST)
Lok Sabha Election Results 2019: बंगाल और ओडिशा में कामयाब रही शाह की रणनीति
Lok Sabha Election Results 2019: बंगाल और ओडिशा में कामयाब रही शाह की रणनीति

नई दिल्ली, जेएनएन। पश्चिम बंगाल और ओडिशा के अभेद्य किले में कमल खिलाने की भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति सफल रही। पश्चिम बंगाल में भाजपा की जीत इसीलिए भी ऐतिहासिक है कि वहां भाजपा का न तो कोई चेहरा था और न ही पार्टी की विचारधारा का कोई इतिहास था, उसके ऊपर ममता बनर्जी ने उसे रोकने के लिए सारी सीमाएं पार कर दी थी। इसी तरह भाजपा ओडिशा में भी विपक्ष की भूमिका में आ गई है। शाह की रणनीति का नतीजा है कि भाजपा को ओडिशा में 38 फीसदी और पश्चिम बंगाल में 40 फीसदी वोट मिले, जबकि 2014 में क्रमश: 21 और 17 फीसदी वोट मिले थे।

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काम आई शाह की रणनीति
लंबे समय तक वामपंथियों के गढ़ रहे पश्चिम बंगाल में भाजपा की बड़ी शक्ति के रूप में उभरने की कल्पना तक नहीं की जाती थी। लेकिन तृणमूल कांग्रेस के सामने वामपंथी पार्टियों और कांग्रेस की स्थिति को देखते हुए अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में मजबूत विकल्प रूप में खड़ा होने का फैसला किया और अपने तीन-चार कुशल रणनीतिकारों को इस काम में लगा दिया। पश्चिम बंगाल में पार्टी को खड़ा करने की कुशल रणनीति का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि स्वाइन फ्लू होने के अमित शाह ने तय रैली को दो दिन के लिए आगे बढ़ा लिया लेकिन अपनी जगह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बुलाने के सुझाव को खारिज कर दिया। शाह का मानना था कि शुरू में ही योगी आदित्यनाथ को पश्चिम पश्चिम बंगाल में उतार देने पर जनता के बीच गलत संदेश जाएगा और असली मुद्दे गौण हो जाएंगे।

बूथ स्तर पर खड़े रहे भाजपा कार्यकर्ता
पश्चिम बंगाल में शाह ने अपने दो विश्वस्त सहयोगियों महासचिव कैलाश विजयवर्गीय और संयुक्त महासचिव संगठन शिव प्रकाश को जिम्मेदारी सौंपी। ये दोनो नेता पिछले तीन साल से लगातार प्रदेश का दौरा करते रहे। जिन्होंने धीरे-धीरे भाजपा के संगठन को बूथ स्तर से लेकर राज्य स्तर तक खड़ा किया। तृणमूल कांग्रेस की ओर से तमाम हिंसक हमलों के बावजूद वे अपने समर्थकों को यह भरोसा देने में सफल रहे कि भाजपा नेतृत्व उनके साथ खड़ा है। इसी भरोसे ने भाजपा कार्यकर्ताओं तृणमूल से लड़ने की हिम्मत दी।

पार्टी में बांग्लाभाषी नेताओं की कमी दूर 
पश्चिम बंगाल में भाजपा के लिए सबसे बड़ी समस्या बांग्ला बोलने वाले नेतृत्व की कमी की थी। कभी ममता बनर्जी के करीबी रहे मुकुल राय को लाकर भाजपा ने इस कमी को पूरा किया। इसके बाद कई दलों के नाराज नेताओं को पार्टी में शामिल कर पार्टी में बांग्लाभाषी नेताओं की कमी दूर की गई। इसी तरह ओडिशा में भी पूर्व राज्य के पूर्व आइएएस व आइपीएस अधिकारियों के साथ-साथ बीजद के नाराज नेताओं को जोड़ा गया। इसके साथ ही बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी की गई।

भाजपा का नारा 'चुपचाप, फूल छाप'
पश्चिम बंगाल और ओडिशा में बूथ स्तर पर संगठन खड़ा करने के बाद भाजपा ने मतदाताओं को लुभाने के लिए चुनाव प्रचार की आक्रमक नीति अपनाई। अमित शाह और मोदी की सबसे अधिक चुनावी रैलियों को इससे समझा जा सकता है। इसके साथ ही देश के दूसरे राज्यों से भी वरिष्ठ नेताओं को इन दो राज्यों में उतारा गया। जहां तृणमूल कांग्रेस की हिंसा से बचने के लिए भाजपा ने पश्चिम बंगाल में 'चुपचाप, फूल छाप' का नारा दिया। वहीं ओडिशा में 'राधे-कृष्ण' के नारे के सहारे मतदाताओं को समझाने की कोशिश की कि विधानसभा और लोकसभा में अलग-अलग पार्टियों को वोट देना है। राधे को लक्ष्मी बताते हुए हुए उनके आसन कमल को भाजपा के चुनाव चिह्न से जोड़ा गया, वहीं कृष्ण को शंख से जोड़ा गया, जो बीजद का चुनाव चिह्न है।

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