झारखंडः जिस कांग्रेस के नेतृत्व में चुनाव वहां अपनों में ही खटराग
Indian National Congress. झारखंड में तमाम विवादों के बीच कांग्रेस को सर्वाधिक सीटें मिली हैं। लेकिन नेताओं की आपसी रार से विपक्षी महागठबंधन में चिंता की लकीरें खिंच रही हैं।
रांची, राज्य ब्यूरो। महागठबंधन के वर्तमान स्वरूप को कांग्रेस ने मुकाम दिया है और तमाम पार्टियां लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का नेतृत्व स्वीकार कर रही हैं। कांग्रेस को इसी आधार पर सर्वाधिक सीटें भी मिली हैं लेकिन पार्टी में अपने ही एक-दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। विवादों के बीच महागठबंधन में चिंता की लकीरें खिंच रही हैं। जाहिर सी बात है कि विपक्षी पार्टियां इसपर आनेवाले दिनों में चुटकी लेंगी ही।
गठबंधन का स्वरूप राहुल गांधी तय करेंगे, प्रदेश अध्यक्ष नहीं : सुबोध
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोधकांत सहाय एक बार फिर इशारों-इशारों में प्रदेश अध्यक्ष के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है। जिला कांग्रेस के एक कार्यक्रम में पहुंचे सुबोध ने कहा कि वामपंथी पार्टियों को सीट देने अथवा नहीं देने का निर्णय प्रदेश अध्यक्ष नहीं कर सकते। कांग्रेस में इसके लिए राहुल गांधी ही अधिकृत हैं। ज्ञात हो कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा था कि इस चुनाव में वामपंथी पार्टियों के लिए सीट बचना मुश्किल है और इसकी भरपाई विधानसभा चुनाव में होगी।
मैं जो बोलता हूं उसपर राहुल गांधी की सहमति होती है : डॉ. अजय
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने सुबोधकांत सहाय के बयान पर पहले तो प्रतिक्रिया देने से इनकार किया फिर खुलकर बोले। स्पष्ट किया कि वे जो भी बोलते हैं उसके लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति होती है। डॉ. अजय ने कहा कि अभी की स्थिति में महागठबंधन की चारों पार्टी कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद इस बात पर सहमत है कि वामपंथी पार्टियों को विधानसभा चुनाव में सीट दिया जाए, लोकसभा में नहीं।
सुबोध गए झाविमो के महासम्मेलन में तो सवाल उठने लगे
राजधानी रांची के हरमू मैदान में आयोजित झाविमो के रांची लोकसभा महासम्मेलन में पूर्व केंद्रीय मंत्री सह वरिष्ठ कांग्रेसी सुबोधकांत सहाय का अचानक आना कई सवालों को जन्म दे गया। सवाल इसलिए भी क्योंकि महासम्मेलन पूरी तरह से झाविमो का संगठनात्मक कार्यक्रम था, फिर वे किन उद्देश्यों से वहां पहुंचे। चर्चा इसलिए भी क्योंकि गोड्डा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र को लेकर जहां कांग्रेस और झाविमो में रार है, वहीं यहां नजदीकी किस बात पर?
बहरहाल बात जो भी हो, लेकिन सुबोधकांत सहाय ने बाबूलाल मरांडी की तारीफ में जमकर कसीदे पढ़े। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि मरांडी की पहचान झारखंड में संघर्ष के पहले सिपाही के रूप में हैं, जिनके जनहित के कार्य भाजपा पचा नहीं सकी। भाजपा का अपना एजेंडा था, जिसे बाबूलाल कैरी नहीं कर सके और उनकी सरकार चली गई। यह भी कहा कि अगर झारखंड में महागठबंधन हुआ है तो यह बाबूलाल की देन है।बात चाहे जो भी हो, सुबोधकांत रांची लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सांसद रह चुके हैं। कांग्रेस से उनकी दावेदारी बनती हैं। इससे इतर झाविमो भी लोकसभा चुनाव में रांची सीट पर आजमाइश करता रहा है, लेकिन उसे सफलता नहीं मिली है।
महाठबंधन का स्वाभाविक नेतृत्व कांग्रेस के पास : हेमंत
कुछ राज्यों में भाजपा विरोधी गठबंधन में कांग्रेस को लेकर मची जिच के बीच झारखंड मुक्ति मोर्चा ने स्पष्ट किया है कि इसका नेतृत्व काग्रेस को ही संभालना चाहिए। झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के मुताबिक विपक्षी गठबंधन का स्वाभाविक नेतृत्व कांग्र्रेस के पास है। झारखंड सरीखे राज्य में महागठबंंधन का फार्मूला देश के अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सकता है। हेमंत सोरेन चार दिनों की उत्तरी छोटानागपुर की संघर्ष यात्रा से वापस लौटने के बाद दिल्ली केदौरे पर हैं।
संभावना जताई जा रही है कि वे वहां कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं। हेमंत सोरेन ने कहा है कि झारखंड में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कांग्रेस, झामुमो, राजद और झाविमो महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। उन्होंने कहा कि पूर्व में ही तय हो चुका है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर लड़ेगी जबकि विधानसभा चुनाव उनके नेतृत्व में होगा। इस फार्मूले पर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भी सहमति है। उन्होंने कहा कि वे लगातार विपक्षी दलों के नेताओं के संपर्क में हैं और जल्द ही सीट शेयरिंग पर मुहर लग जाएगी।
उन्होंने यह भी जोड़ा कि भाजपा विरोधी महागठबंधन का लक्ष्य झारखंड में जनपक्षीय और कल्याणकारी योजनाओं पर आधारित सरकार देने की है जिससे लोगों को उनके अधिकार मिल सके और धर्मनिरपेक्षता व लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की जा सके। यही वजह है कि फर्जी जुमले देने वाली सरकार के खिलाफ विपक्ष एकजुट होकर महागठबंधन की संरचना तैयार कर रहा है। देश में भाजपा के खिलाफ स्वाभाविक गठबंधन हुआ है। कोलकाता में ममता बनर्जी के नेतृत्व में सभी नेताओं का जुटान इसकी पुष्टि करता है।