महागठबंधन में ऑल इज नॉट वेल, कांग्रेस-राजद में आगे और बढ़ सकती है तल्खी
बिहार में महागठबंधन में सब ठीक का दावा भले ही किया जा रहा हो लेकिन कांग्रेस और राजद के बीच विवाद कम नहीं हो रहा। अभी दोनों के बीच तल्खी और बढ़ सकती है। जानिए इस रिपोर्ट में...
पटना [अरविंद शर्मा]। महागठबंधन में सुपौल और मधुबनी में बगावत की आग अभी और विस्तार पा सकती है। दूसरे चरण के मतदान के बाद कांग्रेस और राजद के बीच का आंतरिक विवाद का गहराना तय माना जा रहा है। इसी चरण में कांग्रेस और राजद की अधिकांश महत्वपूर्ण सीटें हैं।
वोट ट्रांसफर की दरकार भी सबसे ज्यादा यहीं है। लिहाजा दोनों ओर से अबतक चुप्पी बरती गई, किंतु 20 अप्रैल को सुपौल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की जनसभा के बाद दोनों दलों के तेवर और तल्ख हो सकते हैं। इस चुनाव अभियान में अबतक तेजस्वी ने बिहार में राहुल गांधी के साथ मंच साझा नहीं किया है।
तीसरे चरण के मतदान पर है सबकी नजर
सुपौल और मधेपुरा समेत बिहार की पांच सीटों पर तीसरे चरण में मतदान होने हैं। पप्पू यादव से सियासी अदावत के चलते सुपौल में उनकी पत्नी और कांग्रेस प्रत्याशी रंजीत रंजन को राजद की ओर से सहयोग नहीं किया जा रहा है। पहले राजद ने कांग्र्रेस पर प्रत्याशी बदलने के लिए ही भारी दबाव बनाया था। अब राजद जिलाध्यक्ष एवं विधायक यदुवंश यादव के इशारे पर दिनेश यादव ने निर्दलीय पर्चा भर दिया है।
लालू-तेजस्वी नहीं चाहते रंजीत रंजन जीतें
राजद का स्थानीय नेतृत्व भी पूरी तरह दिनेश के पक्ष में खड़ा है। खुद यदुवंश भी दिनेश की बैठकों में शिरकत करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। कांग्रेस के नेता आरोप तो यहां तक लगा रहे हैं कि यदुवंश ऐसा राजद के शीर्ष नेतृत्व के संकेत पर कर रहे हैं, क्योंकि गठबंधन होने के बावजूद लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव नहीं चाहते हैं कि रंजीत रंजन दोबारा लोकसभा पहुंचें।
तेजस्वी ने अभी तक सुपौल में कोई जनसभा नहीं की है। यहां तक किशनगंज में भी चार दिन पहले कांग्रेस की जनसभा में तेजस्वी का इंतजार होता रहा, लेकिन वह नहीं जा सके थे।
महागठबंधन में दिख रही खेमेबाजी
राजद-कांग्रेस की खेमेबाजी से महागठबंधन के अन्य घटक दल भी वंचित नहीं हैं। वीआइपी के मुकेश सहनी राजद के साथ खड़े नजर आते हैं तो रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा का संबंध कांग्रेस से बेहतर दिखता है। जीतनराम मांझी ने अभी तक संतुलन बना रखा है। उनके आग्रह पर राहुल गांधी नौ अप्रैल को गया की जनसभा में आ चुके हैं।
कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष कौकब कादरी दोनों दलों में तल्खी के लिए बेहतर सामंजस्य के अभाव को जिम्मेवार मानते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस को जो सीटें मिलनी चाहिए थी, वह नहीं मिली। ठीक से अगर बातें की जाती तो औरंगाबाद और दरभंगा जैसी सीटें आज हमारे पास होतीं।
बहरहाल, दूसरे चरण में गुरुवार को किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका के प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला किया जा चुका है। इनमें से तीन सीटें कांग्रेस और दो राजद के हिस्से की हैं।
महागठबंधन में सीट बंटवारे में कांग्रेस को बिहार में कुल नौ सीटें मिली हैं, जिनमें सबसे ज्यादा इसी चरण में हैं। राकांपा के तारिक अनवर अब कांग्रेस में हैं। इस लिहाज से दूसरे चरण के पॉकेट से पिछली बार दोनों दलों के खाते में दो-दो सीटें गई थीं। आगे कांग्रेस की कोशिश सुपौल सीट बचाने की होगी।
शकील को सिंबल का इंतजार
कांग्रेस के प्रवक्ता पद से इस्तीफा देकर मधुबनी से निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में पर्चा भरने वाले शकील अहमद को कांग्रेस से सिंबल मिलने का इंतजार है। उन्होंने चार सेटों में पर्चा भरा है। दो निर्दलीय और दो कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में।
उन्हें उम्मीद है कि राहुल गांधी के सुपौल दौरे के बाद उन्हें सिंबल देने का कोई रास्ता निकल सकता है। कांग्रेस में सभी पदों से इस्तीफा देने के बाद भी शकील को बेनीपट्टी विधायक भावना झा और कदवां विधायक शकील खान ने खुले तौर पर समर्थन दिया है।
राजद से रिश्ते की तल्खी को देखते हुए माना जा रहा है कि शकील अपने मकसद में कामयाब भी हो सकते हैं। झारखंड के चतरा में ऐसा हुआ भी है, जहां राजद के अधिकृत प्रत्याशी सुभाष यादव के खिलाफ कांग्रेस ने प्रत्याशी दे दिया है।
राजद के फातमी ने भी ठोकी ताल
कांग्रेस के शकील अहमद के बाद राजद के अली अशरफ फातमी ने भी पार्टी के पदों से इस्तीफा देकर गुरुवार को मधुबनी से निर्दलीय ताल ठोक दिया है। वह राजद के केंद्रीय संसदीय बोर्ड के सदस्य थे। उनके पुत्र फराज फातमी भी केवटी से राजद के विधायक हैं। लालू प्रसाद से अच्छे संबंध थे।
राजद ने उनपर कोई कार्रवाई नहीं की है। फिर भी उन्होंने निर्दलीय नामांकन भर दिया है। कांग्रेस का आरोप है कि फातमी को भी राजद के शीर्ष नेतृत्व की ओर से इशारा मिल चुका है।