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UP से लेकर, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक सभी खोजेंगे गन्ने की मिठास, लेकिन बिना किसानों के कैसे चलेगा काम?

उत्तर प्रदेश महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों के किसान संगठित हैं जो चुनावी राजनीति को प्रभावित करने की हैसियत रखते हैं।

By Nitin AroraEdited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 09:26 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 12:48 PM (IST)
UP से लेकर, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक सभी खोजेंगे गन्ने की मिठास, लेकिन बिना किसानों के कैसे चलेगा काम?
UP से लेकर, महाराष्ट्र और कर्नाटक तक सभी खोजेंगे गन्ने की मिठास, लेकिन बिना किसानों के कैसे चलेगा काम?

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। गन्ने से कितना रस निकलेगा, यह सवाल फिलहाल राजनीति में गर्म है। दरअसल, पहले दो तीन चरणों में ही गन्ना बेल्ट कहे जाने वाले पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में मतदान है। ऐसे में गन्ना एरियर को लेकर किसानों के आंदोलनों ने राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ा दी थी। वित्तीय संकट में फंसे चीनी उद्योग को उबारने के लिए सरकार ने उन्हें हर तरह की मदद मुहैया कराने का एलान किया है।

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उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े गन्ना उत्पादक राज्यों के किसान संगठित हैं, जो चुनावी राजनीति को प्रभावित करने की हैसियत रखते हैं। लिहाजा पार्टियां देश के इन पांच करोड़ गन्ना किसानों को प्रभावित करने की कोशिश में जुटी हैं। केंद्र और ज्यादातर गन्ना उत्पादक राज्यों में भाजपा और उसकी सहयोगी राजनीतिक पार्टियों की सरकारें हैं। ऐसे में किसानों की नाराजगी का नजला उनके ऊपर न गिरे, इसका पूरा ध्यान पार्टी ने रखा है।

 

विपक्ष में रहने वाले राजनीतिक दल भी गन्ना किसानों की मांगों को लेकर आमतौर पर संबंधित राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार पर हमला बोलते रहते हैं। इन हमलों को कुंद करने के लिए भाजपा ने किसानों के साथ गन्ना किसानों को रिझाने का पूरा बंदोबस्त किया। सरकार ने खाद्य मंत्री राम विलास पासवान के साथ मंत्रिमंडल के वरिष्ठ सहयोगी नितिन गडकरी को गन्ना किसानों की समस्याओं के निदान में लगा दिया।

पिछले तीन सालों से चीनी उद्योग गंभीर संकट के दौर में है। इसका सीधा और पहला असर गन्ना किसानों पर ही पड़ता है। लागत से भी कम मूल्य पर बिक रही चीनी की वजह से मिलें मंदी के दौर से गुजर रही हैं। नकदी संकट झेल रही मिलें गन्ने का भुगतान करने में नाकाम रही हैं। साल दर साल गन्ने का एरियर बढ़ने से जहां चीनी मिलें हलकान हैं, वहीं गन्ना किसानों की हालत भी बिगड़ने लगी। चुनाव से ठीक पहले चीनी उद्योग की कठिनाइयों का अध्ययन करने के बाद सरकार ने उनकी समस्याओं का समाधान करने पर जोर दिया है। लागत से कम मूल्य पर बिक रही चीनी का न्यूनतम बिक्री मूल्य दो बार बढ़ाकर निर्धारित किया गया, जिससे मिलों के हाथ नकदी आई तो गन्ना किसानों के भुगतान में सहूलियत हुई।

चीनी मिलों की वित्तीय स्थितियों में सुधार के लिए भी सरकार ने पुख्ता इंतजाम किए हैं। इसके लिए उन्हें रियायती दरों पर ऋण मुहैया कराया गया है। चीनी उद्योग कीकठिनाइयों के दीर्घकालिक उपाय भी किए गए हैं। इसके तहत उन्हें चीनी उत्पादन के साथ बायोफ्यूल उत्पादन के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराई गई है। पेट्रोल में मिलाने वाले एथनाल का उत्पादन शीरा के साथ सीधे गन्ने के रस से भी करने की प्रौद्योगिकी उपलब्ध कराई गई है।


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