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एक पूर्व सांसद ऐसे भी, पहले भी बीड़ी बनाते थे और आज भी, साइकिल से करते हैं सफर

मध्य प्रदेश के सागर से जनसंघ के रामसिंह अहिरवार 1967 में सांसद बने थे। रामसिंह आज भी साइकिल से सफर करते हैं। इनके पास पुराना कच्चा मकान है सारा जीवन मुफलिसी और सादगी में बिताया है

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Mon, 01 Apr 2019 12:34 PM (IST)Updated: Mon, 01 Apr 2019 12:34 PM (IST)
एक पूर्व सांसद ऐसे भी, पहले भी बीड़ी बनाते थे और आज भी, साइकिल से करते हैं सफर
एक पूर्व सांसद ऐसे भी, पहले भी बीड़ी बनाते थे और आज भी, साइकिल से करते हैं सफर

सागर, चैतन्य सोनी। राजनीति के ग्लैमर और सत्ता के गलियारों की चकाचौंध से दूर सागर में एक पूर्व सांसद ऐसे भी हैं जो भाजपा के गठन से काफी पहले जनसंघ के टिकट पर चुने गए थे। बावजूद उन पर कभी राजनीतिक ठसक हावी नहीं हो सकी। 1967 में रामसिंह अहिरवार इकलौते ऐसे सांसद रहे हैं, जिन्होंने देश में बीड़ी लॉबी के खिलाफ आवाज उठाई थी। इसके बाद उन्होंने ऐसी राजनीतिक उपेक्षा झेली कि उनका पूरा जीवन ही बीड़ी बनाते-बनाते गुजर गया।

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2004-05 के पहले तक तो उन्हें पूर्व सांसद के नाते कोई सुविधा तक नहीं मिलती थी। सागर की पुरव्याऊ टौरी पर पुराने पुश्तैनी व कच्चे मकान में सादगी से जीवन बिताते पूर्व सांसद रामसिंह अहिरवार का सारा जीवन मुफलिसी और लाचारी में गुजर गया। युवा अवस्था में पढ़ाई के साथ-साथ पिता को आर्थिक सहयोग करने के लिए तो 1970 के बाद परिवार की गुजर-बसर के लिए बीड़ी बनाते रहे।

उन्हें 2005 के बाद से पूर्व सांसदों की पेंशन स्वीकृत हुई तो घर की आर्थिक स्थिति कुछ सुधरी, लेकिन अब जीवन के आखिरी पड़ाव में वे पैसा कमाने के लिए तो नहीं टाइम पास के लिए बीड़ी बनाते हैं। रामसिंह अहिवार 82 साल के हो चुके हैं और 1967 में गिने-चुने पढ़े-लिखे युवा सांसदों में शुमार थे। सांसद रहते हुए जीवन में झेला बीड़ी मजदूरों का दर्द लोकसभा तक ले गए। देश के बीड़ी उद्योगपतियों द्वारा किए जा रहे बीड़ी मजदूरों के शोषण की आवाज सदन में जोर-शोर से उठाई थी। जातिगत उपेक्षा का दंश आज भी जेहन में है। 1971 में आम चुनाव हुए तो पार्टी ने टिकट नहीं दिया। उस समय पांच साल से कम समय तक सांसद रहने वालों को पूर्व सांसद का दर्जा तो दिया जाता था, लेकिन कोई सुविधा या पेंशन के हकदार नहीं होते थे।

पूर्व सांसद होने के नाते कहीं नौकरी नहीं कर पाए, मुफलिसी का दौर ऐसा था कि पैसे की तंगी के चलते कोई धंधा नहीं कर सके। नतीजतन बीड़ी बनाना फिर शुरू हो गया। यह सिलसिला आज भी जारी है। हालांकि पूर्व सांसद की पेंशन से उनकी गरीबी का दौर लगभग समाप्त हो गया है।

रामसिंह बताते हैं कि अनुसूचित जाति के होने के कारण काफी उपेक्षा और प्रताड़ना भी झेली है। शांति की तलाश में कभी चर्च तो कभी ओशो की शरण में जीवन में लगातार राजनीतिक उपेक्षा और जातिगत अपमान ने उनके जीवन की दिशा बदल दी थी। नौंवे दशक से 2010 तक वह प्रभु ईशु की शरण में रहे। इसी दौरान कुछ मित्रों के साथ वह ओशो के दर्शनशास्त्र की तरफ भी मुड़ गए। चर्च और ओशोधारा शिविरों में उनका बाकी का जीवन गुजर गया।

आए थे चर्चा में

2007-08 में रामसिंह के धर्मांतरण का मामला भी काफी चर्चा में था। हालांकि वह हिंदू ईसाई धर्म में समानांतर जुड़े हैं। वर्तमान में स्वास्थ्य के चलते उनका अधिकांश समय घर पर गुजर रहा है। कुछ समय पहले पक्षाघात हुआ था। इस कारण अब बोलने में जुबान लड़खड़ाने लगी है।

'हम लोग तो जनसंघ के समय के लोग हैं। तब से लेकर आज तक न तो किसी नेता या अधिकारी ने पूछ-परख की, न ही भाजपा ने सुध ली। अब तो राजनीति के मायने ही बदल गए हैं। हमारे जनप्रतिनिधि हमसे ही दूर जा रहे हैं। जीवन में कोई मलाल नहीं, सादगीपूर्ण जीवन में आनंद आता है।'

-रामसिंह अहिरवार, पूर्व सांसद 


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