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ओडिशा: कांग्रेस-सीपीआइ के दबदबे वाली जगतसिंहपुर लोकसभा सीट पर नौ प्रत्याशी मैदान में

Lok Sabha Election 2019 आगामी 29 अप्रैल कोओडिशा की जगतसिंहपुर लोकसभा सीट पर मतदान होगा इस सीट पर बीजद सीपीआइ और कांग्रेस का दबदबा रहा है।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 26 Apr 2019 11:07 AM (IST)Updated: Fri, 26 Apr 2019 11:07 AM (IST)
ओडिशा: कांग्रेस-सीपीआइ के दबदबे वाली जगतसिंहपुर लोकसभा सीट पर नौ प्रत्याशी मैदान में
ओडिशा: कांग्रेस-सीपीआइ के दबदबे वाली जगतसिंहपुर लोकसभा सीट पर नौ प्रत्याशी मैदान में

भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। ओडिशा की जगतसिंहपुर लोकसभा सीट पर आगामी 29 अप्रैल को मतदान होना है। इस सीट पर 9 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। बीजू जनता दल (बीजद) ने इस सीट से अपना उम्मीदवार बदल दिया है। पार्टी ने डॉ. कुलमणि सामल की बजाय राजश्री मलिक को टिकट दिया है। काग्रेस ने यहां से प्रतिमा मलिक को मैदान में उतारा है। भाजपा ने इस सीट से विभु प्रसाद तराई को टिकट दिया है। इसके अलावा अखिल भारत हिंदू महासभा, बहुजन समाज पार्टी, आंबेडकराइट पार्टी ऑफ इंडिया के उम्मीदवार भी चुनाव लड़ रहे हैं। सीपीआइ कभी यहां असरदार रही थी, लेकिन पार्टी ने इस बार अपना उम्मीदवार नहीं खड़ा किया है।

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जगतसिंहपुर की सियासत में बीजद, सीपीआइ और कांग्रेस का दबदबा रहा है। पहले यहां कांग्रेस और सीपीआइ के बीच आमने-सामने की टक्कर थी, लेकिन 2008 में नवीन पटनायक की पार्टी की एंट्री ने मुकाबला त्रिकोणीय कर दिया। इसके बाद भाजपा ने यहां पिछले चुनाव में लाख से ज्यादा वोट पाकर मुकाबला रोमांचक कर दिया है। 2008 तक सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित जगतसिंहपुर संसदीय सीट 2009 से अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है।

जगतसिंहपुर संसदीय सीट का गठन 1977 के लोकसभा चुनाव से पहले हुआ था। पहली बार लोकसभा चुनाव में इंदिरा विरोधी लहर के कारण कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा। यहां से जनता पार्टी समर्थित उम्मीदवार को जीत मिली थी। 1980 और 84 में कांग्रेस की टिकट पर लक्ष्मण मल्लिक चुनाव जीते।

1989 में लोगों का मिजाज बदला और सीपीआइ के लोकनाथ चौधरी चुनाव जीते। 1991 में भी लोगों ने लोकनाथ को ही अपना प्रतिनिधि चुना।

1996 में यहां का समीकरण फिर बदला और कांग्रेस की टिकट पर रंजीब बिस्वाल विजयी रहे। 2008 में बीजू जनता दल (बीजद) ने इस सीट से अपना उम्मीदवार उतारा, पार्टी ने कांग्रेस को अच्छी टक्कर दी, लेकिन उनका प्रत्याशी हार गया। रंजीब विस्वाल यहां फिर जीत दर्ज की। 1999 में जब चुनाव हुए तो बीजद ने पहली बार यहां अपना खाता खोला। 2004 में भी बीजद ने इस सीट से जीत का सिलसिला कायम रखा। ब्रह्मनंद पांडा यहां से चुनाव जीते। 2009 में लंबे समय बाद इस सीट पर सीपीआइ ने वापसी की। विभू प्रसाद तराई यहां से चुनाव जीतने में सफल रहे। 2014 में मतदाताओं का मिजाज एक बार फिर बदला और बीजू जनता दल को यहां से जीत मिली। 2009 में भारी बहुमत से इस सीट को जीतने वाली सीपीआइ 2014 में मोदी लहर में चौथे नंबर पर चली गई।

पार्टी को मात्र 18099 वोट मिले। हालांकि भाजपा भी कुछ कमाल नहीं दिखा सकी। पार्टी उम्मीदवार विद्याधर मलिक 1 लाख 17 हजार 448 वोट हासिल कर तीसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़ने वाले पूर्व सीपीआइ नेता विभू प्रसाद 3 लाख 48 हजार 98 वोट के साथ दूसरे नंबर पर रहे। बीजद के डॉ. कुलमणि सामल को 6 लाख 24 हजार 492 वोट प्राप्त कर वह 2 लाख 76 हजार 394 वोटों के अंतर से चुनाव जीते।


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