Exclusive Interview : कांग्रेस के पास माकपा-भाजपा जैसे संसाधन नहीं, पर है जनता का विश्वास: ओमन चांडी
सबरीमाला मंदिर में एक विशेष आयु वर्ग तक की महिलाओं का प्रवेश निषेध यहां की सदियों पुरानी परंपरा और आस्था है। जब इस पर चोट की गई तो इसकी रक्षा करने के बजाय एलडीएफ सरकार ने जन भावना के खिलाफ पुलिस की ताकत का इस्तेमाल किया।
केरल में कांग्रेस के चुनाव अभियान का पूरा दारोमदार पार्टी के वरिष्ठ नेता पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी पर निर्भर नजर आ रहा है। इस चुनाव में कांग्रेस-यूडीएफ की डांवाडोल नैया को स्थिरता देने में उनकी प्रमुख भूमिका है और तभी 78 साल की अपनी उम्र की चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए वे धुआंधार चुनावी दौरे कर रहे हैं और उम्र के इस पड़ाव पर भी सूबे में कांग्रेस के सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में उनकी छवि सही साबित हुई है। अपने व्यस्त चुनावी दौरों के दौरान विश्व प्रसिद्ध गुरूवयूर मंदिर से सटे चावाकाड़ में दैनिक जागरण के सहायक संपादक संजय मिश्र से ओमन चांडी ने विशेष बातचीत की। पेश है इसके अंश :-
-एलडीएफ सरकार की नाकामी-भ्रष्टाचार के मुद्दे कांग्रेस के मुख्य चुनावी हथियार हैं मगर माकपा तो सरकार की उपलब्धियों पर चुनाव अभियान चला रही है। ऐसे में क्या पार्टी को अपने चुनावी अस्त्रों के कमजोर पड़ने की चिंता नहीं सता रही?
-घोटालों में घिरी मौजूदा एलडीएफ सरकार सूबे की सबसे भ्रष्ट सरकार में गिनी जाएगी। गोल्ड व कैश स्मगलिंग, डीप शी फिशिंग कांट्रैक्ट घोटाला, पीसीएस नौकरी स्कैम से लेकर दर्जन भर घोटालों से घिरी यह सरकार जब उपलब्धियां गिनाए तो फिर इसका जवाब तो जनता अपने विवेक से देगी ही। हम इनके घोटालों को उठा रहे और चुनाव में सत्ता से बाहर कर जनता इन पर मुहर लगाएगी। रही बात उपलब्धियों की तो फूड किट का वितरण कोई पहली बार नहीं हुआ बल्कि केंद्र की पिछली यूपीए सरकार और केरल की यूडीएफ सरकार ने इसकी शुरुआत की थी।
-चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों में एलडीएफ को बढ़त बताई जा रही और सीएम विजयन का चुनाव अभियान भी कांग्रेस-यूडीएफ के मुकाबले प्रभावशाली रहा?
-सर्वेक्षणों के दावे जमीनी हकीकत से दूर हैं और कांग्रेस लोगों की नब्ज समझ रही है। ऐसे सर्वेक्षण तो प्रायोजित हैं, जिसका मकसद लोगों के मानस को प्रभावित कर चुनावी माहौल बदलना है, पर केरल में ऐसे हथकंडे नहीं चल पाएंगे। माकपा प्रचार में भाजपा की नकल करते हुए बहुत पैसा और संसाधन खर्च कर रही है। कांग्रेस के पास इतने पैसे और संसाधन नहीं हैं। मगर हमारी सबसे बड़ी पूंजी लोगों का विश्वास है जो इन पर भारी पड़ेगा।
चुनाव अभियान चरम पर है तब सबरीमाला पर कांग्रेस की बढ़ी आक्रामकता का मकसद क्या आस्था के सवाल से परे नहीं माना जाएगा?
-बिल्कुल नहीं, सबरीमाला मंदिर में एक विशेष आयु वर्ग तक की महिलाओं का प्रवेश निषेध यहां की सदियों पुरानी परंपरा और आस्था है। जब इस पर चोट की गई तो इसकी रक्षा करने के बजाय एलडीएफ सरकार ने जन भावना के खिलाफ पुलिस की ताकत का इस्तेमाल किया। जबकि कांग्रेस ने तो आस्था की इस परंपरा के लिए सत्ता में आने पर प्रस्तावित कानून का मसौदा तक जारी कर दिया था और तब तो चुनाव भी दूर था। लोकतंत्र में जनभावना और जवाबदेही दोनों की अहमियत है और ऐसे में कांग्रेस के लिए वाजिब है कि हम माकपा नेतृत्व वाली सरकार के सबरीमाला पर कृत्यों को उजागर करें।
चुनाव में कांग्रेस लगातार माकपा और भाजपा में साठगांठ का आरोप लगा रही है, आपके पास इसका आधार क्या है?
-चुनाव की रणनीतियों से स्पष्ट लग रहा कि भाजपा सूबे में अपनी कुछ सीटें बढ़ाने और एलडीएफ सत्ता में दोबारा आने के अघोषित पैक्ट में हैं। इसीलिए दोनों पार्टियां कांग्रेस को हराने की कोशिश में एक दिख रही हैं। भाजपा को ऐसा लगता है कि कांग्रेस सत्ता में नहीं आयी तो बंगाल की तरह वे उसके कुछ नेताओं को तोड़ कर केरल में अपना आधार बढ़ाएंगे। पर भाजपा की यह सोच मुगालते में रहने वाली है क्योंकि केरल के प्रगतिशील लोग ऐसे अलोकतांत्रिक हथकंडों को स्वीकार नहीं करेंगे।
आप भाजपा व माकपा के बीच गुपचुप दोस्ती पर सवाल उठा रहे तो बंगाल में कांग्रेस व वामदलों का चुनावी गठबंधन क्या विरोधाभासी नहीं है?
-केरल और बंगाल को अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए। यह विरोधाभासी नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा को थामने का यही रास्ता है। केरल का चुनाव देश की भावी राजनीति में एक निर्णायक मोड़ होगा क्योंकि कांग्रेस की जीत सेक्युलर ताकतों को लंबी लड़ाई के लिए मजबूती देगी। भाजपा को रोकने के लिए सभी सेक्युलर लोगों का राष्ट्रीय स्तर पर साथ लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
राहुल गांधी के केरल से सांसद बनने के बाद विधानसभा का यह पहला चुनाव है। क्या इसके नतीजों का असर कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर होगा?
-इसमें बहस की कोई गुंजाइश नहीं कि राहुल गांधी पार्टी के सबसे सक्षम नेता हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा से सीधे लड़ने वाला कोई दूसरा नेता नहीं है। भाजपा नीत राजग सरकार जिस तरह हमारे लोकतंत्र पर शिकंजा कसते हुए हमला कर रही उसके खिलाफ बोलने और लड़ने वाला राहुल के अलावा कोई नेता नहीं है। केरल की बात है तो बेशक उनकी मौजूदगी ने कांग्रेस के चुनाव अभियान को जरूरी ऊर्जा दी है।
राहुल की मौजूदगी के बावजूद कांग्रेस में गुटबाजी व असंतोष क्यों नहीं थमा? महिला कांग्रेस की अध्यक्ष ने तो विरोध में सिर मुड़ाकर पार्टी तक छोड़ दी?
-हम भाजपा की तरह केवल एक-दो लोगों की बात पर चलने वाली पार्टी नहीं बल्कि लोकतांत्रिक पार्टी हैं। पार्टी के कुछ वर्ग में नाराजगी थी मगर टिकट बंटवारे के बाद सब कुछ दुरुस्त हो गया है। अभी कांग्रेस जिस तरह एकजुट होकर चुनाव लड़ रही वैसा केरल में पहले शायद कभी नहीं हुआ था। इसका श्रेय हाईकमान को जाता है कि इस बार अपने 92 उम्मीदवारों में से 55 युवा और नए चेहरों को टिकट दिया गया है।
लतिका सुभाष को हम टिकट देना चाहते थे, मगर वे एक सीट विशेष की जिद पर अड़ गई थीं जो गठबंधन के तहत केरल कांग्रेस के हिस्से में चली गई थी। हम दूसरी सीट देने को तैयार थे मगर लतिका इसके लिए राजी नहीं थीं। फिर जो प्रसंग हुआ वह दुर्भाग्यपूर्ण था व निसंदेह केरल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना आगे हमारा ध्येय रहेगा।
कांग्रेस ने मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित नहीं किया है, मगर सूबे में यूडीएफ के सत्ता में आने पर आप ही सीएम बनेंगे?
-ऐसा नहीं है क्योंकि हमने चुनाव में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं दिया है। इसका फैसला तो कांग्रेस हाईकमान करेगा वह भी चुनाव नतीजे आने के बाद और इस बारे में अटकलें लगाना सही नहीं होगा।