कर्नाटक में त्रिशंकु विधानसभा, सरकार गठन के लिए राज्यपाल पर टिकी निगाहें
शुरू से ही खींचतान और असमंजस में फंसे कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने और भी उलझा दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। शुरू से ही खींचतान और असमंजस में फंसे कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने और भी उलझा दिया। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई लेकिन बहुमत से कुछ सीटें नीचे रुक गई। जदएस की मुराद पूरी हुई और न सिर्फ त्रिशंकु विधानसभा का नतीजा आया बल्कि गोवा, मणिपुर जैसे राज्यों में भाजपा की तेज रणनीति से पस्त कांग्रेस इसबार पहले ही जदएस नेता कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री बनाने का न्यौता लेकर पहुंच गई। यह और बात है कि जदएस के पास भाजपा के मुकाबले एक तिहाई सीट है। जाहिर है कि बहुत कुछ कर्नाटक के राज्यपाल पर निर्भर करेगा कि वह पहले किसे सरकार गठन के लिए आमंत्रित करते हैं।
मंगलवार की सुबह से लेकर शाम तक मतगणना ने कई रंग दिखाए। दोपहर तक आंकड़े पूरी तरह भाजपा के खाते में जाते दिखे लेकिन उसके बाद से ही त्रिशंकु की स्थिति स्पष्ट हो गई। उसी अनुसार राजनीतिक दलों के कार्यालयों में भी माहौल बदलता दिखा। माना जा रहा है कि चूंकि कांग्रेस और जदएस का चुनाव पूर्व गठबंधन नहीं था और भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है इसलिए उसे पहला न्यौता मिलेगा। सूत्रों की मानी जाए तो जदएस के कुछ प्रतिनिधि भी भाजपा के साथ जाना चाहते हैं। ऐसे में स्थितियां बदले तो आश्चर्य नहीं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा व राजग की सरकार अब 22 राज्यों में होगी।
पर चुनाव का रोचक बिंदु यह रहा कि वोट फीसद में आगे रहने के बावजूद कांग्रेस सीटों में भाजपा से काफी पीछे रह गई। चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार कांग्रेस को लगभग 38 फीसद वोट मिले। भाजपा को 36 फीसद वोट मिले। कांग्रेस को भाजपा के मुकाबले लगभग छह लाख ज्यादा वोट मिले। स्पष्ट है कि कांग्रेस प्रबंधन भाजपा के सामने चूकी है। कुछ सीटों पर भाजपा को बहुत बड़ी जीत मिली होगी लेकिन ऐसी सीटों पर वह हारी जहां नजदीकी लड़ाई थी।
ध्यान रहे कि 2008 में भी भाजपा बहुमत के नजदीक जाकर रुक गई थी। उस वक्त उसे बहुमत के जादुई आंकड़े 113 के मुकाबले 110 सीटें मिली थीं। हालांकि विधानसभा में बीएस येद्दयुरप्पा से बहुमत साबित किया था और उसमें जदएस के विधायकों को साथ मिला था। इसबार विधान सभा चुनाव में भाजपा को 104, कांग्रेस को 78, जेडीएस को 37 और अन्य के खाते में 3 सीटें आई हैं।