Jharkhand Assembly Election 2019: महागठबंधन में रार बरकरार, हेमंत दिल्ली से वापस लौटे; JVM पर सस्पेंस बरकरार
Jharkhand Assembly Election 2019 चर्चा है कि सुप्रीमो लालू यादव ने टिकट बांटना शुरू कर दिया है। उनके करीबी नेता भोला यादव रिम्स में उनसे मिलकर कुछ कागजातों पर हस्ताक्षर कराकर गए है
रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Assembly Election 2019 महागठबंधन का स्वरूप तय करने को लेकर झामुमो-कांग्रेस की कोशिशों का कोई परिणाम मंगलवार को भी नहीं निकला। झाविमो को महागठबंधन में शामिल करने को लेकर भी सस्पेंस बरकरार है। रविवार को नई दिल्ली गए हेमंत सोरेन बिना किसी नतीजे के मंगलवार को वापस लौट आए हैं। वहीं, मंगलवार को ही प्रदेश कांग्रेस के सीनियर नेता अचानक नई दिल्ली तलब किए गए और दोपहर तक प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव, विधायक दल के नेता आलमगीर आलम, कार्यकारी अध्यक्ष राजेश ठाकुर व अन्य लोग दिल्ली पहुंच भी गए। वहां कांग्रेस ने सीटों को लेकर अपनी दावेदारी को पार्टी आलाकमान के सामने रखा है और तीन दर्जन सीटों पर लडऩे की बात कही है।
झामुमो भी 40 सीटों की मांग पर डटा हुआ है। इसके बावजूद समझा जा रहा है कि कुछ दलों से दूरी बनाते हुए रांची में ही कांग्रेस व झामुमो के नेता महागठबंधन की घोषणा करेंगे। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह और हेमंत सोरेन ने अलग-अलग जगहों पर बयान दिया है कि झारखंड की घोषणा रांची में ही होगी। इस बीच, वामदलों ने अलग राह पकड़ ली है तो राजद को लेकर चर्चा है कि सुप्रीमो लालू यादव ने टिकट बांटना शुरू कर दिया है। उनके करीबी नेता भोला यादव रिम्स में उनसे मिलकर कुछ कागजातों पर हस्ताक्षर कराकर गए हैं।
बुधवार को नई दिल्ली में कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक है, जहां उम्मीदवारों के नामों पर भी चर्चा होनी है। बुधवार को ही झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) की कार्यसमिति की बैठक रांची में होगी। झारखंड विकास मोर्चा के चुनाव समिति की भी बैठक बुधवार को जारी रहेगी। बाबूलाल मरांडी अब महागठबंधन में शामिल होने की बातें नहीं कर रहे हैं। लेकिन, कांग्रेस ने आस नहीं छोड़ी है।
महागठबंधन में झाविमो प्रमुख बाबूलाल मरांडी को शामिल करने के लिए प्रदेश कांग्रेस ने अपने मसौदे से आलाकमान को अवगत करा दिया है। झाविमो को शामिल करने की स्थिति में कांग्रेस कुछ सीटें छोडऩे को तैयार है और यही झामुमो से भी उम्मीद की जा रही है। अब देखने की बात होगी कि दबाव की राजनीति का यह दौर कहां तक चलता है और किसे कितनी सफलता मिलती है।