Jharkhand Assembly Election 2019: दिग्गज आदिवासी नेताओं को अपनी जमीन बचाने की चुनौती
बीते लोकसभा चुनाव के आंकड़े हेमंत रामेश्वर गिलुवा सुखदेव सरीखे नेताओं के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। भाजपा के लिए भी विधानसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की चुनौती है।
रांची, राज्य ब्यूरो। लोकसभा चुनाव का परिणाम निश्चित रूप से भाजपा के पक्ष में गया है लेकिन आदिवासी बहुल इस राज्य में आदिवासी नेताओं के सामने बड़ी चुनौती इसी चुनाव के आंकड़ों से सामने आ रहा है। ये नेता सत्ता पक्ष के भी हैं और विपक्ष के भी। स्थापित आदिवासी नेताओं को अपने इलाके में मुंह की खानी पड़ी और अब देखना है कि विधानसभा चुनाव में समीकरण बदलने में ये नेता कितना सफल होते हैं।
आदिवासी नेताओं की बात शुरू होते ही निश्चित तौर पर सोरेन परिवार की तस्वीर सामने आती है। इस आम चुनाव में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन हार गए और यह हार कहीं न कहीं पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के सामने बड़ी चुनौती है। विधानसभा चुनाव में झामुमो के सामने संताल परगना में बेहतर प्रदर्शन करने की चुनौती पार्टी के अंदर भी है और महागठबंधन के अंदर भी। कुछ ऐसी ही चुनौती भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुवा के सामने है।
लक्ष्मण गिलुवा लोकसभा चुनाव में लहर के बावजूद भारी मतों से हार गए। अब उनके सामने अपने और आसपास के विधानसभा क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन देने की चुनौती है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष होने के कारण उनसे उम्मीदें भी बहुत हैं। कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव पर आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने अपने ही क्षेत्र में पार्टी उम्मीदवार सुखदेव भगत के लिए काम नहीं किया और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत तो उस इलाके में भी लीड नहीं ले सके जहां के वे विधायक हैं।
लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के नौ विधायकों (गीता कोड़ा समेत) में से तीन के क्षेत्र में ही महागठबंधन को बढ़त मिली थी और इन क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व गीता कोड़ा, आलमगीर आलम और इरफान अंसारी करते हैं। इसके अलावा कांग्रेस के छह विधायक अपने क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त दिलाने में विफल हुए थे।