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Jharkhand Assembly Election 2019: टुंडी में नक्सली 'अघोषित प्रत्याशी', साधने वाले को मिलेगी सफलता

झारखंड आंदोलनकारी और झामुमो के संस्थापक विनोद बिहारी महतो टुंडी से विधायक रह चुके हैं। अभी उनके पुत्र राजकिशोर महतो आजसू से विधायक हैं।

By MritunjayEdited By: Published: Sun, 08 Dec 2019 12:58 PM (IST)Updated: Sun, 08 Dec 2019 12:58 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: टुंडी में नक्सली 'अघोषित प्रत्याशी', साधने वाले को मिलेगी सफलता
Jharkhand Assembly Election 2019: टुंडी में नक्सली 'अघोषित प्रत्याशी', साधने वाले को मिलेगी सफलता

धनबाद [बलवंत कुमार]। टुंडी विधानसभा क्षेत्र की खासियत है, पहाड़ी और जंगल का प्राकृतिक सौंदर्य। और विडंबना है तो माओवाद। डेढ़ दशक से बड़े इलाके में माओवादी विचारधारा और उसके हथियारबंद कैडरों का प्रभाव है। माओवादी भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था को खारिज करते हैं। बावजूद इसके टुंडी विधानसभा क्षेत्र में सूरज के डूबने के पहले तक गांव से लेकर टोलों तक सभी दलों के उम्मीदवार घूम रहे हैं।

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झारखंड आंदोलनकारी और झामुमो के संस्थापक विनोद बिहारी महतो टुंडी से विधायक रह चुके हैं। अभी उनके पुत्र राजकिशोर महतो आजसू से विधायक हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में राज किशोर ने बेहद नजदीकी मुकाबले में झामुमो के मथुरा प्रसाद महतो को हराया था। मथुरा प्रसाद महतो ने राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री के नाते छोटानागपुर संथालपरगना एक्ट के दायरे में कुड़मी की जमीन को भी लाने के आदेश पर दस्तखत किया था। राज किशोर महतो फिर आजसू के टिकट पर मैदान में हैं, तो तीर धनुष लेकर मथुरा प्रसाद महतो फिर विधानसभा में जाने को तैयार हैं। राजकिशोर और मथुरा महतो के बीच मुकाबले के बीच पिछले चुनाव की तरह डा सबा अहमद ने फिर झाविमो की कंघी लेकर चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है। गिरिडीह के पूर्व सांसद रवींद्र पांडेय के पुत्र विक्रम पांडेय को भाजपा ने मैदान में उतारा है। विक्रम पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं। भाजपा बड़ी राजनीतिक ब्रांड हैं। चमकदार राजनीतिक ब्रांड के साथ पिता रवींद्र पांडेय के चमत्कार के आसरे विक्रम चुनाव में पराक्रम दिखाने में लगे हुए हैं। झाविमो से बागी होकर निर्दल चुनाव लड़ रहे ज्ञान रंजन सिन्हा की जुबान पर एक ही बात है, हर बार टुंडी के लोगों ने दिया है, लिया नहीं। इस बार टुंडी के लोग देंगे और लेंगे भी। ज्ञान रंजन का इशारा है कि सिर्फ वही टुंडी के रहने वाले हैं, बाकी भारी भरकम प्रत्याशी नहीं।

2014 के विधानसभा चुनाव के पहले कुड़मी नेता के नाते मथुरा प्रसाद महतो ने पूरे प्रदेश में अलग पहचान बना ली थी। मथुरा महतो के बढ़ते राजनीतिक प्रभाव को थामने के लिए आजसू पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष सुदेश महतो ने झारखंड आंदोलन के नायक रहे विनोद बिहारी महतो के पुत्र राजकिशोर महतो को मैदान में उतारा। सुदेश महतो और चंद्रप्रकाश चौधरी ने राजकिशोर महतो को हर मुमकिन सहयोग किया। आजसू पार्टी अपनी रणनीति में कामयाब रही। महज 1126 मतों के अंतर से दो बार विधायक रहे मथुरा महतो को हार का सामना करना पड़ा था। मथुरा महतो के लिए यह बड़ा सियासी झटका रहा। चुनाव में हार के बाद लगातार पांच साल तक मथुरा महतो ने टुंडी का सियासी मैदान नहीं छोड़ा। आखिर यही शिबू सोरेन आश्रम जो है।

बिहार के जमाने से सबा की मतदाताओं पर पकडः अविभाजित बिहार में मंत्री रह चुके डा सबा अहमद की अकलियत मतदाताओं पर पकड़ रही है। अब उम्र दराज हो चुके हैं। फिर भी जोश ए जुनून कम नहीं है। झाविमो नेतृत्व ने एकबारगी संकेत दिया था कि इस चुनाव में धनबाद जिलाध्यक्ष ज्ञान रंजन सिन्हा को टुंडी से मौका दिया जा सकता है। अंतिम समय में झाविमो ने अपने बुजुर्ग नेता डा सबा को फिर उम्मीदवार बना दिया। आखिर झाविमो के गठन के बाद से वे मरांडी के हमसफर जो हैं।

विक्रम को उम्मीदवार बना कर भाजपा ने किया चकितः लोकसभा चुनाव के समय भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गिरिडीह लोकसभा सीट आजसू पार्टी को दे दी थी। रवींद्र पांडेय लगातार पांच बार से गिरिडीह के भाजपा सांसद थे। विधानसभा चुनाव में भाजपा का आजसू पार्टी से गठबंधन टूट गया। भाजपा ने आजसू पार्टी की इस सीट पर रवींद्र पांडेय के पुत्र विक्रम पांडेय को उम्मीदवार बना सबको चकित किया। भाजपा नेतृत्व की भरसक कोशिश है कि टुंडी में आजसू पार्टी का राज छीन लिया जाय। यहां भाजपा के लिए सरदर्द का कारण दीप नारायण सिंह बन गए हैं जो टिकट नहीं मिलने पर बागी हो चुके हैं। वे आप का झाड़ू लेकर घूम रहे हैं। भाजपा को झामुमो के मथुरा महतो और आजसू के राजकिशोर महतो के बीच महतो बनाम महतो और झाविमो के डॉ. सबा अहमद के बीच की लड़ाई में उम्मीद की किरण दिख रही है।

टुंडी में हमेशा टी ट्वेंटी की तरह चुनावी मुकाबलाः  टुंडी विधानसभा क्षेत्र में हमेशा टी ट्वेंटी की तरह चुनाव मुकाबले होते रहे हैं। 1985 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के सत्य नारायण दुदानी ने महज 24 वोटों से कांग्र्रेस के उदय कुमार सिंह को हराया था। 1990 में बिनोद बिहारी महतो 1299 वोट से, 1995 में सबा अहमद 2333 वोट और 2000 में 154 वोट से, 2009 में मथुरा महतो 918 वोट और 2014 में राज किशोर महतो 1126 वोट से चुनाव में विजयी हुए थे। इस बार का भी चुनावी संग्राम बेहद कड़ा है। चुनाव को नक्सली प्रभावित करते रहे हैं। अबकी बार भी प्रभावित करेंगे। कहा जा रहा है कि जिसे नक्सलियों को साधने में सफलता मिलेगी वह चुनाव में चमत्कार करेगा।

  • 2014 के चुनाव परिणाम

राज किशोर महतो : आजसू पार्टी : 55,466

मथुरा प्रसाद महतो : झामुमो : 54,340

  • चुनावी समीकरण

कुल प्रत्याशी : 13

कुल मतदाता : 2,85,481

पुरुष मतदाता : 1,46,438

महिला मतदाता : 1,31,609

किन्नर : 02

  • तीन प्रमुख मुद्दे

रोजगार व पलायनः टुंडी के अधिकतर लोग ठेका मजदूरी करते हैं। न बड़े कारखाने हैं, न कुटीर उद्योग। सिंचाई का भी मुकम्मल इंतजाम नहीं है। इस कारण पेट पालने के लिए पलायन बहुत है।

चिकित्साः टुंडी में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और रेफरल अस्पताल हैं। वहां न डॉक्टर आते हैं, न दवा मिलती है। रात में कोई बीमार हो जाय तो फिर सबकी जान सांसत में होती है।

ग्रामीण सड़कः टुंडी से गिरिडीह जाने वाली मुख्य सड़क समेत कुछेक सड़कों को छोड़ दें तो ग्र्रामीण सड़कों पर हिचकोले खाना लोगों की नियति है। माओवाद प्रभावित इलाके में भी यही हालत है।

  • उम्मीदवारों के बोल

टुंडी बेहद पिछड़ा इलाका है। पांच साल में बहुत काम हुए हैं। अभी और बहुत करने की संभावना है। कोशिश है कि यहां गांव की सरकार बने।

-राज किशोर महतो, आजसू पार्टी

भाजपा सरकार में सरकारी स्कूल बंद कर दिए गए। पारा शिक्षक हटाए जा रहे हैं। आंगनबाड़ी सेविका एवं मनरेगा के रोजगार सेवक पर लाठियां चल रही है। टुंडी में फिर जनता का राज आएगा।

-मथुरा प्रसाद महतो, झामुमो

टुंडी में विस्थापन, बेरोजगारी, हाथियों का उत्पात, पेयजल एवं बिजली का संकट बड़ा मसला है। सभी प्रमुख समस्याओं का समाधान करना प्राथमिकता होगी।

-विक्रम पांडेय, भाजपा प्रत्याशी

युवा बेबस है। उन्हें नौकरी दिलानी होगी। पिछले जनप्रतिनिधियों ने कोई काम नहीं किया है। मेरे पास गहरा अनुभव है। विधायक चुना गया तो पलायन रोक तेज विकास करेंगे।

-डॉ. सबा अहमद, झाविमो

टुंडी के मतदाताओं ने आज तक सिर्फ दिया है। लिया नहीं है। दूसरे विधानसभा क्षेत्रों के लोग आए और वोट लिए। वे टुंडी के हैं। पहली बार टुंडी के लोग अपने घर का नेता चुनेंगे।

-ज्ञान रंजन सिन्हा, निर्दलीय


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