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Jharkhand Assembly Election 2019: जनादेश समागम से शक्ति प्रदर्शन की जुगत में बाबूलाल

Jharkhand Assembly Election 2019. झाविमो सुप्रीमो के समक्ष खुद को स्थापित करने की चुनौती है। पूर्व सांसद मनोज भुइयां ने पार्टी को अलविदा कह दिया है।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Sun, 22 Sep 2019 09:55 PM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 08:57 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: जनादेश समागम से शक्ति प्रदर्शन की जुगत में बाबूलाल
Jharkhand Assembly Election 2019: जनादेश समागम से शक्ति प्रदर्शन की जुगत में बाबूलाल

रांची, राज्य ब्यूरो। Jharkhand Assembly Election 2019 - लोकसभा चुनाव 2014 और 2019 में मतदाताओं की उपेक्षा के शिकार हुए झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी के सामने खुद को स्थापित करने की बड़ी चुनौती है। हालांकि मोदी लहर के बावजूद पिछले विधानसभा चुनाव में झाविमो के टिकट से आठ विधायक जीतकर आए थे, परंतु उनमें से छह भाजपा में शामिल हो गए। इस कालावधि में विभिन्न दलों के कई नेताओं ने झाविमो का दामन थामा तो कुछ ने दल को अलविदा भी कर डाला। यह सिलसिला आज भी जारी है।

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पलामू के सांसद रह चुके मनोज भुइयां इनमें एक बड़ा नाम है, जो हाल ही में झाविमो को छोड़ भाजपा में शामिल हो गए। बहरहाल अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को फिर से पाने की जुगत में बाबूलाल जहां दल की सांगठनिक मजबूती को लेकर लगातार राज्य के दौरे पर हैं, वहीं गठबंधन के बूते विधानसभा चुनाव 2019 की जंग जीतने के बाबत विपक्षी दलों के संपर्क में भी हैं। भाजपा को शिकस्त देने के लिए शुरू से ही महागठबंधन के समर्थक रहे बाबूलाल और उनकी पार्टी सीट शेयरिंग के फार्मूले पर महागठबंधन में शामिल होने वाले दलों के बीच कहां टिकती है, यह भविष्य के गर्भ में है।

इससे इतर चुनावी बैतरनी पार करने के लिए वे कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते, कई मौकों पर उन्होंने खुद इसके संकेत दिए हैं। झारखंड की राजनीति में झाविमो की एक बार फिर दमदार उपस्थिति को केंद्र मेंं रखकर उन्होंने 25 सितंबर को रांची के प्रभात तारा मैदान में जनादेश समागम का आयोजन किया है। यह वही मैदान है, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो से तीन बार झारखंड की जनता को संबोधित कर चुके हैं। इससे पूर्व परिवर्तन रैली तथा कुटे अधिवेशन में भीड़ जुटाने के मामले में इतिहास रच चुके बाबूलाल इस समागम के जरिए अपनी शक्ति का किस हद तक प्रदर्शन कर पाएंगे, यह समय बताएगा।

बताते चलें कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद 2006 में झाविमो का गठन करने वाले बाबूलाल मरांडी ने पिछले 12-13 वर्षों के कालखंड में कई उतार-चढ़ाव देखें। जब उन्होंने भाजपा से अलग होकर नई पार्टी बनाई थी, उन्हें कई दिग्गजों का साथ मिला था। यह उनकी मेहनत और पार्टी की सांगठनिक मजबूती ही थी कि नई पार्टी होते हुए 2009 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने 11 सीटें झटक ली। 2014 में भी उनकी पार्टी आठ सीटों पर विजयी रही थी। अब 2019 में झाविमो कहा टिकेगा, इंतजार करना होगा।


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