Jharkhand Assembly Election 2019: झारखंड चुनाव में गठबंधन का हाल-बेहाल, जानें कौन-कहां फंसा रहा पेंच Special Report
Jharkhand Assembly Election 2019.झारखंड में उत्सवी माहौल के बीच सियासी गठबंधनों की खिचड़ी भी पकती रही। सभी ज्यादा से ज्यादा सीटें पाने की चाहत में एक-दूसरे पर दबाव बना रहे हैं।
रांची, [प्रदीप शुक्ला]। Jharkhand Assembly Election 2019 - विधानसभा चुनाव की दहलीज पर खड़े झारखंड में उत्सवी माहौल के बीच सियासी गठबंधनों की खिचड़ी भी पकती रही। सभी राजनीतिक पार्टियां ज्यादा से ज्यादा सीटें पाने की चाहत में एक-दूसरे पर दबाव बना रहे हैं। राज्य में सत्तासीन भाजपानीत गठबंधन का सहयोगी दल आजसू लगभग डेढ़ दर्जन से ज्यादा विधानसभा सीटों पर दावेदारी कर रहा है। इसमें कुछ सीटों पर भाजपा के विधायक काबिज हैैं। उधर, एनडीए का घटक दल लोजपा भी अपने लिए सीटों की मांग कर रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में लोजपा को गठबंधन के तहत एक सीट मिली थी।
फिलहाल भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने गठबंधन के तहत मांगी जा रही सीटों पर चुप्पी साध रखी है। भाजपा के रूख को देखते हुए जदयू पहले ही किनारा कर चुका है। बिहार में भाजपा के साथ सरकार चला रही जदयू के नेताओं ने अधिकाधिक सीटों पर उम्मीदवार उतारने का ऐलान कर दिया। कयास लगाया जा रहा है कि चुनाव की अधिसूचना जारी होने के बाद भाजपा मित्र दलों के साथ सीट शेयरिंग पर रवैया स्पष्ट करेगी। हालांकि जदयू के साथ समझौते की गुंजाइश झारखंड में नहीं के बराबर है।
उधर, इससे बुरी स्थिति विपक्षी दलों की है। लोकसभा चुनाव में तालमेल में सफलता के बाद इसकी कम संभावना है कि हूबहू समझौता विधानसभा चुनाव में हो पाएगा। इसकी सबसे बड़ी वजह क्षेत्रीय दलों की महत्वाकांक्षा है। मुख्य विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के अगुवा हेमंत सोरेन खुद को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करना चाहते हैैं।
पहले कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने मौके की नजाकत को भांपते हुए उनकी शर्त को स्वीकार कर लिया था। इसके एवज में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस को एक राज्यसभा सीट पर जीत हासिल करने में मदद की और लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों पर लडऩे का मौका दिया। अब कांग्रेस के नेता पूर्व में किए गए अपने वादे से मुकरते नजर आ रहे हैैं।
विपक्षी गठबंधन के एक अहम दल झारखंड विकास मोर्चा की चाल अलग है। मोर्चा के प्रमुख बाबूलाल मरांडी हेमंत सोरेन की अगुवाई स्वीकार नहीं कर पा रहे हैैं। हालांकि मरांडी राजनीतिक मोर्चे पर फिलहाल हाशिये पर दिख रहे हैैं। पिछले विधानसभा चुनाव में आठ विधायक उनके दल के टिकट पर जीतकर आए थे, जिसमें से सात भाजपा में शामिल हो चुके हैैं। खुद बाबूलाल मरांडी भी लोकसभा का चुनाव हार चुके हैैं। वे किसी ठौर की तलाश में हैैं और ज्यादा संभावना है कि वे अकेले विधानसभा चुनाव का सामना करें।
वामदलों समेत अन्य छोटे दलों का साथ उन्हें मिल सकता है। जदयू ने भी उनकी ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है। भाजपा प्रचार अभियान के मोर्चे पर विपक्षी दलों से काफी आगे हैैं। खुद मुख्यमंत्री रघुवर दास जन आशीर्वाद यात्रा के माध्यम से पूरे प्रदेश में संपर्क अभियान चला रहे हैैं।