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Jharkhand Assembly Election 2019 : झारखंड तय करेगा राजनीतिक विमर्श की दिशा

Jharkhand Assembly Election 2019. झारखंड राजनीतिक विमर्श की दिशा तय करेगा। मुख्‍यमंत्री रघुवर दास के समक्ष भाजपा नेतृत्व के भरोसे पर खरा उतरने की चुनौती है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 11:05 AM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 11:05 AM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019 : झारखंड तय करेगा राजनीतिक विमर्श की दिशा
Jharkhand Assembly Election 2019 : झारखंड तय करेगा राजनीतिक विमर्श की दिशा

जमशेदपुर, आशुतोष झा । Jharkhand Assembly Election 2019  स्थायित्व बनाम अस्थिरता के नारों के बीच झारखंड में शनिवार को पहले चरण का मतदान है और इसके साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास की परीक्षा भी होनी है। दरअसल, रघुवर को जनता के दरबार में खुद को भी साबित करना है और भाजपा नेतृत्व के भरोसे पर भी खरा उतरना है।

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पांच साल पहले 2014 में लोकसभा चुनाव के बाद तीन राज्यों के चुनाव हुए थे और केंद्र के साथ साथ तीनों जगह- महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड - में भाजपा ने इतिहास रच दिया था। वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की रणनीति का करिश्मा था। 2019 में दो राज्य हरियाणा और महाराष्ट्र ने संबंधित मुख्यमंत्रियों को कठघरे में खड़ा कर दिया। अब झारखंड के मुख्यमंत्री की बारी है। दरअसल झारखंड सबसे अहम होने वाला है, क्योंकि यही राज्य आने वाले चुनावों में भाजपा की धार और विमर्श की दिशा तय करेगा।

इसमें शक नहीं कि रघुवर ने पांच साल के शासनकाल में दम दिखाया है। विकास के कई कार्यों के साथ-साथ नक्सलवाद पर प्रभावी अंकुश लगाया है। लेकिन, चुनावी राजनीति में जिस तरह एकबारगी चौतरफा घेरेबंदी की कोशिशें शुरू हुई हैं, उसे अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है। एक वर्ग जहां इसे भाजपा के लिए खतरनाक मान रहा है, वहीं दूसरे वर्ग का मानना है कि बहुकोणीय लड़ाई भाजपा के लिए फायदेमंद ही साबित होगी। ऐसा मानने वालों में भाजपा ही नहीं, ऐसे दलों के उम्मीदवार भी हैं जो भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। इसमें शक नहीं कि अगर यह फायदेमंद होता है तो रघुवर को इसका श्रेय मिलेगा, क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें टिकट बंटवारे से लेकर रणनीति तय करने तक में छूट दी थी। अब उन्हें विश्वास की कसौटी पर खुद को साबित करना होगा।

दरअसल, राजनीतिक रूप से झारखंड की अहमियत हरियाणा और महाराष्ट्र से अधिक हो गई है, क्योंकि झारखंड का नतीजा आने वाले चुनावों में राजनीतिक परिदृश्य और बहस को रुख देगा। दो-तीन महीने में दिल्ली में मतदान है और उसके बाद 2020 के अंत तक बिहार में, जहां जदयू के साथ भाजपा गठबंधन की सरकार है।हरियाणा में भाजपा ने पिछली बार से कम सीटें जीतीं और गठबंधन पर निर्भर होना पड़ा, जबकि महाराष्ट्र में अच्छे प्रदर्शन के बावजूद बड़ा झटका लगा है। माना तो यह जा रहा है कि इन दोनों राज्यों के कारण ही झारखंड में चुनौती और प्रबंधन के लिए मुश्किलें बढ़ी हैं। हालांकि, यह भी सच है कि झारखंड में वह राजनीतिक हालात नहीं है जो इन दो राज्यों में थे। बकौल रघुवर दास- महाराष्ट्र और हरियाणा में प्रभावी समुदाय मराठा और जाट का आंदोलन रहा, जबकि झारखंड में किसी भी समुदाय का कोई बड़ा आंदोलन खड़ा नहीं हुआ। बजाय इसके भाजपा के सूत्रों का मानना है कि जमीन के मालिकाना हक को लेकर क्रिश्चियन आदिवासी और मूल आदिवासी में बंटवारा हुआ है और मूल आदिवासी अपना हित भाजपा में देख रहे हैं।


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