Exclusive Interview: अब दूसरे दल वाले मेरे पास आएंगे, भाजपा ने मुझसे बेइमानी की: बाबूलाल Jharkhand Election 2019
Jharkhand Assembly Election 2019 बाबूलाल दावा करते हैैं कि इस बार उनके दल के लोग नहीं जाएंगे बल्कि दूसरे दल वाले उनके पास आएंगे। वह कहते हैं झाविमो का अपना सिद्धांत है।
खास बातें
- मैैं गठबंधन करना चाहता था, लेकिन दूसरे दलों ने नहीं दिखाई दिलचस्पी
- मुझे कम सीटें ऑफर की गई तो मन बनाया अकेले लडऩे का
- भाजपा-आजसू नौटंकी कर रहे, जब गठबंधन नहीं तो सिल्ली में प्रत्याशी क्यों नहीं दिया भाजपा ने
भाजपा से रिश्ते में दरार के बाद 2006 में अलग राजनीतिक दल बनाने वाले बाबूलाल मरांडी का कुनबा बनता- बिखरता रहा है। 2014 में विधानसभा चुनाव के बाद इनके आठ में से छह विधायक टूटकर भाजपा में चले गए थे। एक अन्य विधायक ने भी इस बार चुनाव की घोषणा होने के बाद हाल ही में भाजपा का दामन थाम लिया। हाल के चुनावों में बाबूलाल मरांडी भी शिकस्त खाते रहे हैं। ऐसे में इस विधानसभा चुनाव को उनके राजनीतिक अस्तित्व से भी जोड़कर देखा जा रहा है।
इससे पहले 2009 में कांग्रेस के साथ सांठगांठ कर झाविमो ने तब 11 सीटें हासिल की थी। मोदी लहर के बावजूद 2014 में झाविमो के खाते में आठ सीटें आईं। इस चुनाव में उन्होंने सभी सीटों पर लडऩे का एलान किया है, लेकिन चुनाव परिणाम से पहले ही यह हवा उडऩे लगी है कि उनके विधायक जीतने के बाद कहीं फिर से अलग राह न पकड़ लें। वैसे बाबूलाल मरांडी इससे इत्तफाक नहीं रखते और अपनी खूबियां-खामियां गिनाते हैैं।
दावा करते हैैं कि इस बार उनके दल के लोग नहीं जाएंगे बल्कि दूसरे दल वाले उनके पास आएंगे। वह कहते हैं, झाविमो का अपना सिद्धांत है, हम मुद्दों की राजनीति करते हैं। जनादेश 2019 झारखंड में बड़े राजनीतिक परिवर्तन का वाहक बनेगा। उनसे विस्तृत बातचीत की दैनिक जागरण के सीनियर कॉरेस्पोंडेंट विनोद श्रीवास्तव ने।
सवाल : आप विपक्षी महागठबंधन से अलग क्यों हुए, जबकि आप आरंभ से ही इसके पक्ष में थे।
बाबूलाल का जवाब : हां, 2009 के चुनाव में हमने कांग्रेस के साथ 20 सीटों पर गठबंधन किया और पांच सीटों पर फ्रेंडली लड़े और 11 सीटें हासिल की। विपक्षी दलों की बैठक में दिल्ली में यह तय हो गया था कि झाविमो 2014 के चुनाव में 28 सीटों पर लड़ेगा, लेकिन दूसरे ही दिन दलों का मत बदल गया। लिहाजा हम अकेले लड़े और आठ सीटें हासिल की। गत लोकसभा चुनाव में भी हमने गठबंधन की कोशिश की, पर सफलता नहीं मिली। लोस चुनाव के दूसरे ही दिन से हमने विधानसभा चुनाव को केंद्र में रखकर गठबंधन की कवायद शुरू कर दी। पूरा मई, जून, जुलाई हमने मशक्कत की, लेकिन अन्य दलों ने कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाई। लिहाजा अगस्त में ही हमने अकेले लडऩे का मन बना लिया। सबकी राय भी यही थी।
सवाल : आप भले विपक्षी गठबंधन से बाहर है, लेकिन झामुमो, कांग्रेस और राजद एक साथ है। झाविमो पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा?
बाबूलाल का जवाब : झामुमो संताल और कोल्हान में अधिक प्रभावी है। कांग्रेस हाल के वर्षों में कमजोर हुई है। आजसू का कुछ क्षेत्रों में प्रभाव है, परंतु उसकी राजनीति जाति आधारित है। झाविमो का जनाधार लगभग सभी क्षेत्रों में है। ऐसे में हम लगभग सभी सीटों पर संघर्ष में हैं। लगभग 40 सीटों पर भाजपा से हमारा सीधा मुकाबला है। आप देखते जाएं, परिणाम अप्रत्याशित होगा। झाविमो निर्णायक भूमिका होगा।
सवाल : आपका कुनबा शुरू से बिखरता रहा है। 2014 के चुनाव में झाविमो के टिकट से जीतकर आए आठ विधायकों में से छह ने पाला बदल लिया। क्या गारंटी है कि आगे ऐसी घटना की इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी?
बाबूलाल का जवाब : देखिए, भाजपा ने पावर का दुरुपयोग किया है, बेईमानी की है। गैर संवैधानिक काम किया है। यह संविधान की 10वीं अनुसूची का सरासर उल्लंघन है। अगर निर्दलीय भी दल बदलते हैं तो वे दलबदल कानून के दायरे में आते हैं। अब आप ही बताए, राजनीति में पूरी जिंदगी गुजार देने के बाद भी लोगों को सत्ता में जगह मिलती है। फिर झाविमो छोड़कर जाने वाले छह विधायकों में से दो मंत्री और तीन बोर्ड-निगमों के अध्यक्ष कैसे बन गए? दाल में कहीं न कहीं काला तो है।
कुछ लोग अति महत्वाकांक्षी होते हैं। उनके पास न तो नैतिकता होती है, न ही निष्ठा और न ही अपना कोई आदर्श। ऐसे राजनीति में आना-जाना लगा रहता है। अगर हम कमजोर हो गए होते तो शायद यहां खड़ा नहीं दिखते। जहां तक घटना की पुनरावृत्ति वाली बात है तो जब आप कमजोर होते हैं, तब ही लोग छिटकते हैं। इससे इतर इस बार ऐसा कुछ भी होने वाला नहीं है। इस बार हम पावर में रहेंगे। मेरे दल से कोई जाएंगे नहीं, दूसरे दलों से आएंगे, ऐसा विश्वास के साथ कह रहा हूं।
सवाल : एनडीए में आई टूट को आप किस नजरिए से देखते हैं?
बाबूलाल का जवाब : भाजपा और आजसू एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। कहते कुछ हैं, करते कुछ हैं। जब टूट है तो सिल्ली में क्या हो रहा है? सब आईवाश है। दोनों मिलकर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं। जनता सब देख रही है, समझ रही है।
सवाल : आप पर भी महत्वाकांक्षी होने का आरोप लगते रहे हैं। चर्चा तो यह भी है कि आप जिद्दी भी हैं। अपनी मन की करते हैं?
बाबूलाल का जवाब : महत्वाकांक्षी होने में कोई बुराई है क्या? हां इसकी दिशा सकारात्मक होनी चाहिए। मेरा अपना सिद्धांत है और मैं उसी पर चलता हूं। अगर मैं इतना ही महत्वाकांक्षी होता तो मेरे पास अवसर की कमी नहीं थी। मैं भी कहीं आसीन होता। रही जिद की बात तो मैं हूं। कुछ बेहतर करने के लिए जिद भी जरूरी है। इतिहास गवाह है। अगर अंग्रेजों ने महात्मा गांधी को ट्रेन से न उतारा होता तो शायद आज भी हम गुलाम रहते। एक राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर मैं हजारों लोगों से मिलता हूं। उनसे फीडबैक लेता हूं। उसपर मनन करता हूं, फिर जो उचित लगता है, करता हूं। अब लोग इसे मनमानी करार दें तो यह उनकी सोच है।
सवाल :आपकी नजर में मजबूत सरकार कौन है, जोड़तोड़ वाली अथवा स्थायी?
बाबूलाल का जवाब : राज्य हित में जो बेहतर काम करे, वही सरकार अच्छी है। वह स्थायी भी हो सकती है और गठबंधन वाली भी। यह नेतृत्वकर्ता पर निर्भर है कि वह आपस में किस तरह समन्वय बनाए रखते हैं।
सवाल : आप चौंकाने वाले जनादेश की बात कर रहे हैं? थोड़ी देर के लिए मान लें, अगर किसी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला और फिर गठबंधन की सरकार बनी तो आपकी क्या भूमिका होगी? क्या शर्त होंगे?
बाबूलाल का जवाब : इसे राज ही रहने दें, समय का इंतजार करें।
सवाल : सरकार का दावा है कि झारखंड में जो काम पिछले 14 वर्षों में नहीं हुआ, उससे अधिक काम पिछले पांच वर्षों में हुए हैं? इस दावे को आप कितना अंक देंगे?
बाबूलाल का जवाब : आखिर ऐसा क्या हुआ कि झारखंड के किसान भी आत्महत्या करने लगे। भूख से मौत सुर्खियां बनने लगी, पलायन का ग्राफ बढ़ गया, लघु और कुटीर उद्योग बंद हो गए। आखिर यह विकास का कौन सा स्वरूप है। हम डिजिटल इंडिया की ओर बढ़ रहे हैं, अच्छी बात है, परंतु यह कहकर कि अमुक-अमुक लाभुकों ने अपने खाते का आधार लिंक नहीं कराया और ढाई लाख वृद्धाओं, विधवाओं, दिव्यांगों की पेंशन रोक दी गई। अब कोई बताए, राज्य के हजारों अधिकारी-कर्मचारी तक कंप्यूटर की बारीकियों से अवगत नहीं हैं, फिर हाशिये पर बैठे लोगों से आप यह कैसे उम्मीद कर बैठे?
लाखों लोग आज भी विस्थापन का दंश झेल रहे हैं। विदेशों में रोड शो, ग्लोबल समिट के आयोजन, होर्डिंग-बैनर पर करोड़ों लुटाने से न तो यहां की बेरोजगारी मिटेगी और न ही अपेक्षित विकास होगा। आप हाथी उड़ा रहे हैं, यह तो बच्चों वाली ही बात हुई न। आप ही बताएं इसका क्या हश्र हुआ? कितने उद्योग लगे, कितनी नौकरियां मिली? आप सर्वेक्षण करा लें, अल्प पगार पर दूर के शहरों में मिली नौकरियों को अधिकतर युवाओं ने ठुकरा दिया है। बेरोजगारी आज भी मुंह बाएं खड़ी है।