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Jharkhand Assembly Election 2019: खूंटी में विपक्ष के बिखराव से भाजपा के हौसले बुलंद

Jharkhand Assembly Election 2019. भगवान बिरसा मुंडा व झारखंड आंदोलन के जनक मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जन्मभूमि व कर्मभूमि खूंटी में मुकाबला रोचक होने के आसार।

By Sujeet Kumar SumanEdited By: Published: Tue, 19 Nov 2019 08:22 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2019 08:22 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: खूंटी में विपक्ष के बिखराव से भाजपा के हौसले बुलंद
Jharkhand Assembly Election 2019: खूंटी में विपक्ष के बिखराव से भाजपा के हौसले बुलंद

खूंटी, दिवाकर श्रीवास्तव। आदिवासियों के पूज्‍य धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा तथा झारखंड आंदोलन के जनक मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की जन्मभूमि व कर्मभूमि खूंटी रही है। प्रारंभ में झारखंड पार्टी (झापा) के गढ़ के रूप में खूंटी की पहचान थी। बाद में कांग्रेस ने जयपाल सिंह मुंडा को अपने पाले में कर झापा के इस अभेद्य किले को भेद कर खूंटी को कांग्रेस का गढ़ बना दिया। राम मंदिर आंदोलन के बाद क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का तेजी से प्रसार हुआ।

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इस दौरान झापा का प्रभाव धीरे-धीरे कम होता चला गया। उसका स्थान भाजपा ने लिया और कांग्रेस के मुकाबले खड़ी हो गई। बिरसा आंदोलन और झारखंड आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा जंगल, पहाड़ों व नदियों से आच्छादित खूंटी विधानसभा क्षेत्र हाल के दिनों में विवादित पत्थलगड़ी को लेकर भी पूरे देश में चर्चा का विषय रहा। खूंटी में शुरू से ही झारखंड नामधारी वोट बैंक का अपना स्थान रहा है।

झारखंड नामधारी कई दलों के उभर आने से इस वोट बैंक का बिखराव होने लगा और इसका लाभ त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस को मिलने लगा। वर्ष 1999 के चुनाव से स्थिति में एकदम से बदलाव आ गया। इस चुनाव तक भाजपा का वोट बैंक मजबूत हो गया था। अब एक सिरे पर भाजपा थी, तो दूसरे सिरे पर कांग्रेस व झापा समेत अन्य दल।

इस चुनाव में भाजपा ने युवा नीलकंठ सिंह मुंडा पर दांव खेला और अपने पहले प्रयास में ही नीलकंठ ने कांग्रेस की दिग्गज नेता सुशीला केरकेट्टा को पराजित कर पहली बार यह सीट भाजपा की झोली में डाल दी। तबसे लेकर 2014 तक लगातार चार विधानसभा चुनाव जीतकर नीलकंठ सिंह मुंडा ने न सिर्फ जीत का चौका लगाकर नया कीर्तिमान बनाया, बल्कि खूंटी को भाजपा के गढ़ के रूप में स्थापित भी कर दिया। यहां यह बताना जरूरी है कि खूंटी में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण त्रिकोणीय मुकाबला रहा है।

भाजपा का परंपरागत वोट जहां एकमुश्त पार्टी प्रत्याशी को मिल जाता है, वहीं विरोधी दलों के वोटों में बिखराव हो जाता है। इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलता है। खूंटी की इस गणित को भांपकर भाजपा के मुकाबले बड़े दल गठबंधन कर एक प्रत्याशी उतारने की कवायद तो करते हैं, लेकिन उनकी अपनी महत्वाकांक्षा इस कवायद को सफलीभूत नहीं होने देती है।

इस बार कांग्रेस व झामुमो ने गठबंधन कर एक प्रत्याशी तो दे दिया, लेकिन झापा व झाविमो समेत अन्य झारखंड नामधारी दल गठबंधन में शामिल नहीं हुए। फलस्वरूप, खूंटी में होने वाले इस बार के विधानसभा चुनाव में 18 प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया था। इनमें से छह प्रत्याशियों के नामांकन पत्र स्क्रूटनी के बाद रद हो गए। अब एक दर्जन उम्मीदवारों के बीच चुनावी दंगल होने वाला है।

यूं तो 21 नवंबर को नाम वापसी के बाद ही सही तस्वीर सामने आएगी, लेकिन यह कहा जा सकता है कि इस बार भी विरोधी दलों की आपसी धींगामुश्ती का फायदा भाजपा को मिल सकता है। चुनाव अभियान के इस प्रारंभिक दौर में भाजपा प्रत्याशी नीलकंठ सिंह मुंडा सबसे दमदार दिख रहे हैं। झामुमो-कांग्रेस के गठबंधन ने जिस उम्मीदवार को उतारा है, उन्हें काफी मेहनत करना होगा।

झारखंड विकास मोर्चा ने दयामनी बारला पर दांव खेला है। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि दयामनी बारला के चुनाव मैदान में उतरने का लाभ कहीं न कहीं भाजपा को ही मिलेगा। कहा जा रहा है कि ईसाई मतदाताओं में दयामनी बारला का अच्छा प्रभाव है। ऐसे में अगर वह ईसाई मतदाताओं के कुछ प्रतिशत वोट भी अपनी ओर खींचने में सफल रहती हैं, तो इसका फायदा भाजपा उठा सकती है।

खूंटी सीट पर सर्वाधिक सात बार रहा कांग्रेस का कब्जा

उल्लेखनीय है कि 1952 से 2014 तक हुए 15 विधानसभा चुनाव में सर्वाधिक सात बार (1967, 1969, 1972, 1980, 1985, 19990, 1995) कांग्रेस का खूंटी सीट पर कब्जा रहा है। शुरुआत के तीन विधानसभा चुनाव (1952, 1957, 1962) में झापा का खूंटी सीट पर कब्जा रहा था। वहीं, भाजपा का 1999 से लगातार चार बार इस सीट पर कब्जा है। जेपी आंदोलन के दौरान 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता पार्टी के प्रत्याशी खुदिया पाहन ने जीत हासिल की थी।

खूंटी विधानसभा सीट 2014 का परिणाम

विजेता - नीलकंठ सिंह मुंडा भाजपा - 47,032

उप विजेता - जीदन होरो झामुमो - 25,517

मतदाता

पुरुष मतदाता -1,02,993

महिला मतदाता -1,04,861

कुल मतदाता - 2,07,854

मतदान केंद्र - 297

तीन प्रमुख मुद्दे

1. बाईपास का निर्माण

खूंटी में प्रस्तावित बाईपास का निर्माण नहीं हो सका है। इस कारण लोगों को प्रतिदिन जाम की समस्या से दो-चार होना पड़ रहा है। सड़क दुर्घटनाएं भी अक्सर होती रहती हैं।

2. रेलवे स्टेशन

खूंटी रेल सुविधाओं से वंचित है। यहां के लोग ट्रेन पकडऩे के लिए हटिया या रांची रेलवे स्टेशन जाते हैं। केंद्र सरकार ने लोधमा, खूंटी वाया तमाड़ 120 किलोमीटर रेल लाइन बिछाने की घोषणा की थी। लेकिन, इस दिशा में काम सर्वे से आगे नहीं बढ़ सका है।

3. नॉलेज सिटी

खूंटी के लोगों को यहां नॉलेज सिटी बनने का सपना पूरा नहीं हो सका है। जबकि, नॉलेज सिटी के नाम पर 204 एकड़ भूमि भी अधिग्रहित कर ली गई है। जिला मुख्यालय के समीप ही बिरहू पंचायत में नॉलेज सिटी बनाने की घोषणा 2011 में तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने की थी।

'पिछले कार्यकाल में पूरे विधानसभा क्षेत्र में चाहे वह शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्र, सभी में जनता की आशा और अपेक्षा के अनुरूप विकास कार्य हुए हैं। यही कारण है कि पार्टी ने मुझे पांचवीं बार प्रत्याशी बनाया है। आने वाले पांच साल में जनता के हित में कार्य करूंगा। मुझे उम्मीद है कि विकास के नाम पर जनता मुझे एक बार और सेवा करने का मौका देगी।' -नीलकंठ सिंह मुंडा, भाजपा प्रत्याशी।

'खूंटी विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं का अंबार है। किसानों के लिए सिंचाई सुविधा का अभाव है। शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं है। कोई महिला कॉलेज नहीं है। बेरोजगारी व पलायन इस क्षेत्र की प्रमुख समस्या है। यदि जनता ने सेवा करने का अवसर दिया, तो इन सभी समस्याओं का निराकरण कराने का प्रयास करूंगा।' -सुशील पाहन, गठबंधन प्रत्याशी।

'जल, जंगल, जमीन का संरक्षण, विस्थापन, लचर शिक्षा व्यवस्था, बदहाल स्वास्थ्य सेवा आदि मुद्दों को ले जनता के बीच जाऊंगी। जंगल उजड़ रहे हैं। इसे सुरक्षित रखना है, ताकि सभी लोगों को पानी मिले। जल स्रोतों को सुरक्षित रखना है।' -दयामनी बारला, झाविमो प्रत्याशी।


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