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...तो इसलिए जल्दी हुए थे चुनाव

राज्य में सरकार बनने के बाद एक बजट सत्र हो जाता था, जिसके परिणामस्वरूप यहां के लोगों को राजनीतिक दृष्टि से गंभीरता से नहीं लिया जाता था।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 01 Dec 2017 04:30 PM (IST)Updated: Fri, 01 Dec 2017 04:31 PM (IST)
...तो इसलिए जल्दी हुए थे चुनाव
...तो इसलिए जल्दी हुए थे चुनाव

शिमला, राज्य ब्यूरो। एक समय था, जब प्रदेश के ठंडे रेगिस्तान कहे जाने वाले तीन जनजातीय क्षेत्र शेष विश्व से कटे रहते थे। यहां के लोगों के साथ किसी प्रकार का संपर्क नहीं रहता था, लेकिन हिमाचल प्रदेश का हिस्सा होने के बावजूद यहां के लोगों का सरकार में किसी प्रकार का योगदान नहीं रहता था। मुख्यमंत्री किसे चुना जाएगा, सरकार में प्रतिनिधित्व नहीं मिलता था। साल का आधा समय प्रशासनिक तंत्र ठप रहता था। राज्य में सरकार बनने के बाद एक बजट सत्र हो जाता था, जिसके परिणामस्वरूप यहां के लोगों को राजनीतिक दृष्टि से गंभीरता से नहीं लिया जाता था।

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प्रदेश के 65 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव पहले मार्च में होते थे और जनजातीय हलका भरमौर, लाहुल-स्पीति व किन्नौर जिलों के तहत आने वाले विधानसभा सीटों में चुनाव जून में होते थे। 2007 में तीनों क्षेत्रों के विधायकों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। तर्क दिया गया कि उनके संवैधानिक हितों का हनन हो रहा है।

अक्टूबर नहीं मार्च में होते थे चुनाव प्रदेश में विधानसभा चुनाव मार्च में होते थे। तीन सीटों पर चुनाव जून में होते थे, लेकिन 10 साल पहले प्रदेश में विधानसभा चुनाव अक्टूबर में होने की व्यवस्था शुरू हुई। प्रदेश में चुनाव छह माह पहले होते हैं। नई चुनाव व्यवस्था के कारण राज्य में छह माह कार्यकाल घटा है। 

हमें कोई पूछता नहीं था

हम भी तो राज्य का हिस्सा हैं। दूसरे लोगों की तरह हमारे भी हक है और हर मामले में हमारी राय शामिल होनी चाहिए। लेकिन चुनाव बाद में होने के कारण हमारे लोगों को कोई गंभीरता से नहीं लेता था। अब हमें बराबर का हक मिला है।

-ठाकुर सिंह भरमौरी, वनमंत्री एवं विधायक भरमौर।

सीएम चुनने में पूछा जाता है

पहले हमें पूछा तक नहीं जाता था कि प्रदेश का मुख्यमंत्री कौन बन रहा है, लेकिन अब ऐसा नहीं है। इतना ही नहीं जनजातीय क्षेत्र को सरकार में प्रतिनिधित्व मिल रहा है। यह बदलाव एक दशक से देखने में आया है।

-जगत सिंह नेगी, विधानसभा उपाध्यक्ष एवं विधायक किन्नौर। 

तीन कांग्रेस विधायक अदालत गए

चुनाव आयोग से अपेक्षित सहयोग नहीं मिलने केकारण 2007 में तीन तत्कालीन कांग्रेस विधायक ठाकुर सिंह भरमौरी, रघुबीर सिंह ठाकुर व जगत सिंह नेगी ने प्रदेश उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी कि उनके विधानसभा क्षेत्रों में भी शेष प्रदेश के साथ चुनाव करवाएं जाएं क्योंकि चुनाव बाद में होने के कारण यहां के लोगों को सरकार में किसी प्रकार का अधिमान नहीं दिया जाता है। न्यायालय ने इसे तर्कसंगत करार देते हुए चुनाव एक साथ या पहले करवाने की व्यवस्था लागू करवाई। 


तभी तुलसी राम विधानसभा अध्यक्ष बने

पंडित तुलसी राम जनजातीय क्षेत्र से पहली बार विधानसभा में अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति थे, जिन्हें विधानसभा अध्यक्ष बनने का अवसर मिला। उसके बाद वर्तमान सरकार में ठाकुर सिंह भरमौरी वनमंत्री हैं तो जगत सिंह नेगी विधानसभा उपाध्यक्ष हैं। यह तभी संभव हो पाया जब चुनाव एक साथ होने की व्यवस्था 2012 में शुरू हुई। इससे पहले 2007 में तीन सीटों पर चुनाव अक्टूबर में हुए थे, जबकि शेष प्रदेश में चुनाव नवंबर के अंत में हुए। 

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