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क्या मनोहर लाल-दुष्यंत ढहा पाएंगे पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा का किला, जानिए- चुनौतियों के बारे में

BJP-JJP गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ही अब हुड्डा के किले में सेंध लगाने की है। भविष्य की राजनीति के लिए भाजपा और जजपा दोनों के लिए ऐसा करना जरूरी भी है।

By JP YadavEdited By: Published: Tue, 29 Oct 2019 10:54 AM (IST)Updated: Tue, 29 Oct 2019 12:56 PM (IST)
क्या मनोहर लाल-दुष्यंत ढहा पाएंगे पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा का किला, जानिए- चुनौतियों के बारे में
क्या मनोहर लाल-दुष्यंत ढहा पाएंगे पूर्व CM भूपेंद्र सिंह हुड्डा का किला, जानिए- चुनौतियों के बारे में

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। मोदी लहर में अपने ही गढ़ में बैकफुट पर पहुंचे हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधानसभा चुनाव ने फिर मजबूती दी है। भारतीय जनता पार्टी और जननायक जनता पार्टी गठबंधन के सामने सबसे बड़ी चुनौती ही अब हुड्डा के किले में सेंध लगाने की है। भविष्य की राजनीति के लिए भाजपा और जजपा दोनों के लिए ऐसा करना जरूरी भी है। इसके लिए भाजपा की ओर से ठोस व्यूह रचना तैयार की जा रही है।

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कांग्रेस का चेहरा बन चुके भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ ढहाने के लिए भाजपा एक ओर जहां दुष्यंत चौटाला की मदद लेगी, वहीं दूसरी ओर उन निर्दलीय विधायकों की मदद भी लेगी, जो जाट बेल्ट में हुड्डा की राजनीतिक जमीन कमजोर करने में भाजपा की मदद कर सकते हैं। सत्ता में भागीदार बने दोनों दलों के सामने यह चुनौती चुनाव परिणाम के कारण आई है। कांग्रेस ने इस बार रोहतक, झज्जर व सोनीपत जिलों में जिस तरह का प्रदर्शन किया है, उसने भाजपा को नए सिरे से रणनीति बनाने के लिए मंजूर किया है। भाजपा के बड़े जाट नेताओं की हार इस बात का प्रमाण है कि हरियाणा की जाट बेल्ट में सबसे बड़ा वर्ग भाजपा के खिलाफ व हुड्डा के कारण कांग्रेस के साथ गया है।

रोहतक लोस में भाजपा को केवल एक सीट

विधानसभा चुनावों में रोहतक लोकसभा की 9 विधानसभा सीटों में से इस बार भाजपा को केवल एक विधानसभा सीट पर जीत नसीब हुई है। यह सीट भी अहीरवाल के रेवाड़ी जिले की कोसली में मिली है। रोहतक व झज्जर जिले की सभी आठ सीटों पर भाजपा हारी है। इनमें से सात सीटें जहां भूपेंद्र सिंह हुड्डा के समर्थकों ने जीती है वहीं एक सीट निर्दलीय बलराज कुंडू ने जीती है। भाजपा हुड्डा के गढ़ में रणजीत सिंह चौटाला व कुंडू के चेहरे की भी मदद ले सकती है। यह किसी से छुपा नहीं है कि भूपेंद्र सिंह हुड्डा अब अपनी राजनीतिक विरासत जूनियर हुड्डा यानी दीपेंद्र हुड्डा को सौंपने की तैयारी में है। दीपेंद्र को मोदी लहर में रोहतक लोकसभा सीट गंवानी पड़ी थी। उन्हें तब बेरी, बादली, झज्जर, महम व किलोई विस क्षेत्रों में बढ़त मिली थी। इस बार दीपेंद्र बहादुरगढ़, रोहतक व कलानौर सीटें कांग्रेस के कब्जे में लाने में सफल रहे हैं।

जाटों के साथ गैर जाटों को साधकर आगे बढ़े पूर्व सीएम हुड्डा

पूर्व सीएम ने जाटों के साथ गैर जाटों व अनुसूचित जाति के मतदाताओं को साधकर यह बढ़त हासिल की है। सोनीपत लोस क्षेत्र में भी भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपना जलवा साबित किया है। हालांकि जाट बेल्ट से बाहर भाजपा के कमजोर प्रदर्शन की वजह अकेले हुड्डा की बढ़ती ताकत नहीं बल्कि भितरघात, टिकट वितरण में गलती और अति आत्मविश्वास भी रहा है, लेकिन लोकतंत्र में कारण नहीं बल्कि संख्याबल देखा जाता है। अब भाजपा अपनी भविष्य की राजनीति को ताकतवर बनाने और जाट बेल्ट में हुड्डा को कमजोर करने के लिए पूरी ताकत लगाएगी। भाजपा ने जाटों को साथ जोड़े रखने के लिए पहले चौ. बीरेंद्र सिंह, ओपी धनखड़, कैप्टन अभिमन्यू व सुभाष बराला जैसे वरिष्ठ नेताओं को आगे रखा था, परंतु भाजपा के जाट नेता पार्टी को जाटों के बीच ताकतवर नहीं बना पाए। अब भाजपा नई रणनीति के तहत गैर जाटों के साथ जाटों के बीच भी सामाजिक समरसता का संदेश देगी। सबका साथ-सबका विकास के लिए हर वर्ग के चेहरे को आगे किया जाएगा।

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