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जानिए हरियाणा में कब से शुरू हुआ था ताऊ युग, पढ़ें दिलचस्‍प स्‍टोरी

Haryana Assembly Election 2019 राजनीतिक पंडितों का यह कहना है कि क्षेत्रीय दलों की शक्ति क्षेत्रीय मुद्दे होते हैं। मगर वर्तमान राजनीति में क्षेत्रीय मुद्दे गायब होते जा रहे हैं।

By Prateek KumarEdited By: Published: Thu, 26 Sep 2019 11:58 AM (IST)Updated: Thu, 26 Sep 2019 11:58 AM (IST)
जानिए हरियाणा में कब से शुरू हुआ था ताऊ युग, पढ़ें दिलचस्‍प स्‍टोरी
जानिए हरियाणा में कब से शुरू हुआ था ताऊ युग, पढ़ें दिलचस्‍प स्‍टोरी

रेवाड़ी, जेएनएन। Haryana Assembly Election 2019: राजनीति में देवीलाल चौटाला परिवार का कद हमेशा से बड़ा रहा है। सूबे में काफी लंबे समय तक इस परिवार की तूती बोलती रही इस बार के चुनाव में यह बिखरा-बिखरा-सा नजर आ रहा है। बात वर्ष 1982 ही है। तब विधानसभा चुनाव में लोकदल की कमान चौ. देवीलाल के हाथ में आ गई। इसके बाद सिरसा हरियाणा की राजनीति का केंद्र बनता चला गया। बाद में देवीलाल की दूसरी व तीसरी पीढ़ियां क्षेत्रीय दलों के सहारे आगे बढ़ी, जबकि भजनलाल व चौ. बंसीलाल कांग्रेस में मजबूत हुए।

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कांग्रेस से अनबन की बात सुर्खियों में रही

भजन ने हिसार व बंसी ने भिवानी का कायाकल्प किया। हालांकि बाद में दोनों की कांग्रेस से अनबन हुई। वर्ष 1991 में चौ. बंसीलाल हरियाणा विकास पार्टी के साथ चुनाव मैदान में उतरे, लेकिन उनकी पार्टी मात्र 12 सीटों पर सिमट गई। अगली पारी (1996) में बंसीलाल ने भाजपा से हाथ मिलाया और मुख्यमंत्री बने।

राजनीति में वो पांच विधायकों का झटके के बाद अकेले पड़ गए थे कुलदीप

भाजपा अतीत में कई बार किंग मेकर की भूमिका में रही। चौ. भजनलाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई ने भी हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन किया, परंतु पहली बार छह सीटें जीतने वाली क्षेत्रीय पार्टी को भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने सदन में ऐसा झटका दिया कि कुलदीप हजकां में अकेले रह गए। उनके पांचों विधायक उन्हें छोड़ हुड्डा के साथ चले गए और सत्ता सुख का आनंद लेने लगे। कुलदीप ने भाजपा से गठबंधन किया लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद वह भी टूट गया और कुलदीप ने हजकां का कांग्रेस में विलय कर लिया।

चौथे लाल का युग और क्षेत्रीय दल

देवीलाल, बंसीलाल व भजनलाल का युग समाप्त होने के बाद चौथे लाल बनकर उभरे हैं मनोहरलाल। इनके कार्यकाल में क्षेत्रीय दल सबसे कमजोर स्थिति में दिख रहे हैं, परंतु क्षेत्रीय दलों की कमजोरी व शक्ति का सही मूल्यांकन चुनाव परिणाम के बाद हो पाएगा। राजनीतिक पंडितों का यह कहना है कि क्षेत्रीय दलों की शक्ति क्षेत्रीय मुद्दे होते हैं। ऐसी स्थिति में जब क्षेत्रीय मुद्दे ही गायब हैं, तब परिणाम भी चौंकाने वाले हो सकते हैं। भविष्यवाणी से बेहतर इंतजार है।

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