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जानें- कैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव में मनोहरलाल व भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 'दुश्मन' हुए पस्त

सीटों की संख्या पर बात करें तो मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की शक्ति तो घटी दिखती है परंतु सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो अब मनोहर के सामने भाजपा में किसी तरह की कोई चुनौती नहीं है।

By JP YadavEdited By: Published: Wed, 30 Oct 2019 09:26 AM (IST)Updated: Thu, 31 Oct 2019 12:36 AM (IST)
जानें- कैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव में मनोहरलाल व भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 'दुश्मन' हुए पस्त
जानें- कैसे हरियाणा विधानसभा चुनाव में मनोहरलाल व भूपेंद्र सिंह हुड्डा के 'दुश्मन' हुए पस्त

रेवाड़ी [महेश कुमार वैद्य]। Haryana Assembly Election 2019: हरियाणा विधानसभा चुनाव 2019 संपन्न होने के साथ ही राजनीति के कई समीकरण भी बदल गए। जहां कुछ नेता इन चुनावों के बाद बेहद कमजोर हुए, वहीं कुछ ताकतवर बनकर उभरे हैं। सीटों की संख्या के आधार पर बात करें तो मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर की शक्ति तो घटी दिखती है, परंतु सिक्के का दूसरा पहलू देखें तो अब मनोहर के सामने भाजपा में किसी तरह की कोई चुनौती नहीं है।

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कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मामले में भी यही है। चुनावों के दौरान मनोहर व भूपेंद्र सिंह हुड्डा दोनों की राजनीतिक राह के कांटे निकल चुके हैं। वैसे प्रदेश में कांटा निकालने का किस्सा छेड़ने वाले महेंद्रगढ़ के पंडित जी इस बार हार गए हैं, परंतु उनका कांटे का किस्सा अब हरियाणा की राजनीति का हिस्सा बन चुका है। तभी तो गली-मोहल्ले से लेकर चौपालों तक सुना जा रहा है कि इस बार मतदाताओं ने मनोहर और भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कांटे निकाल दिए।

यह अलग बात है कि भाजपा में इस बार मुख्यमंत्री पद को लेकर किसी तरह का संशय नहीं था, परंतु कुछ मंत्रियों पर यह आरोप लगते रहे थे कि वह सीएम की अनदेखी करके मनमानी कर रहे थे। तब कई चेहरे दिल्ली की पसंद से थे। इस बार मनोहर को अपनी पसंद की कैबिनेट मिलेगी। इसी तरह हुड्डा कांग्रेस में निर्विवाद नेता बनकर उभरे हैं।

अहीरवाल में केवल कैप्टन अजय सिंह यादव उनके विरोध में थे। उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। उनके बेटे चिरंजीव राव को न भूपेंद्र सिंह हुड्डा से कोई शिकायत है न दीपेंद्र हुड्डा से। वह दोनों के नेतृत्व में काम करने के लिए तैयार हैं।

अशोक तंवर की तरह टकराव नहीं

कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर के साथ भूपेंद्र सिंह हुड्डा का लंबा टकराव चला। मजबूर होकर दिल्ली दरबार को चुनाव से कुछ समय पहले कुमारी सैलजा को प्रदेश अध्यक्ष बनाना पड़ा और भूपेंद्र सिंह हुड्डा को विधायक दल का नेता बनाया गया। कुमारी सैलजा, भूपेंद्र सिंह हुड्डा के साथ आगे बढ़ रही हैं। कांग्रेस के जिन वरिष्ठ नेताओं ने अपने समर्थकों के लिए टिकटें मांगे थे, वे दम नहीं दिखा पाए, जबकि भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने जिन चहेतों को टिकट दिए, उनमें से एकाध को छोड़ दें तो ज्यादातर जीते हैं। अब कुलदीप बिश्नोई और किरण चौधरी के पास भूपेंद्र सिंह हुड्डा से टकराने की शक्ति नहीं बची है, क्योंकि विधायकों की संख्या के आधार पर विधायक दल के नेता की उनकी कुर्सी छीनना किसी के वश में नहीं है।

बड़े-बड़े दिग्गज हुए ढेर

मनोहरलाल मंत्रिमंडल में कैप्टन अभिमन्यु व ओमप्रकाश धनखड़ का बड़ा कद था। रामबिलास शर्मा भी दूसरे सबसे वरिष्ठ मंत्री थे। भले ही तीनों इस बार सीएम पद के दावेदार नहीं थे, लेकिन इनका रुतबा किसी से छुपा हुआ नहीं था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला पूरी तरह मनोहर के मुरीद थे, परंतु वह भी चुनाव हार गए। मनोहर लाल को अब नए सिरे से अपने ही जूनियर नेताओं को शक्ति देकर उन्हें सीनियर नेता बनाना होगा।

गौरतलब है कि इस बार के चुनाव में पिछले पांच साल से सत्तासीन भारतीय जनता पार्टी को 40 और कांग्रेस को 30 और जननायक जनता पार्टी को 10 सीटें हासिल हुई हैं। वहीं, दूसरी और निर्दलीय उम्मीदवारों ने 10 सीटें जीती हैं। 

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