Haryana Election Result 2019: जानिए, हरियाणा में पांच महीने में भाजपा के वोटों में क्यों आई 22 फीसदी की गिरावट
Haryana Election Result 2019 हरियाणा में पांच महीने बाद अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों में लगभग 22 फीसदी की गिरावट आई है।
चंडीगढ़, जेएनएन। Haryana Election Result 2019: हरियाणा में अप्रैल के महीने में हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा को 58.02 फीसदी वोट मिले थे और लोकसभा की सभी 10 सीटें जीती थीं। पांच महीने बाद अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों में लगभग 22 फीसदी की गिरावट आई है। भाजपा को हरियाणा को 36.44 फीसदी वोट मिले हैं। लोकसभा चुनावों में भाजपा को 79 सीटों पर भाजपा को बढ़त थी। अब पांच महीने वह बढ़त घटकर 40 सीटों पर आ गई है। इससे सीधे-सीधे भाजपा को 39 सीटों का घाटा हुआ है। उसकी तुलना में कांग्रेस को 2019 के लोकसभा चुनावों में 10 सीटों पर बढ़त थी। अब कांग्रेस 31 सीटों पर जीत रही है। इस तरह कांग्रेस को 21 सीटों का फायदा हुआ। हालांकि वोट प्रतिशत में कांग्रेस को बहुत ज्यादा फायदा नहीं हुआ।
कांग्रेस को लोकसभा चुनावों में 28.42 फीसदी वोट मिले। वहीं अब विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को 28. 13 वोट मिले हैं। यानि कांग्रेस को अपने वोटों को बरकरार रखा है। यह विधानसभा चुनाव भाजपा के नुकसानदेह रहा। वहीं कांग्रेस के लिए फायदेमंद रहा।
हालांकि 2014 की तुलना में विधानसभा चुनाव में भाजपा को तीन फीसदी ज्यादा वोट मिले हैं। 2014 में भाजपा को 33.2 फीसदी वोट मिले थे, जबकि 2019 में भाजपा को 36.44 फीसदी वोट मिले हैं। 2014 में भाजपा की सीटें 47 थीं, वहीं 2019 में उसकी सीटें 40 हो गईं। 2014 की तुलना में कांग्रेस को 8 फीसदी वोट का फायदा हुआ। 2014 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 20.6 फीसदी वोट मिले, वहीं अब पार्टी को 2019 में 28.42 फीसदी वोट मिले हैं। 2014 में कांग्रेस को 15 सीटें मिलीं, वहीं अब 2019 में 31 हो गईंं यानी दोगुनी से ज्यादा।
इनेलो को सबसे बड़ा नुकसान
इस चुनाव में सबसे बड़ा नुकसान इनेलो को हुआ है। जहां 2014 के विधानसभा चुनाव में इनेलो को 19 सीटें मिलीं थीं और 24.1 वोट मिले थे, वहीं अब इस पार्टी को सिर्फ 1 सीट (अभय चौटाला की ऐलानाबाद सीट ) मिली है और पार्टी को सिर्फ 2.45 फीसदी वोट मिले हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा नवगठित दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी को मिला। एक साल पहले गठित पार्टी को 10 सीटें मिली हैं। सबसे नई पार्टी जजपा को 18 फीसद वोट मिले हैं।
इस चुनाव में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सुभाष बराला चुनाव हार गए। मनोहर लाल खट्टर मंत्रिमंडल के 7 मंत्रियों को पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस चुनाव का आकलन करने में कई न्यूज चैनल और अखबार भी असफल रहे। आइए जानते हैं वह कौन कारण रहे, जिनके कारण भाजपा को नुकसान उठाना पड़ा।
जाटों को नजरअंदाज करना पड़ा भारी
भारतीय समाज जाति प्रधान रहा। अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग जातियों का बाहुल्य रहा, जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। हरियाणा में जाट समाज हमेशा से अहम फैक्टर रहा है। यहां पर भाजपा को जाटों को नजरअंदाज करना भारी पड़ा। आजादी के बाद मनोहर लाल खट्टर पहले ऐसे मुख्यमंत्री थे, जो गैर जाट थे। इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जहां 30 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिया, वहीं भाजपा ने सिर्फ 20 जाट उम्मीदारों को टिकट दिया। हरियाणा में जाटों का वोट 22 प्रतिशत रहा। यहां 30 ऐसी सीटें हैं जहां जाट 30 फीसदी से ऊपर है। ऐसे में भाजपा के जाट उम्मीदवारों को भी जनता की नाराजगी का सामना करना पड़ा। भाजपा के प्रमुख जाट नेता कैप्टन अभिमन्यु, सुभाष बराला, ओमप्रकाश धनखड़ को पराजय का सामना करना पड़ा। ऐसी चर्चा है कि हरियाणा की खट्टर सरकार ने अपने कार्यकाल में जाटों की अनदेखी की है, जो अब उसे भारी पड़ती दिख रही है।
चुनावों से पहले कांग्रेस का नेतृत्व परिवर्तन रहा फायदेमंद
विधानसभा चुनावों से कांग्रेस का नेतृत्व परिवर्तन करना उसके लिए फायदेमंद रहा। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक तंवर के बीच तनाव की खबरें आम थीं। ऐसे में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हरियाणा में नेतृत्व परिवर्तन करते हुए कुमारी सैलजा को प्रदेश की कमान सौंपी जो कांग्रेस के लिए फायदेमंद रही। हरियाणा में जाट-दलित और मुस्लिम का समीकरण भारी पड़ता दिखा। यह तीनों का समीकरण हरियाणा की 80 फीसदी सीटों पर करीब 50 फीसदी वोट हासिल करने में सफल रहा। कई विश्लेषकों का यह भी कहना है कि कांग्रेस यह बदलाव कुछ समय पहले किया होता और भूपेंद्र सिंह हुडा को कांग्रेस हाईकमान निर्णय लेने की खुली छूट देता तो शायद रिजल्ट और बेहतर होते।
चुनावों में स्थानीय मुद्दे रहे हावी
हरियाणा के चुनाव में स्थानीय मुद्दे हावी रहे। कई चुनावी विश्लेष्कों का मानना है कि भाजपा ने स्थानीय मुद्दों के बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को प्रमुखता दी, जो चुनावों के दौरान भारी पड़े। जबकि हरियाणा के चुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दे हावी रहे, जिसमें किसानों की कर्जमाफी, युवाओं के रोजगार, महिलाओं की सुरक्षा, वाहनों के चालान, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे हावी रहे।
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