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हरियाणा में कांग्रेस ने की जोरदार वापसी, जानें हुड्डा समेत कौन से फैक्‍टर रहे कामयाब

कांग्रेस के पक्ष में यह उभार कैसे संभव हुआ इसके लिए कई अहम फैक्‍टर्स जिम्‍मेदार हैॆ।

By Nitin AroraEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 11:55 AM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 06:05 PM (IST)
हरियाणा में कांग्रेस ने की जोरदार वापसी, जानें हुड्डा समेत कौन से फैक्‍टर रहे कामयाब
हरियाणा में कांग्रेस ने की जोरदार वापसी, जानें हुड्डा समेत कौन से फैक्‍टर रहे कामयाब

नई दिल्ली, उमानाथ सिंह। हरियाणा से अभी तक मिले रुझानों में भाजपा बेशक सबसे आगे चल रही है, लेकिन अधिकांश एग्जिट पोल के अनुमानों के विपरीत कांग्रेस उसे जोरदार टक्‍कर दे रही है। रुझानों में भाजपा को फिलहाल 40 सीटें मिलती दिख रही हैं, वहीं कांग्रेस ने 31 सीटों पर अपनी बढ़त बना रखी है। इससे पहले कई एग्जिट पोल में कांग्रेस को 10 से 12 सीटें ही मिलने का अनुमान जताया गया था। ऐसे में अब यह सवाल उठ रहा है कि आखिर कांग्रेस के पक्ष में यह उभार कैसे संभव हुआ और कौन से फैक्‍टर्स इसके लिए जिम्‍मेदार हैं-

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पहला कारण- 2014 में हरियाणा में मनोहरलाल खट्टर के नेतृत्‍व में सरकार बनने के साथ ही राज्‍य सरकार से जाटों की नाराजगी शुरू हो गई थी। राज्‍य की राजनीति में परंपरागत रूप से जाटों का बोलबाला रहा है। ऐसे में किसी दलित पंजाबी को भाजपा द्वारा मुख्यमंत्री बनाना उन्‍हें नागवार गुजरा और तभी से जाट खट्टर के खिलाफ लामबंद होने लगे थे।

दूसरा कारण- खट्टर के पिछले पांच साल के शासन के दौरान जाटों ने आरक्षण समेत कई मुद्दों पर राज्‍यव्‍यापी आंदोलन किया। राजनीति के जानकारों की मानें तो राज्‍य सरकार ने जाटों के आंदोलन को ठीक से हैंडल नहीं किया। जबकि दूसरी तरफ महाराष्‍ट्र में भी वहां की सबसे मजबूत मानी जाने वाली मराठा कम्‍युनिटी ने आरक्षण समेत कई मुद्दों को लेकर आंदोलन चलाया, लेकिन मुख्‍यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन आंदोलनों को हैंडल करने में राजनीतिक और सामाजिक समझदारी दिखाई। यही कारण है कि फडणवीस के ब्राहृाण होने के बावजूद मराठा भी काफी हद तक भाजपा को सपोर्ट कर रहे हैं।

तीसरा कारण- भाजपा ने 2019 के विधानसभा चुनाव के लिए टिकट देने की प्रक्रिया में भी जाटों को नाराज कर दिया। उसने 80 फीसदी से अधिक टिकट गैर जाटों को दिया। इससे सामाजिक रूप से अभी भी काफी मजबूत जाट भाजपा के लिए खिलाफ एक तरह से लामबंद होने लगे। उन्‍हें लगा कि भाजपा राजनीतिक रूप से भी उन्‍हें हासिए पर धकेलना चाहती है। यही कारण है कि जाट ने इस बार हुड्डा द्वारा कांग्रेस का नेतृत्‍व संभालने के बाद उनके पक्ष में लामबंद होने लगे।

चौथा कारण- आखिरी क्षण में कांग्रेस के सीटों की संख्‍या पढ़ने का सबसे कारण हुड्डा फैक्‍टर साबित हो रहा है। जानकारों का मानना है कि भूपेंदर सिंह हुड्डा को अगर कुछ साल पहले राज्‍य का नेतृत्‍व सौंपा जाता तो आज कांग्रेस की हालत वहां कुछ और होती। वैसे भी लगातार 10 साल मुख्‍यमंत्री रहे हुड्डा का कद इस समय सबसे बड़ा है। लेकिन कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्‍व ने पिछले पांच सालों के दौरान उन्‍हें साइडलाइन किए रखा और अशोक तंवर को राज्‍य इकाई का प्रमुख बनाए रखा।

पांचवां कारण- जानकारों की मानें तो विधानसभा में अपनी पार्टी की जीत के प्रति मुख्‍यमंत्री मनोहर खट्टर कुछ अधिक आश्‍वस्‍त रहे हैं। यही कारण है कि उन्‍होंने जाट समेत उन लोगों की नाराजगी का ख्‍याल नहीं रखा, जो उनके लिए आखिरी वक्‍त में महंगा साबित हो सकते थे।


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