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लोकसभा चुनाव लड़ रहे भूपेंद्र हुड्डा की नजर कहीं और, जानें पूर्व सीएम हैं अब किस तैयारी में

लोकसभा चुनाव में पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी मैदान में उतरे हैं। हुड्डा जीत गए तो दिल्‍ली जाएंगे लेकिन उनकी नजर चंडीगढ़ पर ही है। या‍नि सोनीपत से चंडीगढ़ वाया दिल्‍ली।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Tue, 30 Apr 2019 10:14 AM (IST)Updated: Tue, 30 Apr 2019 09:03 PM (IST)
लोकसभा चुनाव लड़ रहे भूपेंद्र हुड्डा की नजर कहीं और, जानें पूर्व सीएम हैं अब किस तैयारी में
लोकसभा चुनाव लड़ रहे भूपेंद्र हुड्डा की नजर कहीं और, जानें पूर्व सीएम हैं अब किस तैयारी में

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। पूर्व मुख्‍यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अरसे बाद लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। 2004 के बाद वह 2019 में लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। वह लड़ाई तो दिल्‍ली संसद भवन पहुंचने की लड़ रहे हैं, लेकिन नजर चंडीगढ़ पर ही है। यानि सोनीपत से चंडीगढ़ वाया दिल्‍ली। 2004 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उनको 2005 में हरियाणा के सीएम की कुर्सी मिली थी और यही कारण है कि हुड्डा इस बार ऐसा सपना पाले हुए हैं।

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सोनीपत संसदीय क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सीमा से सटा है। यह कभी रोहतक जिले का ही हिस्‍सा हुआ करता था। इसमें कुछ हिस्सा झज्‍जर जिले का भी आता है। इस बेल्ट को देसवाली बेल्ट के नाम से जाना जाता है। देसवाली बेल्ट...मतलब, देसी माणस (आदमी), खेत खलिहान, दूध-दही और गाबरू जवान। वजह भी है, 19वीं सदी तक इस बेल्ट के लोगों के पास खेती ही एक मात्र जरिया था। पानी की कमी थी, इसलिए खेत-खलिहान खाली ही रहते थे। शिक्षा सोच से कोसों दूर। रिश्ते भी बमुश्किल हो पाते।

यह क्षेत्र जागरुकता और नई सामाजिक पहल का भी अगुवा रहा है। पहली बार चौधरी पीरू सिंह, चौधरी मातू राम और चौधरी देवी सिंह के प्रयास से 7 मार्च 1911 को रोहतक के बरौना में महापंचायत हुई। दिल्ली तक के चौधरी जुटे। मंथन में निकला कि पिछड़ेपन का बड़ा कारण अशिक्षा है। यहां जुटे 50 हजार लोगों ने फैसला किया, स्कूल खोले जाएं। देसवाली के लिए यही टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। आर्यसमाज ने भी शिक्षा का संदेश फैलाया।

जाट बहुल इस संसदीय क्षेत्र के मतदाता पिछली बार मोदी लहर के साथ चले थे। कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए रमेश कौशिक को इसका फायदा मिला और उन्हें देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में जाने का मौका मिला। इस बार के हालात काफी कुछ बदले हुए हैं। लगातार 10 साल तक सूबे के मुख्यमंत्री रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत में खुद ताल ठोंक रहे हैं। तीन बार सांसद रहे उनके बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा रोहतक में चौथी बार दस्तक दे रहे हैं।

कभी इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के करीबी रहे हुड्डा का यहां से चुनाव लड़ना हरियाणा का बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वाड्रा के जमीन सौदों की वजह से हुड्डा सुर्खियों में रहे। देश के उप प्रधानमंत्री और सूबे के मुख्यमंत्री रह चुके ताऊ देवीलाल को चार बार हराने का श्रेय भूपेंद्र हुड्डा को जाता है।

यह पहला मौका है जब हुड्डा रोहतक से बाहर निकलकर सोनीपत में चुनाव लड़ रहे। सोनीपत उनके लिए कतई भी नया नहीं है। रोहतक और सोनीपत दोनों संसदीय क्षेत्रों की सियासत एक साथ चलती है, एक साथ मोड़ लेती है। हुड्डा का निशाना लोकसभा चुनाव बिल्कुल भी नहीं है। उनकी निगाह इसी साल अक्टूबर में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिकी है।

कांग्रेसियों की आपसी गुटबाजी और हाईकमान की परीक्षा की वजह से हुड्ड़ा को सोनीपत के लोकसभा चुनाव के दौर से गुजरना पड़ रहा है। उन पर अपनी और बेटे दीपेंद्र की लोकसभा सीट जीतने के साथ-साथ बाकी समर्थकों को जिताने की भी बड़ी जिम्मेदारी है। कांग्रेस हाईकमान ने राज्य के सभी दिग्गजों को चुनाव लड़वाने का फरमान जारी किया तो हुड्डा ने भी यह चुनौती खुले दिल से स्वीकार की। उनके मुकाबले भाजपा ने रमेश कौशिक पर दोबारा दांव खेला है।

इनेलो से अलग हुई जननायक जनता पार्टी ने ताऊ देवीलाल के पड़पोते और अजय सिंह चौटाला के बेटे दिग्विजय सिंह चौटाला को हुड्डा के सामने उतारा है। दिग्विजय जींद उपचुनाव में दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता रणदीप सुरजेवाला को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। देसवाली बेल्ट में हुड्डा के सामने लोकसभा चुनाव लड़ने पर कई जाट नेता दिग्विजय से खुश नहीं हैं। हुड्डा खुद मानते हैं कि दिग्विजय बात बिगाड़ने के लिए आए हैं, जबकि दिग्विजय के बड़े भाई हिसार के निवर्तमान सांसद दुष्यंत चौटाला की नजर में दिग्विजय इलाके की जरूरत हैं।

बहरहाल, हुड्डा कांग्रेस के राष्ट्रीय नेताओं में शुमार हैं। उन्होंने अपना चुनाव प्रचार कार्यकर्ताओं पर छोड़ दिया है। हुड्डा जहां भी जनसभा करने जा रहे हैं, वहां उन्हें कार्यकर्ता सोनीपत की चिंता न करने के प्रति आश्वस्त कर रहे हैं। हुड्डा पर बाकी राज्यों में भी कांग्रेस के प्रचार की जिम्मेदारी है। हुड्डा अपने संसदीय क्षेत्र में जनसभाएं करने के बाद हेलीकॉप्टर से बाकी राज्यों में प्रचार करने जाते हैं और शाम को वापस लौटकर फिर सोनीपत संसदीय क्षेत्र की जनता के बीच शामिल हो जाते हैं। उन्हें अपने बेटे दीपेंद्र की भी इतनी ही चिंता है, जितनी अपनी और अपने समर्थक उम्मीदवारों की। हालांकि हुड्डा अपने कार्यकर्ताओं के बूते इलेक्शन को लेकर निश्चिंत हैं।

सोनीपत में रहते हुए अपने प्रचार के साथसाथ बेटे के चुनाव को फोन के जरिये मैनेज किया जा रहा है। रोहतक में अब तक हुए 17 बार के चुनाव में 14 बार यह सीट कांग्रेस खासकर हुड्डा परिवार के खाते में रही है। रोहतक में भाजपा ने कांग्रेस की पृष्ठभूमि वाले पूर्व सांसद डॉ. अरविंद शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है। चौधरी मातू राम पूर्व सीएम हुड्डा के दादा थे, जिन्होंने देसवाली बेल्ट में शिक्षा की अलख जगाई। अपनी जनसभाओं में हुड्डा साफ कहते हैं कि उनका निशाना सोनीपत के रास्ते वाया दिल्ली होते हुए चंडीगढ़ पहुंचने का है। इसका
मतलब साफ है कि चंडीगढ़ (हरियाणा) में सरकार बनाने की दावेदारी उन्होंने नहीं छोड़ी है। 

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'संगठन नहीं है मगर कार्यकर्ता कांग्रेस के हक में लामबंद'

'' यह बात सही है कि हरियाणा में कांग्रेस का ब्लॉक और जिले का संगठन नहीं है, लेकिन यह बात भी पूरी तरह से सही है कि कार्यकर्ता संगठनात्मक रूप से एकजुट हैं और पार्टी के लिए काम कर रहे हैं। राज्य की सभी 10 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस के हक में माहौल है। मेरा और दीपेंद्र का चुनाव कार्यकर्ताओं ने ही संभाला हुआ है। बाकी सीटें भी हम ही जीतेंगे।

                                                                                                    - भूपेंद्र हुड्डा, पूर्व सीएम, हरियाणा।


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