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लोकसभा चुनाव: मायावती के लिए कभी बंजर नहीं रही हरियाणा की जमीन

बसपा सुप्रीमो मायावती के लिए सियासी रूप से हरियाणा की बंजर नहीं रही। बसपा को यहां से राजनीतिक रूप से चुनावों में फायदा हाेता रहा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Mon, 29 Apr 2019 10:59 AM (IST)Updated: Mon, 29 Apr 2019 10:59 AM (IST)
लोकसभा चुनाव: मायावती के लिए कभी बंजर नहीं रही हरियाणा की जमीन
लोकसभा चुनाव: मायावती के लिए कभी बंजर नहीं रही हरियाणा की जमीन

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। बसपा सुप्रीमो मायावती के हाथी के लिए हरियाणा की राजनीतिक जमीन बंजर नहीं है। कभी अकेले तो कभी गठजोड़ के बूते बहुजन समाज पार्टी हरियाणा के हर चुनाव में अपनी उपस्थिति दर्ज कराता रहा है। हजकां के ट्रैक्टर और इनेलो के चश्मे को छोड़कर मायावती का हाथी अब भाजपा के बागी सांसद राजकुमार सैनी की लोकतांत्रिक सुरक्षा पार्टी के आटो पर सवार है।

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मायावती दलितों की राजनीति करती हैं तो राजकुमार सैनी खुद को पिछड़ों के नेता मानते हैं। उत्तर प्रदेश के सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को अपनाते हुए बसपा-लोसुपा गठबंधन ने हरियाणा में जिस तरह से टिकटों का वितरण किया है, उसके मद्देनजर इस गठबंधन को लोकसभा चुनाव में अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने की आस है।

सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर चल रहा बसपा-लोसुपा का गठबंधन

बसपा और लोसुपा मिलकर सभी 10 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। लोसुपा के खाते में भिवानी-महेंद्रगढ़ और रोहतक लोकसभा सीटें आई हैं। बाकी आठ सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं। राजकुमार सैनी कुरुक्षेत्र लोकसभा सीट से भाजपा सांसद थे अौर पार्टी से बागी होने के बाद अपनी अलग पार्टी बनाई।

जाट आरक्षण आंदोलन के दौरान पिछड़ों की अनदेखी के आरोप लगाते हुए सैनी सत्तारूढ़ भाजपा से अलग हुए थे। हरियाणा की राजनीति में यह पहला मौका है, जब केंद्र व राज्य में सरकार होने के बावजूद कोई सांसद पिछड़ों के हित साधने का दम भरते हुए कुर्सी को छोड़कर फील्ड में उतर आया है।

बसपा-लोसुपा गठबंधन के उम्मीदवारों के हक में माहौल बनाने के लिए उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती आज हरियाणा आ रही हैं। उत्तर प्रदेश में बसपा और समाजवादी पार्टी का गठबंधन है। दलितों को कांग्रेस और पिछड़ों को भाजपा का वोट बैंक माना जाता रहा है। मायावती 29 अप्रैल को भिवानी में भिवानी-महेंद्रगढ़, हिसार और सिरसा तथा इसी दिन फरीदाबाद में फरीदाबाद व गुरुग्राम लोकसभा स्तर की रैलियां करेंगी। उनका दूसरा दौरा 9 मई को होगा। इस दिन मायावती अंबाला में अंबाला, कुरुक्षेत्र और पानीपत में करनाल, रोहतक व सोनीपत लोकसभा क्षेत्रों की रैलियां होंगी।

दो दिन के दौरे में सभी 10 लोकसभा क्षेत्रों को कवर करने का लक्ष्य लेकर चल रही मायावती के पिटारे में सोशल इंजीनियरिंग का बड़ा फार्मूला है। इनेलो के साथ गठबंधन के बावजूद मायावती एक बार भी हरियाणा नहीं आई। यह पहला मौका है, जब मायावती लोसुपा संरक्षक राजकुमार सैनी के बुलावे पर पूरे राज्य को कवर करने की मंशा से हरियाणा आ रही हैं। हरियाणा में 1998 में इनेलो-बसपा का पहला गठबंधन हुआ था। तब दोनों ने लोकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था। इनेलो ने चार और बसपा ने एक सीट जीती थी। अंबाला आरक्षित सीट से बसपा के अब तक के इकलौते सांसद अमन कुमार नागरा जीते थे।

इनेलो ने उस समय हरियाणा लोकदल राष्ट्रीय के नाम से चुनाव लड़ा था। कुरुक्षेत्र में कैलाशो देवी, सोनीपत में कृष्ण सिंह, हिसार में सुरेंद्र सिंह बरवाला व सिरसा में डॉ. सुशील कुमार इंदौरा इनेलो की टिकट पर चुनाव जीते थे। उस समय कांग्रेस को 26.02, भाजपा को 18.89 और हरियाणा लोकदल राष्ट्रीय को 25.90 वोट मिले थे। बसपा ने 7.68 प्रतिशत मत हासिल किए थे। चुनाव के बाद बसपा और इनेलो का गठबंधन टूट गया था।

हरियाणा में 2009 में हजकां के साथ भी बसपा ने विधानसभा चुनाव से पहले गठबंधन किया, लेकिन यह गठबंधन चुनाव की दहलीज पार नहीं कर पाया। बसपा और हजकां चंद महीनों में ही अलग-अलग हो गए थे। 2018 में हरियाणा में बसपा और इनेलो के बीच एक बार फिर चुनावी गठबंधन हुआ। इसके बाद इनेलो दोफाड़ हुई और पारिवारिक रिश्तों में खटास आ गई थी, जिस कारण गठबंधन टूटा और लोसुपा के साथ बसपा के नए रिश्ते बने।

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भाजपा के पिछड़े और कांग्रेस के दलित वोटबैंक पर निगाह

जींद उपचुनाव में इनेलो-बसपा उम्मीदवार चार हजार मतों का आंकड़ा तक नहीं छू पाया। इसके बाद बसपा ने सवा नौ महीने के अंदर ही इनेलो से गठबंधन तोड़ लिया। अब हरियाणा में बसपा और लोसुपा का गठबंधन है। बसपा दलितों की राजनीति करते हुए सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले में विश्वास रखती है। इस बार लोकसभा चुनाव में बसपा-लोसुपा दलितों और पिछड़ों को साथ लाकर बड़े दलों के राजनीतिक समीकरणों को गड़बड़ा सकती हैं। लोसुपा और बसपा गठबंधन का सबसे च्यादा नुकसान सत्तारूढ़ भाजपा को हो सकता है। कांग्रेस के एससी वोट बैंक में भी गठबंधन सेंधमारी करेगा।

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जीटी रोड बेल्ट के अलावा यूपी से सटे जिलों में बसपा का आधार

बसपा का वोट बैंक जीटी रोड बेल्ट के अलावा जींद और यूपी से सटे फरीदाबाद, नूंह, पलवल में अच्छा खासा रहा है। नारायणगढ़, जगाधरी, यमुनानगर, असंध, जुलाना, घरौंडा, सफीदों, पृथला, बडख़ल, तिगांव और हथीन आदि सीटों पर बसपा की अच्छी पैठ रही है। राज्य में बसपा अपनी उपस्थिति विधानसभा चुनावों में लगातार दर्ज कराती रही है। 1991 में पहली बार बसपा प्रत्याशी सुरजीत सिंह नारायणगढ़ से विधायक बने थे। इसके बाद लगभग हर विधानसभा चुनाव में बसपा का एक न एक विधायक बनता रहा है। वर्तमान में पृथला से टेकचंद शर्मा बसपा के विधायक हैं। इनेलो के साथ हुए गठबंधन के दौरान बसपा टेकचंद शर्मा को अपनी पार्टी से बाहर कर चुकी है।


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