LokSabha Election 2019: दावा साकार का, हकीकत में स्वच्छ भारत मिशन में तालाबंदी
सरकार ने खुले में शौचमुक्त करने के लिए भाजपा सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन को चलाया। दावे बहुत हुए लेकिन वह साकार नहीं हो सके।
पानीपत/करनाल, जेएनएन। स्वच्छ भारत मिशन। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का सपना। दावा तो साकार होने का लेकिन हकीकत तालाबंदी। सरकार ने खुले में शौचमुक्त करने के लिए युद्धस्तर पर अभियान चलाया। शौचालयों के निर्माण पर करोड़ों रुपये खर्च किए गए। ग्रामीण अंचल में सब्सिडी देकर लोगों को जागरूक करने के साथ-साथ शौचालय बनवाए। नेताओं और जनप्रतिनिधियों ने खूब वाहवाही भी लूटी।
अब बात करते हैं सिक्के के दूसरे पहलू की। शहरों और गांवों में अधिकतर सार्वजनिक शौचालयों पर ताले लटके हैं। जो खुले हैं उनकी नियमित सफाई नहीं होती। ठेकदारों को को ठेका दे रखा है, लेकिन अफसरों की लापरवाही और मिलीभगत से मोदी का सपना टूटता नजर आ रहा है। शौचालयों पर ताले लटके होने के कारण लोग खुले में शौच करने को मजबूर है। जागरण टीम ने जीटी बेल्ट के सभी लोकसभा क्षेत्रों और उनके अंतर्गत आने वाले जिलों की पड़ताल की। प्रस्तुत है हकीकत बयां करती रिपोर्ट -
जमीनी हकीकत है दावों से विपरीत
अंबाला को 98 प्रतिशत ओडीएफ घोषित किया जा चुका है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय बनने तो दूर सैंकड़ों लोगों के अभी तक फार्म ही नहीं भरे गए। प्रशासन ने करीब 4750 लोगों को इस योजना के तहत लाभ देते हुए 6 हजार और 12 हजार रुपये की राशि जारी की है। इतना ही नहीं प्रशासन के द्वारा चलाए गए अभियान के तहत भी करीब पांच हजार लोगों ने अपने स्तर पर राशि खर्च कर अपने घरों में शौचालय बनवाए। इसके बावजूद आज भी सैंकड़ों मकान ऐसे हैं, जहां पर शौचालय नहीं हैं। अंबाला छावनी से सटे गांव बोह, कृष्णा कॉलोनी, जंडली आदि जगहों पर कुछ घरों में शौचालय नहीं है।
शौचालयों में पानी के कनेक्शन तक नहीं
यमुनानगर में नगर निगम ने 150 मोबाइल शौचालय रखे। एक शौचालय पर 70 हजार रुपये खर्च कर दिए। कुछ शौचालयों पर आज तक पानी के कनेक्शन नहीं दिए और जिन पर दिए गए हैं, वह खस्ताहाल हैं। ऐसे शौचालयों की संख्या कम नहीं है जिनपर ताले लटके हुए हैं। ग्रामीण अंचल में व्यवस्था पर सवाल उठ रहे हैं। नगर निगम की ओर से रखे गए इन शौचालयों के लिए अतिरिक्त सफाई कर्मचारी नहीं लगाए गए हैं, जिस क्षेत्र में यह शौचालय रखे हुए हैं, उन्हीं क्षेत्रों के लोगों की एक कमेटी बनाई हुई है, लेकिन यह लोग नियमित रूप से सफाई नहीं करते।
अनदेखी का शिकार
कुरुक्षेत्र में पांच साल में मोबाइल, ई-टॉयलेट और जनसुविधा केंद्र तो बना दिए, मगर उनमें से कई अनदेखी का शिकार हो गए। कहीं प्रशासन बिजली और सीवर कनेक्शन देना भूल गया, तो कुछ जगह पर टॉयलेट गंदगी से अट गए। ई-टॉयलेट का ऑटोमेटिक दरवाजा खोलने में ही लोगों का पसीना छूट गया। हर बार सिक्का डालने की समस्या में उलझे लोगों ने जब शौचालय के बाहर ही जाना शुरू कर दिया तो उनके दरवाजों के लॉक भी हटाने पड़े। इस सबसे खुले में शौच की काफी स्थिति तो सुधरी मगर पूरी तरह से नहीं। साधु मंडी में यूरिनल शौचालय बनाया गया, जिसका कनेक्शन आज तक सीवर में नहीं दिया गया। इससे शौचालय की गंदगी वहीं खुले मैदान में फैलने लगी, जिसके बाद दुकानदारों ने इसका उपयोग करना ही बंद कर दिया। इसके बाद गांधी नगर के मोबाइल शौचालय की हालत आज तक नहीं सुधरी। सुनसान और गंदगी में खड़े होने से इसमें लोग जाने से परहेज करते हैं।
सुविधाएं न के बराबर
कैथल में नगर परिषद की ओर से शहर में सार्वजनिक स्थानों पर प्री फेब्रिकेटिड शौचालय रखे गए हैं। इसके अलावा करीब 50 स्थानों पर पब्लिक शौचालय बनाए हुए हैं और चार मोबाइल शौचालय रखे गए हैं। चार में से एक शौचालय कंडम हो चुका है और तीन भी खस्ता हाल में है। फेब्रिकेटिड शौचालयों की देखभाल के लिए नप की ओर से ठेका दिया गया है। इस पर महीने का एक लाख 30 हजार रुपये खर्च किया जाता है। शहर को खुले में शौच मुक्त घोषित किया हुआ है, लेकिन शौचालयों में सुविधाएं न के बराबर दी जा रही हैं। शहर में 16 अलग-अलग स्थानों पर फेब्रिकेटिड शौचालयों की यूनिट रखी गई है। एक यूनिट में चार से पांच शौचालय हैं। इन पर नगर परिषद के करीब 52 लाख रुपये खर्च हुए थे।
सफाई पर खर्च हो गए 27 करोड़
करनाल में सफाई के नाम पर 27 करोड़ रुपये खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन नगर निगम जनसुविधाओं को दुरुस्त रखने में सफल नहीं हो पा रहा। ओडीएफ प्लस का सर्टिफिकेट हासिल करने के बावजूद भी नगर निगम, शहर वासियों व राहगीरों को शौचालयो में सफाई उपलब्ध नहीं करवा रहा है। सामूहिक प्रयासों से करनाल ने स्वच्छता रैंकिंग में अपना प्रदर्शन सुधरा और इस बार 23वां रैंक करनाल ने हासिल किया। इस सर्वेक्षण के बाद सार्वजनिक शौचालयों की हालात फिर खराब हो गई है। रेलवे रोड स्थित सरकारी स्कूल के पास बने स्मार्ट शौचालय के पास गंदगी इस कदर हावी है कि लोग अधिकारियों की बजाय सरकार के नुमाईंदों को खोज रहे है। यहां न तो पानी की उचित व्यवस्था है और न ही बिजली का प्रबंध। शाम होते है शरारती तत्व सक्रिय हो जाते है, जो आने जाने वाले लोगों पर फब्तियां कसते नजर आते है।
ग्रामीण क्षेत्र खुले में शौच मुक्त हो चुका
पानीपत का ग्रामीण क्षेत्र खुले में शौच मुक्त हो चुका है। शहर को गत दिनों ओडीएफ प्लस घोषित किया गया है। स्वच्छता सर्वेक्षण 2019 में नगर निगम को इसके अंक भी मिले थे। ग्रामीण क्षेत्र में 2001 से 2016 तक घरों में शौचालय बनाने का काम चला। मोटीवेटरों ने लोगों को इसके लिए जागरूक किया। दो अक्टूबर 2016 को पानीपत के ग्रामीण क्षेत्र को खुले में शौच मुक्त घोषित किया गया। नगर निगम क्षेत्र टॉयलेट बनवाने के लिए 3057 लोगों ने आवेदन किया। इनमें से 1652 के टॉयलेट मंजूर किए गए। इनमें से अधिकतर को सात-सात हजार रुपये की पहली किश्त दी जा चुकी है। कुछ लोगों ने टॉयलेट का निर्माण कार्य पूरा करा लिया है। उनकी दूसरी किश्त भी जारी कर दी गई है। शहर में सार्वजनिक जन सुविधाके लिए 35 शौचालय बनाए गए हैं। इनमें से 24 शौचालयों को सुलभ कंपनी को दिए गए हैं। निगम कमिश्नर वीना हुड्डा ने बताया कि सफाई कार्य में लगे अधिकारियों को हर रोज दो-दो सार्वजनिक शौचालयों का निरीक्षण कर रिपोर्ट देने के आदेश दिए गए हैं।
ये भी जानें
- अंबाला में 4750 लोगों को 12 हजार रुपये प्रति व्यक्ति जारी की गई राशी
- यमुनानगर में 150 मोबाइल शौचालय रखे गए, एक पर 70 हजार रुपये हुए खर्च
- कुरुक्षेत्र में 100 शौचालय शहर में बनवाए गए, लेकिन रखरखाव नहीं हो रहा
- कैथल में शौचालयों पर नगर परिषद के करीब 52 लाख रुपये खर्च किए
- करनाल में 27 करोड़ रुपये शौचालयों पर सफाई पर किए जा चुके खर्च
- पानीपत जिले में ग्रामीण क्षेत्र में करीब 25 हजार शौचालय बनाने का प्रशासन का दावा