Lok sabha Elections 2019: 85 लाख चौकीदारों के हक की चौकीदारी का सवाल
देशभर में इन दिनों चौकीदार चर्चा में है। पीएम से लेकर सीएम तक ट्विटर से लेकर फेसबुक तक... करोड़ों लोग चौकीदार बन चुके हैं।
नई दिल्ली, अतुल पटैरिया। देशभर में इन दिनों चौकीदार चर्चा में है। पीएम से लेकर सीएम तक, ट्विटर से लेकर फेसबुक तक... करोड़ों लोग चौकीदार बन चुके हैं। मैं भी चौकीदार... हैशटेग दुनियाभर में टॉप ट्रेंड कर रहा है। चौकीदार के इस बढ़ते कद ने देशभर के उन 85 लाख चौकीदारों यानी निजी सुरक्षा कर्मियों की भी आस बढ़ा दी है, जो अरसे से अपने हक से वंचित हैं।
जी हां, चौकीदार चर्चा में तो हैं, लेकिन इन असल चौकीदारों के हित को तवज्जो मिलना शेष है। सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट सिक्युरिटी इंडस्ट्री के अध्यक्ष कुंवर विक्रम सिंह बताते हैं कि इन 85 लाख प्राइवेट सिक्युरिटी गार्ड्स के हित संरक्षण को भी यदि इस मुहिम (मैं भी चौकीदार) से समर्थन मिल जाता तो 85 लाख गरीब परिवारों के करीब चार करोड़ सदस्यों का भला हो जाता।
विक्रम ने बताया कि दो साल पहले केंद्र सरकार ने व्यवस्था भले ही बना दी, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ी है। निजी सुरक्षा गार्डों को अकुशल श्रमिक की बजाय कुशल श्रमिक और बंदूकधारी गार्ड व सुपरवाइजर को अतिकुशल श्रमिक श्रेणी का दर्जा देने के लिए इन्हें ट्रेनिंग और सर्टिफिकेट देने को केंद्र सरकार ने कहा था।
कुशल श्रेणी के सुरक्षा गार्ड का न्यूनतम वेतन 15,000 रुपये प्रति माह और अतिकुशल का वेतन 25,000 रुपये प्रति माह तक निर्धारित कर दिया गया। सभी राज्यों को निर्देश जारी हुआ कि इस व्यवस्था का पालन करें...। लगा कि इससे इन लाखों परिवारों के दिन फिर जाएंगे। इनके वेतन में 40 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि होगी। लेकिन बावजूद इसके जमीन पर ऐसा कुछ होते नहीं दिखा है।
अधिकांश राज्यों ने इसे लागू नहीं किया है। दिल्ली जैसे इक्का-दुक्का राज्यों ने तीन-चार सौ रुपये की वृद्धि कर खानापूरी कर दी है। दिल्ली में ही इस समय साढ़े तीन लाख निजी गार्ड हैं। इन्हें ट्रेनिंग देने के लिए महज तीन ट्रेनिंग सेंटर बन पाए हैं। वेतन तभी बढ़ेगा जब ट्रेनिंग-सर्टिफिकेट मिल जाएगा। लिहाजा, सब कुछ जस का तस बना हुआ है। स्थिति यह है कि आठ-दस हजार रुपये पाने के लिए निजी गार्ड को 12 घंटे की ड्यूटी (चार घंटे अतिरिक्त) करनी पड़ रही है।
ना तो अवकाश मिल रहा है और ना ही संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को मिलने वाली सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी अन्य सुविधाएं। निगरानी करने वाले विभाग बिके हुए हैं। बकौल विक्रम सिंह, हमने कुछ माह पहले ही प्रधानमंत्री जी को सलाह दी कि इस सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए क्यों न डायरेक्टोरेट ऑफ प्राइवेट सिक्युरिटी सर्विसेज बना दिया जाए। हमने प्रधानमंत्री जी से यह भी मांग की कि शहर की झुग्गियों में रह रहे ऐसे लाखों परिवारों को क्यों न प्रधानमंत्री आवास योजना का लाभ दिया जाए।
हमने इससे पहले कांग्रेस सरकारों के दौर में भी आवास की मांग उठाई थी,लेकिन मोदी जी ने इस पर फौरन सहमति जताई और इसे अमल में लाने को आदेश भी दे दिया। किंतु तब से लेकर अब तक मंत्रालयों से लेकर विभागों तक केवल मीटिंगों का दौर चल रहा है पर व्यवस्था नहीं बनाई जा सकी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 तक देश में 1.2 करोड़ सिक्युरिटी गार्ड्स की जरूरत होगी। लेकिन विक्रम कहते हैं कि आज हालात ये हैं कि कोई व्यक्ति इस नौकरी में आना नहीं चाहता।
इस सेक्टर में 30 फीसद मानवसंसाधन की कमी बन चुकी है, जो बढ़ती ही जाएगी। मोहल्लों और सोसाइटीज के आरडब्ल्यूए इस सेक्टर में आज बड़े नियोक्ता बन गए हैं, जो 90 फीसद तक नौकरी दे रहे हैं। लेकिन इनमें 99 फीसद नियमों का पालन नहीं कर रहे। यही हाल बड़ी-बड़ी एजेंसियों का है। रोल पर वेतन कुछ दिखाते हैं, देते आधे से कम हैं। श्रम विभाग के जांच अधिकारियों की मिलीभगत से रिकार्ड में सबकुछ दुरुस्त दिखाते हैं। लिहाजा, हम सरकार से यही मांग करते हैं कि देश के 85 लाख चौकीदारों को इस शोषण से बचाएं।
सेंट्रल एसोसिएशन ऑफ प्राइवेट सिक्युरिटी इंडस्ट्री के अध्यक्ष कुंवर विक्रम सिंह ने कहा कि सरकार ने तो व्यवस्था बना दी, लेकिन इसका क्रियान्वयन सुनिश्चित करने के लिए जो सिस्टम है, वह समस्या की जड़ है। श्रम विभाग एनफोर्समेंट एजेंसी है, नियम-कायदे लागू हो रहे हैं या नहीं, यह सुनिश्चित कराना इसका काम है। लेकिन नियोक्ता के द्वारा किए जा रहे शोषण को ये सामने नहीं लाते।