क्या कहता है दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 का मतदान प्रतिशत, जानें विशेषज्ञ की राय
दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान अब खत्म होने वाला है। हालांकि इस बार यहां का मतदान फीसद पिछले चुनाव के मुकाबले कम रहा है। विशेषज्ञों के लिए इनका भी कुछ अर्थ है।
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए मतदान तय समय समाप्त हो चुका है। यह मतदान सुबह 8 बजे से शुरू था। छह बजे के बाद केवल उन्हीं को वोट डालने की इजाजत दी जाएगी तो तय समय तक मतदान केंद्र के अंदर लाइन में मौजूद रहेंगे। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक शाम 5:45 बजे तक मतदान प्रतिशत करीब 54 फीसद था।
इन आंकड़ों के मुताबिक सुबह 9 बजे से दोपहर 3 बजे तक मतदान प्रतिशत लगातार बढ़ा तो जरूर लेकिन यह वर्ष 2015 में हुए मतदान के मुकाबले कम था। आपको बता दें कि वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में 67.12 फीसद मतदान हुआ था। उस वक्त दोपहर 3 बजे तक करीब 51 फीसद मतदान हुआ था, जबकि इस बार यह केवल 30.2 फीसद ही था। मतदान का ये ट्रेंड ये भी बता रहा है कि दोपहर बाद मतदान में तेजी देखने को मिली है। लेकिन इसके बाद भी मतदान प्रतिशत के आंकड़े अपने आप में बेहद दिलचस्प होते रहे हैं।
दैनिक जागरण ने भी मतदान प्रतिशत के इन आंकड़ों का अर्थ समझने के लिए राजनीतिक विश्लेषक और चुनाव विशेषज्ञ आशा खोसा से बात की। उन्होंने पूर्व में हुए चुनाव और उनके मतदान प्रतिशत के आधार पर कहा कि किसी भी चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ना आमतौर पर सत्ताधारी पार्टी के लिए खतरे की घंटी माना जाता है। वहीं मतदान प्रतिशत का कम होना सत्ताधारी पार्टी के समर्थन की आहट होती है।
दिल्ली विधानसभा के लिए डाले गए मतदान को लेकर उन्होंने ये तो नहीं कहा कि यहां की राजनीति किस करवट बैठेगी, लेकिन उन्होंने इतना जरूर कहा कि मतदाताओं का एक तबका अपनी पसंद के प्रत्याशी और पार्टी को जिताने के लिए मतदान केंद्र तक जरूर गया है। इसकी वजह उस पार्टी की नीतियों और किए गए काम से इन मतदाताओं का संतुष्ट होना है। वहीं वोटिंग फीसद का कम होने का एक संकेत ये भी है कि सत्ताधारी पार्टी के विरोधी मतदाताओं का मतदान के लिए कम निकलना हो सकता है।
दिल्ली विधानसभा चुनाव में उठे मुद्दों के बाबत पूछे गए सवालों के जवाब में उन्होंने कहा कि सत्ताधारी पार्टी हमेशा ही अपने किए काम को लेकर चुनाव के मैदान में जाती रही है। वहीं विपक्षी पार्टियां भी स्थानीय मुद्दों पर ही राज्य के विधानसभा चुनाव में उतरती रही हैं। लेकिन इस बार जहां आम आदमी पार्टी अपने किए काम को लेकर मैदान में उतरी थी वहीं उसको टक्कर देने वाली भाजपा राष्ट्रीय मुद्दों के साथ मैदान में आई थी। पूर्व के चुनावों में इस तरह के उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं कि राष्ट्रीय मुद्दों के दम पर किसी पार्टी को राज्य विधानसभा चुनाव में सफलता मिली हो।