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अरविंद केजरीवाल की लहर में 22 साल बाद ढह गया किला, जनता में बुलंद नहीं रहा 'इकबाल'

वर्ष 2015 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की ऐसी लहर चली कि बड़े-बड़े सूरमा धराशायी हो गए।

By JP YadavEdited By: Published: Fri, 10 Jan 2020 09:21 AM (IST)Updated: Fri, 10 Jan 2020 07:06 PM (IST)
अरविंद केजरीवाल की लहर में 22 साल बाद ढह गया किला, जनता में बुलंद नहीं रहा 'इकबाल'
अरविंद केजरीवाल की लहर में 22 साल बाद ढह गया किला, जनता में बुलंद नहीं रहा 'इकबाल'

नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। वर्ष 2015 में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की ऐसी लहर चली कि बड़े-बड़े सूरमा धराशायी हो गए। केजरीवाल की लहर में AAP ने एतिहासिक प्रदर्शन किया और 70 में 67 सीटें जीत लीं, वहीं एक पार्टी का तो टेंट-तंबू तक उड़ गया। ऐसे ही सूरमा थे शोएब इकबाल, जिनके बारे में प्रचलित था कि कभी इनका सूरज अस्त नहीं हो सकता है। वह 22 सालों से पुरानी दिल्ली की मटियामहल सीट पर जीत हासिल कर रहे थे। उनका तिलिस्म ऐसा था कि उन्हें विधानसभा चुनाव जीतने के लिए कभी राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के सहयोग की जरूरत नहीं पड़ी।

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पांच बार से लगातार जीत रहे थे चुनाव

यहां पर क्षेत्रीय दल तो उनके क्षेत्र में पीछे खड़े हो जाते थे। वह पांच बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहे थे। हालांकि, छठवीं बार वर्ष 2015 के चुनाव में हवा का रुख भांपकर उन्होंने कांग्रेस पार्टी का हाथ पकड़ा, लेकिन सियासत के नए खिलाड़ी आसिम अहमद खान ने AAP के टिकट पर चुनाव लड़ा और उन्हें पटखनी दे दी। यह उनके लिए तगड़ा झटका था। जानकार कहते हैं कि इस हार के बाद से उन्होंने राजनीति से खुद को दूर कर लिया और सार्वजनिक मंचों से दूरी बना ली थी। फिलहाल कुछ महीनों से वह सार्वजनिक कार्यक्रमों में दिखने लगे हैं।

वर्ष 1993 के चुनाव में जनता दल के टिकट पर शोएब ने 62 फीसद के साथ करीब 27 हजार मत पाकर मटियामहल से पहली जीत दर्ज की थी। इसके बाद कभी जनता दल, कभी जनता दल सेक्युलर तो कभी लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर वह चुनाव जीतते रहे।

समय के साथ उनकी चमक भी खोने लगी थी। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में जदयू के टिकट पर मिले 31 फीसद (22,732) मतों से वह किसी तरह कुर्सी बचाने में कामयाब हुए थे। लेकिन, वर्ष 2015 आते-आते वह समझ गए कि राष्ट्रीय पार्टी का साथ लिए बिना चुनाव जीतना मुश्किल है, इसलिए विधानसभा चुनाव के ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया। दिल्ली में सम्मानजनक वापसी की जद्दोजहद में लगी कांग्रेस ने भी उन्हें सहर्ष स्वीकार कर लिया। यह गठजोड़ भी शोएब के साम्राज्य को बचा नहीं पाया और उनका किला ढह गया। उन्हें महज 21,488 मत मिले जबकि आप के आसिम अहमद खान ने 47,584 वोटों के साथ ऐतिहासिक जीत दर्ज की। 

इस जीत के साथ आसिम अहमद रातोंरात सुर्खियों में आ गए। उन्हें अरविंद केजरीवाल सरकार में मंत्री पद भी मिला। हालांकि, यह कुर्सी ज्यादा दिन उनके पास नहीं रही। कथित भ्रष्टाचार का ऑडियो लीक होने के बाद मंत्री की कुर्सी गंवानी पड़ी। फिलहाल संबंध सुधरने के बाद आसिम को दिल्ली वक्फ बोर्ड का अध्यक्ष बनाया गया है।

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