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Delhi Election 2020: दिल्ली चुनाव में टिकट की चाह ने बढ़ाई पिता-पुत्र के बीच की दूरी

Delhi Election 2020सियासत में कुछ भी निश्चित नहीं होता। कब गैर अपने बन जाएं और अपने पराए हो जाएं कह पाना मुश्किल है।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 20 Jan 2020 11:58 AM (IST)Updated: Mon, 20 Jan 2020 11:58 AM (IST)
Delhi Election 2020: दिल्ली चुनाव में टिकट की चाह ने बढ़ाई पिता-पुत्र के बीच की दूरी
Delhi Election 2020: दिल्ली चुनाव में टिकट की चाह ने बढ़ाई पिता-पुत्र के बीच की दूरी

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। Delhi Election 2020: सियासत में कुछ भी निश्चित नहीं होता। कब गैर अपने बन जाएं और अपने पराए हो जाएं, कह पाना मुश्किल है। कांग्रेस की दिल्ली इकाई में भी टिकटों के बंटवारे में ऐसे कई नजारे देखने को मिले। एक रोचक नजारा पिता-पुत्री का रहा। पार्टी ने पिता की बजाय पुत्री को टिकट दे दिया तो नेता पिता कुपित हो गए। हालांकि पहले यह पिता अपने लिए टिकट मांग भी नहीं रहे थे, लेकिन जब पार्टी आलाकमान ने इच्छा जताई कि उन्हें चुनाव लड़ना चाहिए तो एकाएक उनमें जोश आ गया। लेकिन आलाकमान ने एक शर्त भी रख दी कि पिता-पुत्री में से किसी एक को ही टिकट मिलेगा। ऐसे में नेता पिता बड़ी उम्र होने पर भी खुद पीछे हटने के बजाय पुत्री का टिकट कटवाने में लग गए। पुत्री और उनके साथी नेताओं ने पिता को समझाया भी, लेकिन वे नहीं माने। पार्टी अध्यक्ष ने पुत्री का टिकट नहीं काटा तो पिता ने पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए उन पर भी टिकटों के बंटवारे में भ्रष्टाचार का आरोप जड़ दिया। हालांकि इस प्रकरण पर ज्यादातर नेताओं की यही प्रतिक्रिया रही कि जहां एक ओर ज्यादातर पुराने नेता अपने बच्चों को आगे बढ़ाना चाहते हैं वहीं यह नेता पिता ऐसे हैं जो खुद को आगे बढ़ाने के लिए पुत्री को पीछे धकेलना चाह रहे हैं।

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पाला बदलते ही बदले सुर

कहते हैं कि राजनीति में सब कुछ जायज है। एक पार्टी से विधायक कुछ दिन पहले तक पार्टी के मुखिया के ऊपर जान की बाजी लगा देने की बात करते थे। मगर टिकट कटते ही उन्होंने उन्ही पार्टी के मुखिया पर शनिवार को कई तरह के आरोप लगा दिए। उन्हें हिटलर कहा। साथ ही भ्रष्टाचारी भी बता दिया। मगर जब एक पत्रकार ने उनसे पूछ लिया कि टिकट कटने पर आरोप लगा रहे हैं, इसे कितना सही माना जाए तो उनके पास इसका कोई जवाब नही था।

खेमा बदलकर भी मिली निराशा

आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के कई नेता टिकट की आस में हाथ में कमल का फूल लेकर घूम रहे थे। उन्हें उम्मीद थी कि अपनी पार्टी से बगावत करके भाजपा में आने का इनाम मिलेगा। इस उम्मीद वे अपने क्षेत्र में प्रचार भी शुरू कर दिया था। समर्थकों के साथ विधानसभा पहुंचने की रणनीति बना रहे थे। लेकिन, जब भाजपा उम्मीदवारों की सूची जारी हुई तो उनके पैरों तले जमीन खिसक गई। अधिकांश दलबदलुओं के नाम सूची से गायब थे। अब उन्हें अपना सियासी भविष्य भंवर में फंसा हुआ लग रहा है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि कमल खिलाने के लिए काम करें या फिर घर वापसी की तैयारी में जुट जाएं। अमरीश गौतम भीष्म शर्मा जैसे कई नेताओं के बारे में चर्चा है कि वह वापस कांग्रेस में जाएंगे। वहीं, अपनी विधायकी छोड़कर आप से भाजपा में आने वाले कर्नल देवेंद्र सहरावत के लिए सियासी राह तय करना कठिन है। भाजपा से आप में जाकर घर वापसी करने वाले गुग्गन सिंह के अगले कदम का भी सभी को इंतजार है।

फटे में टांग फंसाई, अपनी टिकट भी गंवाई

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी की दिल्ली इकाई में दोनों शीर्ष नेताओं के बीच शीतयुद्ध किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में पार्टी के एक वरिष्ठ नेता इन दोनों की रस्साकशी में पैर फंसा कर बिना बात ही अपना नुकसान करा बैठे। हुआ कुछ यूं कि अध्यक्ष की नाराजगी की परवाह न करते हुए यह नेता समिति अध्यक्ष का पत्रकारों के साथ लंच रखवा गए। अध्यक्ष को पता चला तो उनका पारा चढ़ना स्वाभाविक था, लेकिन वह शांत रहे। अब जबकि वह नेता विधानसभा की टिकट मांग रहे थे तो अध्यक्ष को मौका मिल गया। ऐसा दांव चला कि बिना बुरा बने नेताजी का टिकट भी कटवा गए और उन्हें सबक भी सिखा गए। जानकारों की मानें तो सियासी संबंधों में संभलकर ही चलना चाहिए। कब, कौन, कहां वार कर जाए, कहा नहीं जा सकता। यहां भी बेकार के पचड़े में फंसकर नेताजी बिना बात अपना नुकसान कर गए।

चुनावी मौसम में मोर्चाबंदी

दिल्ली की सिख सियासत में पिछले कई वर्षों से शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) का दबदबा बना हुआ है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) के चुनाव में लगातार दो बार जीत मिली है। वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में सभी चारों प्रत्याशियों को जरूर हार का सामना करना पड़ा था परंतु उसके बाद के चुनावों में पार्टी का दमखम दिखा है। डीएसजीपीसी चुनाव और राजौरी गार्डन उपचुनाव में भी पार्टी ने जीत हासिल की थी, लेकिन इन दिनों मुश्किल बढ़ी हुई है। कभी साथ रहे नेताओं ने ही मोर्चा खोल दिया है। दिल्ली में डीएसजीपीसी और शिअद बादल दिल्ली इकाई के पूर्व अध्यक्ष मनजीत सिंह जीके इस मोर्चे की मजबूती में जुटे हुए हैं। इससे शिअद बादल के नेताओं की चिंता बढ़ गई है, क्योंकि कुछ दिनों के बाद चुनाव है। विरोधियों का तेवर कम नहीं हुआ तो चुनावी डगर में भारी मशक्कत करनी होगी।


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