कांग्रेस कार्यालय में पसरा सन्नाटा, बहुत से नेताओ ने स्वीकार की हार
विधानसभा चुनाव का रिजल्ट आते ही कांग्रेस पार्टी पर सन्नाटा पसरने लगा। दोपहर तक पूरा कार्यालय खाली हो गया था।
नई दिल्ली ( संजीव गुप्ता)। दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर औपचारिक जीत-हार की घोषणा भले अभी न हुई हो, लेकिन तस्वीर लगभग साफ हो गई है। यह भी स्पष्ट है कि कांग्रेस न मुकाबले में दिखाई दी और न ही बेहतर पोजिशन में। एक दो सीटों पर ही पार्टी प्रत्याशी बीच बीच में थोड़ा आगे निकले, लेकिन जल्द ही पीछे भी हो गए। सुबह बल्लीमारान से हारून यूसुफ आगे आए थे जबकि इस समय जंगपुरा से तरविंदर सिंह मारवाह आगे निकले हैं।
दोपहर के 12 बज गए हैं, लेकिन 2015 की तरह एक बार फिर होती दिख रही शर्मनाक हार पर बात करने के लिए भी कोई बड़ा नेता पार्टी कार्यालय में नहीं आया है। प्रदेश के मुख्य प्रवक्ता का पद संभाल रहे विकासपुरी से प्रत्याशी मुकेश शर्मा ने सुबह ही अपनी हार मानते हुए ट्वीट कर दिया वहीं आम आदमी पार्टी छोड़कर कांग्रेस में आई चांदनी चौक से प्रत्याशी अलका लांबा ने भी ट्वीट करके अपनी पराजय मान ली। ज्यादातर सीटों पर कांग्रेस तीसरे स्थान पर है।
अहम यह भी कि मई 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 70 में से 65 सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी जबकि इस बार वह अपनी यह पोजिशन भी बरकरार नहीं रख सकी। कांग्रेस ने पहली बार दिल्ली में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ 4 सीटों पर गठबंधन किया, लेकिन वह भी बेअसर साबित हुआ। राजद के प्रत्याशियों को तो कांग्रेस के उम्मीदवारों जितने भी वोट नहीं मिले।
बिजवासन से कांग्रेस के पूर्व विधायक और फिलहाल प्रदेश पार्टी कार्यालय में मौजूद एकमात्र नेता विजय लोचव इस हार के लिए कई कारण बता रहे हैं। उनका कहना है कि लोकसभा चुनाव के कुछ ही दिन बाद शीला दीक्षित का निधन हो गया। करीब तीन चार माह पार्टी अध्यक्ष विहीन ही रही। इससे भी कांग्रेस कमजोर हुई। दूसरे, आप ने दिल्ली की जनता को जिस तरह विज्ञापनों और मुफ्तखोरी के जाल में फंसाया, उससे भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचा। लेकिन पार्टी आगे भी जनहित के मुद्दे उठाती रहेगी और अब 2022 में होने वाले नगर निगम चुनावों की तैयारी में जुटेगी।