Delhi Assembly Election 2020: चुनाव लड़ने के लिए संभावित उम्मीदवार बनवा रहे बायोडाटा
Delhi Assembly Election 2020 चुनाव लड़ने के इच्छुक ऐसे नेता-कार्यकर्ता आजकल साइबर कैफे में बैठकर अपना बायोडाटा तैयार कराते नजर आ रहे हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Assembly Election 2020: राजनीति भी क्या क्या न कराए! हाथ छाप पार्टी में ऐसे ढेरों नेता-कार्यकर्ता हैं जिन्होंने जिंदगी में कभी अपना बायोडाटा नहीं बनवाया। नौकरी करनी नहीं थी, संभालना पुरखों का व्यवसाय ही था। बस पार्टी का झंडा उठाए और पार्टी के पदाधिकारी बनने की होड़ में लग गए। दिन-रात पार्टी के दफ्तर में गुजारने लगे और नेताजी के करीबी कहलाने लगे। कुछ तो इतना पढ़ लिख ही नहीं पाए कि बायोडाटा बनवाने की नौबत आए। लेकिन अब माहैल बदल चुका है। सिर्फ झंडाबरदार होने से काम नहीं चलेगा। अब बताना होगा कि नेताजी को क्षेत्र के लोग कितना पसंद करते हैं और उनका विजन क्या है। चुनाव लड़ने के इच्छुक ऐसे नेता-कार्यकर्ता आजकल साइबर कैफे में बैठकर अपना बायोडाटा तैयार कराते नजर आ रहे हैं। चूंकि तजुर्बा नहीं है तो बायोडाटा में भी क्या जुड़वाएं, क्या नहीं, इसे लेकर कभी किसी से सलाह लेते हैं और कभी से। मजबूरी इसी का नाम है।
अनधिकृत कॉलोनियों का मुद्दा इन दिनों दिल्ली की सियासत में खासा गर्म है। इन कॉलोनियों के नियमितीकरण और इनमें मालिकाना हक देने के मुद्दे पर दिल्ली और केंद्र सरकार के मंत्री ट्विटर और मीडिया के जरिये उलङो पड़े हैं। एक ओर से कुछ सियासी तीर छोड़े जाते हैं तो दूसरी ओर से कुछ आते हैं। दिलचस्प यह कि मंत्रियों के साथ-साथ उनके मातहत अधिकारी भी रस्साकशी के इस खेल में खूब रुचि ले रहे हैं। आखिर ऐसा हो क्यों नहीं हर कोई अनधिकृत कॉलोनी के नियमितीकरण के मुद्दे के साथ चिपके रहना चाहता है। ऐसे में भला मंत्री जी पीछे कैसे रह सकते हैं। इन मंत्री जी की ‘चिड़िया’ तो संबंधित विभाग के मुखिया ही उड़वा रहे हैं। दरअसल, विरोधी पार्टियों के आरोपों को लेकर मंत्री जी समझ नहीं पाते कि जवाब में क्या ट्वीट करें। ऐसे में वह विभाग के मुखिया से सलाह मश्विरा कर लेते हैं कि भाई, क्या ट्वीट करना चाहिए। अधिकारी के बताए प्वाइंट पर ही मंत्री जी अपना ट्वीट कर पाते हैं।
बंद कमरे में टिकट के लिए गुफ्तगू
राजीव भवन में विधानसभा टिकट के लिए आजकल बंद कमरे में खूब गुफ्तगू हो रही है। यह गुफ्तगू सामान्य तौर पर हो तो कोई बात नहीं, लेकिन बंद कमरे में अक्सर टिकट को लेकर गहमागहमी ही देखने और सुनने को मिलती है। दरअसल, टिकट की मांग लेकर आने वाला अपने तर्क रखता है एवं टिकट दे सकने वाले नेताजी अपने तर्क देने लगते हैं। इसी तर्क वितर्क में बहुत बार माहौल गर्मा भी जाता है। अभी तीन दिन पहले ही एक विधानसभा क्षेत्र से कुछ लोग पार्टी प्रमुख के पास टिकट की मांग लेकर पहुंच गए। नेताजी ने आनाकानी की, गुस्से में भी आ गए। बोले, पार्टी जाए भाड़ में, बस टिकट चाहिए। टिकटार्थी बोले, हमें न सही तो जिसे भी मिले, वो क्षेत्र का हो। नेताजी शांत हुए और फिर चाय पिलाकर नाराज लोगों के गुस्से को शांत किया।
चुनाव सिर पर है तो सियासी दलों ने तमाम कमेटियां बनानी भी शुरू कर दी हैं। पार्टियों की कोशिश इन कमेटियों को लेकर यह रहती है कि ज्यादा से ज्यादा नेताओं और कार्यकर्ताओं को साथ में लेकर उन्हें साध लिया जाए। जबकि नेताओं-कार्यकर्ताओं की चाहत यह रहती है कि पद वहीं मिले जहां पर कोई फायदा भी हो। भीड़ का हिस्सा बनकर कुछ हासिल नहीं होना। कमोबेश ऐसी ही स्थिति देश की सबसे पुरानी पार्टी की प्रदेश इकाई में रही। दो दिन पहले यहां की छह जम्बो कमेटियां घोषित की गईं। सैकड़ों नेताओं एवं कार्यकर्ताओं के नाम इनमें डाल दिए गए हैं। लेकिन इनकी लिस्ट तैयार करने को लेकर आलम यह था कि घोषणा से एक दिन पहले भी हर किसी से पूछा जा रहा था कि भाई किसी का नाम डलवाना हो तो बता दो। जबकि हर कोई यह कहकर अनिच्छा जाहिर कर देता था कि इससे होगा क्या, कोई फायदा तो है नहीं।