Delhi Assembly Election 2020: BJP-कांग्रेस के लिए केजरीवाल से सत्ता छीनना नहीं होगा आसान
Delhi Assembly Election 2020 कुल मिलाकर मुकाबला रोचक होगा लेकिन चुनावी तैयारी में कांग्रेस से बेहतर दिख रही भाजपा के लिए भी AAP से सत्ता छीनना आसान नहीं होगा।
नई दिल्ली [सौरभ श्रीवास्तव]। राजधानी दिल्ली में चुनावी बिगुल बज गया है। इसके साथ ही सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (Aam aadmi party) व विपक्षी दल भाजपा और कांग्रेस के बीच एक बड़े सियासी संग्राम का मंच तैयार हो गया है। AAP के मुखिया अरविंद केजरीवाल जहां तीसरी बार सत्ता अपने पास बनाए रखने के लिए मैदान में होंगे, वहीं 21 साल से दिल्ली की सत्ता से वनवास झेल रही भाजपा हर हाल में यह सूरत बदलना चाहेगी।
पिछले लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन में हुए सुधार से उत्साहित कांग्रेस भी वर्ष 2015 के विधानसभा चुनाव में रहे अपने शर्मनाक प्रदर्शन को सुधारने के लिए चुनावी रण में कूदेगी। कुल मिलाकर मुकाबला रोचक होगा, लेकिन चुनावी तैयारी में कांग्रेस से बेहतर दिख रही भाजपा के लिए भी AAP से सत्ता छीनना आसान नहीं होगा।
कामकाज के सहारे
पिछले विधानसभा चुनाव में 70 में से 67 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई आप सरकार इस बार अपने कामकाज के भरोसे मतदाताओं के सामने जाएगी। चुनावी संग्राम में आप के महारथियों का तरकश जहां एक ओर मुफ्त बिजली-पानी और महिलाओं के लिए मुफ्त बस सेवा के तीरों से लैस होगा, वहीं शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के दावे भी उसके मुख्य चुनावी हथियार होंगे। पार्टी के आक्रामक प्रचार अभियान में यह साफ नजर भी आ रहा है। बड़ी संख्या में रणनीतिकार पार्टी छोड़कर जरूर जा चुके हैं, लेकिन केजरीवाल के नेतृत्व पर पार्टी को पूरा भरोसा है और वह काफी हद तक आश्वस्त हैं कि केजरीवाल सरकार के कामकाज के बल पर वह सत्ता बरकरार रखेगी।
मोदी पर भरोसा
दो दशक से अधिक समय से दिल्ली की सत्ता से दूर रही भाजपा पिछले विधानसभा चुनाव में अपने सबसे बुरे दौर से गुजरी थी। इस चुनाव में उसे मात्र तीन सीटें मिली थीं। बाद में राजौरी गार्डन सीट उसने उपचुनाव में आप से छीन ली। इस बुरी स्थिति के बाद पार्टी का दिल्ली में समय बदला और उसने प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी के नेतृत्व में तीनों निगमों पर कब्जा करने के साथ ही लोकसभा की सभी सातों सीटें फिर से जीत लीं। प्रदेश में पार्टी के नेता-कार्यकर्ता इससे उत्साहित भी हैं, लेकिन फिर भी पार्टी सतर्क नजर आ रही है। प्रदेश के किसी नेता को सामने लाने के बजाय पार्टी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा ही अब तक आगे रखा है और उसका सबसे ज्यादा जोर अनियोजित कॉलोनियों में रहने वालों को संपत्ति का मालिकाना हक देने के फैसले पर है। पार्टी को लगता है कि इसके जरिये वह आप के वोटबैंक में सेंध लगाने में सफल हो सकती है। वैसे, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध के लिए आप-कांग्रेस को कठघरे में खड़ाकर पार्टी राष्ट्रीयता व हिंदुत्व को भी हथियार बनाएगी। हालांकि, पार्टी के भीतर गुटबाजी बरकरार है, जो AAP से सत्ता छीनने के लक्ष्य में बड़ी रुकावट बन सकती है।
लोकसभा चुनाव से उत्साहित
AAP की सरकार बनने से पूर्व कांग्रेस ने दिल्ली में शीला दीक्षित के नेतृत्व में 15 साल तक सरकार चलाई। कांग्रेस के पास विरोधियों पर हमला करने के लिए हथियार के तौर पर इस दौरान किए गए विकास कार्य ही हैं। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में शून्य पर रही कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में कुछ संजीवनी अवश्य मिली, जब शीला दीक्षित के नेतृत्व में हुए चुनाव में पार्टी सात में से पांच सीटों पर आप को पछाड़कर दूसरे स्थान पर रही। इसके बाद पार्टी में आई जान शीला के निधन से खत्म होती चली गई। अब केंद्रीय नेतृत्व ने अनुभवी सुभाष चोपड़ा व कीर्ति आजाद को कमान देकर पार्टी को एकजुट करने की कोशिश अवश्य की है, लेकिन पार्टी गुटबाजी से अब भी पार नहीं पा सकी है।