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Chhattisgarh Elections 2018: सियासी फिजा की धुंध ने दलों के समीकरण ध्वस्त किए, हर सीट के समीकरण हैं अलग-अलग

Chhattisgarh Elections 2018 छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वालों की मानें तो हर सीट पर अपने अलग-अलग समीकरण हैं।

By Rahul.vavikarEdited By: Published: Sun, 18 Nov 2018 12:24 AM (IST)Updated: Sun, 18 Nov 2018 12:24 AM (IST)
Chhattisgarh Elections 2018: सियासी फिजा की धुंध ने दलों के समीकरण ध्वस्त किए, हर सीट के समीकरण हैं अलग-अलग
Chhattisgarh Elections 2018: सियासी फिजा की धुंध ने दलों के समीकरण ध्वस्त किए, हर सीट के समीकरण हैं अलग-अलग

रायपुर, नईदुनिया राज्य ब्यूरो। छत्तीसगढ़ की सियासी फिजा में एक ऐसी धुंध फैली है कि पार्टियों के दिग्गजों के साथ ही राजनीतिक पंडितों का सिर चकरा गया है। जीत-हार के दावों के बीच कोई भी यह डंके की चोट पर कहने को तैयार नहीं है कि कौन-कौन सी सीट जीत रहे हैं। हर कोई जुबानी जुगलबंदी करके किसी को बहुमत तो किसी को हार दिला रहा है।

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छत्तीसगढ़ की राजनीति को करीब से देखने वालों की मानें तो हर सीट पर अपने अलग-अलग समीकरण हैं। जीत-हार के लिए उम्मीदवारों का प्रोफाइल, सक्रियता और जातिगत समीकरण तो मायने रख रहा है लेकिन सबसे खास यह है कि एक ही सीट पर एक समाज जाति के उम्मीदवार उतर गए हैं। अब यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि समाज का वोट किसके पाले में जाएगा। यही नहीं, एक सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों ने महिला उम्मीदवार उतारकर आधी आबादी को असमंजस में तो डाला है, चुनाव मैनेजर भी परेशान हैं।

बिलासपुर संभाग में परंपरागत प्रतिद्वंद्वी की जगह नए उम्मीदवार मैदान में है। चुनावी सर्वे में टिकट का दावा करने वालों को दलों ने रिजेक्ट कर दिया है। ऐसे में जमे-जमाए नेता की जगह नए उम्मीदवार को उतारने के बाद जीत की गारंटी का संकट पैदा हो गया है।

दरअसल, राजनीतिक धुंध पहले चरण के मतदान के बाद ज्यादा फैल गई। निर्वाचन आयोग ने पहले जो आंकड़ा दिया, उसमें वोटिंग प्रतिशत कम था। बाद में रिकार्ड वोटिंग के आंकड़े आने के बाद कांग्रेस और भाजपा के दावे फुस्स होने लगे। इसके सीधा असर दूसरे चरण के चुनाव क्षेत्रों पर पड़ा। पहले चरण में जब किसी दल के पक्ष में हवा बनती नजर नहीं आ रही है, तो मतदाता अपने-अपने समीकरण के हिसाब से वोट देने की तैयारी कर रहा है। सरगुजा संभाग के वोटरों की बात करें, तो यहां हर सीट के अलग चुनावी मुद्दे हैं। विकास के अलावा कहीं कोल माइंस मुद्दा है, तो कहीं हाथी का उत्पात। इससे निपटने के लिए वादे तो किये जा रहे हैं, लेकिन वोटर कितना सुनने को तैयार है, उम्मीदवार इसका आकलन नहीं कर पा रहे हैं।


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