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Chhattisgarh Chief Minister : तेवर और संघर्ष से बनी भूपेश बघेल की पहचान

Chhattisgarh Chief Minister : भूपेश बघेल ने कठिन दौर में संभाली थी कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की कमान। नक्सलियों के झीरम नरसंहार में शीर्ष कांग्रेस नेताओं 32 लोगों ने चुनाव से पूर्व गंवाई थी जान।

By Hemant UpadhyayEdited By: Published: Sun, 16 Dec 2018 06:09 PM (IST)Updated: Sun, 16 Dec 2018 06:09 PM (IST)
Chhattisgarh Chief Minister : तेवर और संघर्ष से बनी भूपेश बघेल की पहचान
Chhattisgarh Chief Minister : तेवर और संघर्ष से बनी भूपेश बघेल की पहचान

रायपुर। छत्तीसगढ़ के नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल(52) ने अपनी पहचान अपने तेवर और संघर्ष के बूते बनाई। बघेल को पार्टी की कमान बेहद संकट के दौर में सौंपी गई थी। 2013 में चुनाव से पहले नक्सलियों ने झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व समेत 32 लोगों को मार डाला था।

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चुनाव हुए तो पार्टी पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा था, राज्य में एक बार फिर रमन सिंह की सरकार पदारूढ़ हो चुकी थी। पार्टी के लिए यह एक कठिन दौर था। इसी समय भूपेश बघेल को राज्य में कांग्रेस की कमान सौंपी गई। उनके सामने तीन बार की विजेता रमन सरकार के मुकाबले कांग्रेस को खड़ा करने की चुनौती थी।

यात्राएं कीं और रहे हमलावर

चुनौतियों के सामने बघेल ने कमर कसी और राज्य में पद यात्राएं कर संगठन को नए सिरे से खड़ा करने का प्रयास शुरू किया। इसके अलावा उन्होंने सोशल मीडिया को भी जरिया बनाया और लगातार भाजपा सरकार पर हमलावर रहे। जल्द ही उनकी छवि एक जुझारू तेवर वाले नेता के रूप में सामने आ गई। कुछ माह पूर्व तक लगभग निष्क्रिय पड़ी कांग्रेस में नई जान आ गई और संगठन नई हिम्मत के साथ खड़ा हो गया। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल को जमीनी लड़ाई लड़कर पार्टी में जान फूंकने का श्रेय दिया जाता है।

दमन का विरोध और सामना

भूपेश बघेल ने न सिर्फ राजनीतिक लड़ाइयां लड़ीं बल्कि तमाम विरोधों और दमन के बावजूद सख्ती से मोर्चे पर डटे भी रहे। भाजपा सरकार में कई अधिकारी उन पर व्यक्तिगत हमले भी करते रहे लेकिन भूपेश ने कभी हार नहीं मानी और जूझते रहे। उन्होंने पार्टी संगठन को एकजुट बनाए रखा और प्रदेश की सत्ता में कांग्रेस की वापसी को पार्टी का संकल्प बना लिया। भूपेश की तेज तर्रार छवि कुछ ऐसी है कि उन्होंने कांग्रेस को नुकसान पहुंचाने वाले पदाधिकारियों तक को तत्काल पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।

भूपेश के नेतृत्व में कुछ बड़े आंदोलन

भूपेश बघेल के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद कई ऐसे आंदोलन हुए जिसने कार्यकर्ताओं का आत्मविश्वास लौटाया और पार्टी को एकजुट किया। इनमें से कुछ उल्लेखनीय हैं...

  •  सरकार ने धान खरीद की सीमा 10 क्विंटल की तो भूपेश ने धान बेचने का बहिष्कार करा दिया। सरकार को सीमा बढ़ाकर 15 क्विंटल करनी पड़ी।
  • सरकार ने सामुदायिक वनाधिकार पट्टों को निरस्त करने के लिए ग्रामसभा रखी तो भूपेश विरोध में खड़े हो गए और सरकार को कदम पीछे खींचना पड़ा।
  • आदिवासियों की जमीन का कानून बदला तो भूपेश ने बड़ा आंदोलन खड़ा किया और सरकार को भू-राजस्व संहिता संशोधन का कानून वापस लेना पड़ा।
  • सरकार ने ग्राम सभाओं के बजट से मोबाइल टॉवर लगाने का एलान किया था। भूपेश ने इसे ग्राम सभाओं के बजट का अपव्यय बताया। अंतत : यह आदेश भी वापस लेना पड़ा।
  • राशन कार्डों के निरस्तीकरण पर भी भूपेश के नेतृत्व में पार्टी ने बड़ा आंदोलन खड़ा किया। इन आंदोलनों से भूपेश बघेल की छवि पार्टी के ऐसे नेता के रूप में बनी जो लड़ाई से पीछे नहीं हटते, एक मर्यादा में रहकर विरोध करते रहते हैं।

विधानसभा चुनाव 2018

कांग्रेस के लिए यह चुनाव करो या मरो के समान ही था। पार्टी अध्यक्ष भूपेश बघेल ने इसके लिए बाकायदा रणनीति बनाते हुए भाजपा के विकास को कथित विकास कहना शुरू किया। धीरे-धीरे उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा पर खूब जुबानी हमले किए, सोशल मीडिया का भी जबरदस्त सहारा लिया। इसके लिए नुक्कड़ सभाओं पर ज्यादा जोर दिया गया, कांग्रेस के बड़े नेता गांवों में रात्रि प्रवास भी करने लगे। इन सभी कवायदों का असर दिखा और अंतत कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई।  


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