छत्तीसगढ़ के मैदानी इलाकों में सीट बचाना भाजपा के लिए चुनौती
रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग की 61 में से 38 सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कर सत्ता बचाई थी।
मृगेंद्र पांडेय, रायपुर। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कर्मचारियों के आंदोलन, आदिवासियों की नाराजगी और एसटी-एससी एक्ट में संशोधन के बाद सवर्ण समाज के विरोध से भाजपा को उसके गढ़ में ही चुनौती मिलने लगी है। वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने मैदानी इलाकों में जीत दर्ज करके सत्ता को बचाने में सफलता पाई थी, लेकिन इस चुनाव में किसानों की नाराजगी से लेकर बेरोजगार युवाओं का विरोध सरकार को झेलना पड़ रहा है।
रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग संभाग की 61 में से 38 सीट पर भाजपा ने जीत दर्ज कर सत्ता बचाई थी। इस बार मैदानी इलाकों के वोटरों में खासी नाराजगी सामने आ रही है। कतिपय मंत्रियों के भ्रष्टाचार के मुद्दे से लेकर विधायकों के कमजोर परफार्मेस को भी जिम्मेदार माना जा रहा है। विधानसभा चुनाव में रायपुर संभाग की 20 सीटों पर बढ़त काफी मायने रखती है। 2003 के चुनाव में भाजपा ने 12 सीट पर जीत दर्ज की थी, जबकि 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने 13 सीट जीती थीं।
पिछले चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस से नौ सीट छीनते हुए 15 सीट पर जीत दर्ज की। इन सीटों ने ही सरकार बनाने में प्रभावी भूमिका निभाई थी। रायपुर संभाग की 20 में से 15 सीट पर भाजपा, चार पर कांग्रेस और एक पर निर्दलीय उम्मीदवार की जीत हुई थी। राज्य निर्माण के बाद से अब तक हुए तीन चुनाव में संभाग की किसी भी सीट पर भाजपा-कांग्रेस के अलावा कोई तीसरी पार्टी जीत दर्ज नहीं करा पाई है। 2013 में पहली बार भाजपा के बागी डॉ. विमल चोपड़ा निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विधानसभा पहुंचे हैं। दुर्ग संभाग की 20 सीट में कांग्रेस छह और भाजपा 14 और बिलासपुर संभाग में 21 सीट है, जिसमें 11 पर कांग्रेस, नौ पर भाजपा और एक सीट बसपा के खाते में हैं। बस्तर में 12 में से आठ सीट पर कांग्रेस और चार सीट पर भाजपा विधायक हैं। सरगुजा में 14 में कांग्रेस और भाजपा के बीच बराबरी का मुकाबला है।
विवादों में मंत्रियों की छवि
रायपुर संभाग से तीन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत और अजय चंद्राकर हैं। लिहाजा इस इलाके में भाजपा का प्रदर्शन इन सभी की प्रतिष्ठा का सवाल बनेगा। इनमें से कुछ मंत्रियों के लिए अपनी सीट पर चुनौती आसान नहीं। रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल जलकी गांव में जमीन के मामले में विवाद में हैं तो मंत्री राजेश मूणत व्यक्तिगत आरोपों से घिरे हैं। वहीं, अजय चंद्राकर डेंगू के डंक से लेकर बिगड़े बोल से सुर्खियों में रहे हैं। ऐसे में मुख्यमंत्री के चेहरे के दम पर चुनाव मैदान में उतर रही भाजपा को विवादों में घिरे मंत्रियों के काम का जवाब भी देना पड़ सकता है।
कांग्रेसी क्षत्रपों में घमासान
पूरे प्रदेश की तरह रायपुर संभाग में भी कांग्रेस क्षत्रपों के भरोसे है। टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार की कमान तक में इनका बड़ा दखल होगा। पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा, धनेंद्र साहू, शिव डहरिया पर संगठन ने भरोसा किया है। पिछले चुनाव में शिव डहरिया को हार का सामना करना पड़ा था। इस चुनाव में बिलाईगढ़ से उनको टिकट नहीं देने की मांग चल रही है। ऐसे में क्षत्रपों को अपनी साख बचाने के साथ ही सीट भी जीतने चुनौती रहेगी।