छत्तीसगढ़ः भाजपा की पकड़ से छूट रहा है सरगुजा, कांग्रेस का 'हाथ' थाम रहे लोग!
इस क्षेत्र की कुछ सीटों पर पहले भाजपा के भगवा रंग का गहरा असर था, लेकिन अब यहां के लोग कांग्रेस के साथ हो गए हैं।
संजीत कुमार, रायपुर। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक क्षेत्रों में शामिल सरगुजा जिले की स्थापना 1948 में हुई थी। इसका संबंध भगवान राम से जुड़ा है। कहा जाता है कि वनवास के दौरान राम, सीता व लक्ष्मण यहां आए थे। इसके ऐतिहासिक प्रमाण भी हैं।
वैसे भी सरगुजा का शाब्दिक अर्थ देवताओं व हाथियों वाली धरती होता है। राम से जुड़े इस क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें हैं। इस क्षेत्र की कुछ सीटों पर पहले भाजपा के भगवा रंग का गहरा असर था, लेकिन अब यहां के लोग कांग्रेस के साथ हो गए हैं।
बीते दो चुनावों से यहां की तीनों सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। जिलों की तीनों सीट पर कांग्रेस व भाजपा के बीच सीधा मुकाबला होता है। तीन विधानसभा सीटों में एक सामान्य व बाकी दो आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं।
वोट बढ़ा, लेकिन हाथ नहीं आई सीट
2008 के मुकाबले 2013 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर बढ़ा, लेकिन पार्टी के खाते में एक भी सीट नहीं आई। 2003 की लहर में भाजपा ने यहां की तीन में दो सीटों लुंड्रा व अंबिकापुर में जीत हासिल की थी। पार्टी को करीब 47 फीसद से अधिक वोट मिले थे। इसके बाद के दोनों चुनावों में क्रमश: 24 और करीब 39 फीसद वोट मिले हैं, लेकिन सीटें नहीं जीत पाए।
बढ़त की ओर कांग्रेस
कांग्रेस 2003 में जिले की एक मात्र सीतापुर सीट जीत पाई थी। तीनों सीटों को मिलाकर पार्टी के खाते में करीब 33 फीसद वोट आए थे। 2008 में पार्टी ने क्लीन स्वीप करते हुए तीनों सीट पर कब्जा कर लिया, पार्टी के खाते में करीब 39 फीसद वोट आए। वहीं, 2013 में 49 फीसद वोट हासिल कर पार्टी ने तीनों सीट पर कब्जा बरकार रखा।
तीनों सीट पर नोटा तीसरे नंबर पर
पिछले चुनाव में मतदाताओं को नोट का विकल्प मिला तो उन्होंने इसका भरपूर उपयोग किया। इसी का नतीजा रहा कि जिले की तीनों सीटों पर नोटा तीसरे नंबर पर रहा। लुंड्रा में 5292 अंबिकापुर में 4327 और सीतापुर में 5996 लोगों ने नोटा का बटन दबाया।
भाजपा नहीं छीन पा रही सीतापुर
जिले की सीतापुर सीट पर कांग्रेस का लंबे समय से कब्जा है। यहां तक की 2003 में जब पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर थी, तब भी पार्टी यह सीट नहीं जीत पाई। कांग्रेस के अमरजीत भगत इस सीट से लगातार जीत रहे हैं।
बढ़ रहा जीत का अंतर
सीतापुर सीट 2003 में भगत ने करीब पांच हजार के अंतर से जीता था। 2008 में यह घटकर 17 सौ रह गया, लेकिन 2013 में बढ़कर सीधे 17855 पहुंच गया। इसी तरह टीएस सिंहदेव ने अंबिकापुर सीट 2008 में महज 980 वोट से जीता था, लेकिन 2013 में यह आंकड़ा 19558 पहुंच गया। लुंड्रा सीट 2008 में रामदेव करीब आठ हजार वोट के अंतर से हासिल किया था। 2013 में इसी सीट पर कांग्रेस के ही चिंतामणी महराज ने करीब 10 हजार के अंतर से जीत हासिल की।