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रहते अमेरिका में, दिल में बसा भारत

नौजिया सोशल एक्टिविस्ट हैं इस वजह से उनकी भी सामाजिक कार्यों में रुचि अधिक रहती है। साल 2000 में उन्होंने विदेश की सरजमीं पर कदम रखा और 2010 में उन्हें अमेरिका की नागरिकता हासिल हुई। साल 2017 में वह पिछली बार गांव आए थे तब उन्होंने लोककल्याण के लिए कई कार्य किए थे। इस समय वह कोरोना संक्रमण की वजह से नहीं आ रहे हैं। उन्होंने दावा कि कन्नौज से अमेरिका आने वाले वह पहले व्यक्ति हैं। --------------

By JagranEdited By: Published: Wed, 06 Jan 2021 11:21 PM (IST)Updated: Wed, 06 Jan 2021 11:21 PM (IST)
रहते अमेरिका में, दिल में बसा भारत

-एनआरआइ दंपती ने गांव में अस्पताल के लिए दी जमीन

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-कोरोना को लेकर डायग्नोस्टिक रिसर्च कर रहे गंगाविष्णु

प्रशांत कुमार, कन्नौज: भले ही वह अमेरिका में रहकर सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हों, लेकिन दिल में आज भी अपना देश और गांव बसता है। आज भी अपनी माटी व वतन के लिए वह सर्वस्व निछावर करने को तैयार हैं। वहीं, देश के लिए वह कोरोना पर डायग्नोस्टिक रिसर्च भी कर रहे हैं।

तालग्राम क्षेत्र के गांव वैसापुर के डॉ. गंगाविष्णु कनौजिया वर्तमान में अमेरिका के टेक्सास में रह रहे हैं और वहीं यूएसए साइंटिफिक इंक कारपोरेशन में निदेशक के पद पर तैनात हैं। उनकी पत्नी साधना कनौजिया सोशल एक्टिविस्ट हैं, इस वजह से उनकी भी सामाजिक कार्यों में रुचि अधिक रहती है। साल 2000 में उन्होंने विदेश की सरजमीं पर कदम रखा और 2010 में उन्हें अमेरिका की नागरिकता हासिल हुई। साल 2017 में वह पिछली बार गांव आए थे, तब उन्होंने लोककल्याण के लिए कई कार्य किए थे। इस समय वह कोरोना संक्रमण की वजह से नहीं आ रहे हैं।

उन्होंने दावा कि कन्नौज से अमेरिका आने वाले वह पहले व्यक्ति हैं।

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विश्वस्तरीय सुविधाओं से लैस होगा अस्पताल

डॉ. गंगाविष्णु कनौजिया और साधना कनौजिया ने लोककल्याण के लिए अपनी पैतृक जमीन स्वास्थ्य विभाग को दान में दे दी, जिस पर सीएमओ ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बनवा दिया। उनका कहना है कि निकट भविष्य में यह अस्पताल विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त होगा। इससे गांव और आसपास के लोगों को इलाज के लिए बड़े शहरों में नहीं जाना पड़ेगा। दवा से लेकर ऑपरेशन तक सभी सुविधाएं निश्शुल्क होगी।

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कोरोना पर कर रहे डायग्नोस्टिक रिसर्च

डॉ. गंगाविष्णु कनौजिया इस समय अमेरिका में कोरोना पर डायग्नोस्टिक रिसर्च कर रहे हैं। 1991 में आगरा में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) में कुष्ठ रोग पर शोध किया। इसके बाद 1992 में जापान गए, जहां मेडिकल यूनीवर्सिटी में माइक्रोबायलॉजी में प्रशिक्षण लिया। जापान के बाद वह अमेरिका के फ्लोरिडा चले गए, जहां पिक आइ डिजीज (टेरीनो वायरस) पर शोध किया तो न्यूयार्क में पब्लिक हेल्थ रिसर्च इंस्टीट्यूट में भी कार्य किया। उनका कहना है कि कोरोना का डायग्नोसिस पता करने के बाद वह भारत को उसका पेटेंट देंगे।

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महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल

एनआरआइ दंपती ने अपने गांव वैसापुर के अलावा आसपास के गांव गदौरा, चौतराहार समेत 14 गांवों की काया ही पलट दी। शिक्षित बेरोजगार महिलाओं व युवतियों को उन्होंने सिलाई मशीन दी तो बुजुर्गों को कंबल दिए। बच्चों को भी कपड़े और उपहार दिए। वहीं, छिबरामऊ की एक अनाथ बच्ची को गोद लेकर उसकी शिक्षा-दीक्षा का भी प्रबंध किया। उनका कहना है कि वह क्षेत्र की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी काम कर रहे हैं। उन्होंने गांव में एक मंदिर भी बनवाया है।


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