Bihar Election 2020: मांझी की मझधार में फंस गए थे सुशासन बाबू, जानिए जीतन राम मांझी का प्रोफाइल
जीतन राम मांझी फिलहाल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष हैं। कभी राजनीति में नीतीश कुमार के ही पिच पर खुद उतरे और उनको ही गुगली दे दी थी। समय के साथ खराब रिश्ते अब बेहतर बन गए हैं।
पटना, जेएनएन। Bihar Assembly Election 2020: बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार के कभी साथी रहे जीतन राम मांझी फिलहाल हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष हैं। कभी राजनीति में नीतीश कुमार के ही पिच पर खुद उतरे और उनको ही गुगली दे दी थी। समय के साथ खराब रिश्ते अब बेहतर बन गए हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के हिस्से में हैं, क्योंकि नीतीश कुमार के साथ ही चुनाव मैदान में एक बार फिर पुराने साथी तेजस्वी को आउट करना है। बदलते वक्त के साथ बदलते रिश्ते में कहानी के किरदार बदलते रहते हैं मगर कमोबेश कहानी वहीं रहती है। आइए, जानते हैं जीतन राम मांझी के बारे में।
जीतन राम मांझी का प्रोफाइल
जन्म - 6 अक्टूबर 1944 को बिहार के गया जिले में।
जनता दल यूनाइटेड में रहते हुए बिहार के सीएम बने। (23वें सीएम के तौर पर शपथ ली थी)
गया विश्वविद्यालय से मांझी ने स्नातक तक की पढ़ाई की है।
पढ़ाई पूरी करने के बाद टाइपिस्ट की नौकरी की।
नौकरी को छोड़ कर राजनीति में एंट्री लेने के बाद 1980 में वे कांग्रेस से विधायक बने।
बिहार की सभी बड़ी पार्टियों से जुड़े इसमें कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और जनता दल यूनाइटेड है।
नीतीश कुमार के साथ रिश्तों में खटास आते ही उन्होंने अपनी अलग पार्टी बनाई।
हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा के अध्यक्ष बने।
मांझी की पत्नी का नाम शान्ति देवी है उनके दो बेटे और पांच बेटियां हैं।
कभी नीतीश के दोस्त तो कभी बन गए थे रास्ते का कांटा
साल 201 4 का दौर था जब नीतीश कुमार की पार्टी ने नरेंद्र मोदी का पीएम पद के लिए मुखर विरोध किया था। इसके बाद चुनाव में जदयू हार गई और हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश कुमार ने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। पार्टी की कमान इस बार मिली नीतीश कुमार के खास साथी रहे जीतन राम मांझी को। उनकी जीवनकाल में मिली सबसे बड़ी जिम्मेदारी से खुश तो बड़े थे मगर उन्हें नीतीश कुमार का रबड़ स्टांप बनना पसंद नहीं आया। इसके बाद शुरू हुआ बगावत का दौर। इसी दौरान उन्होंने यह कहते हुए बिहार की राजनीति में खलबली मचा दी थी कि उन्हें कथित तौर पर जदयू के अनंत सिंह ने हत्या की धमकी दी है। इसके बाद कुछ दिनों तक चले राजनीतिक स्टंट के बाद बड़े ही नाटकीय तौर पर राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया। इस्तीफे के बाद ही बिहार की राजनीति में चल रहा बवंडर ठहर गया और फिर नीतीश कुमार एक बार सीएम की गद्दी पर बैठे मगर मांझी के रास्ते अलग हो गए। इस बार वह हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के अध्यक्ष के तौर पर बिहार की राजनीति में अलग मुकाम हासिल करने की बगावती लड़ाई लड़ते रहे। हालांकि, दोनों एक बार फिर साथ आए हैं और इनके सामने हैं महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव। इनके नाम एक रिकॉर्ड है। वह है- पहला दलित मुख्यमंत्री बनने का।