Bihar Election 2020: बिहार में प्रथम चरण के चुनाव खत्म, समीकरणों पर शुरू हो गया बैठकों का दौर
Bihar Election 2020 कहां कितने मतदाता आए और कौन नेता आए उस आधार पर राजनीतिक दल के नेता और कार्यकर्ता कर रहे गुणा भाग। पूरे दिन मिले फीडबैक के आधार पर राजनीतिक समीकरण बनने-बिगड़ने की भी होती रही चर्चा ।
पटना, राज्य ब्यूरो । Bihar Election 2020: बिहार में 28 अक्टूबर को पहले चरण का चुनाव खत्म होने के बाद देर शाम समीकरणों पर सभी इलाके में बैठकें शुरू हो गयी। किस बूथ पर कितने आए और कौन आए इसके आधार पर गुणा भाग चल रहा। सभी दल अपने-अपने पोलिंग एजेंट से बूथवार फीडबैक लेकर इसके विश्लेषण मेंं व्यस्त हैैं। पूरे दिन मिले फीडबैक को भी चर्चा में प्रमुखता से शामिल किया गया।
विकास या रोजगार क्या रहा वोटरों का मुद्दा
पालीगंज विधानसभा क्षेत्र में दोनों गठबंधन के प्रत्याशी एक ही जाति के थे। यहां किस तरह के समीकरण ने काम किया इस पर भी खूब चर्चा रही। मसौढ़ी में विकास पर चर्चा रही या फिर रोजगार पर वोटरों की बात थी इस पर खूब फीडबैक लिया गया। सभी अपनी सुविधा के हिसाब पर इस पर चर्चा कर रहे। मतदान के प्रतिशत पर भी चर्चा हुई। महिलाओं की लंबी कतार जब बूथों पर नजर आयी तो बाहर से यह पता लगाने की खूब कोशिश हुई कि कतार में किस जाति की महिलाएं अधिक थीं। दिलचस्प बात यह थी कि दोनों गठबंधनों की जाति के हिसाब से जो समीकरण थे उसे ताक पर रख दोनों के वोट बैैंक वाले एक साथ बूथ पर मतदान को आए। वोट डालकर साथ में ही निकले। ऐसे में यह तय करने में काफी परेशानी हुई कि किसने किसको वोट किया। विक्रम विधानसभा क्षेत्र में यह चर्चा होती रही कि अगर एक निर्दलीय प्रत्याशी दलीय प्रत्याशी के रूप में लोगों के बीच होते तो बात कुछ और होती।
जाति पर खूब चर्चा
चर्चा में जब जमुई सीट पर चर्चा हुई तो जाति का मामला सामने आ गया। इस बीच यह बात भी आ गयी कि एक प्रत्याशी से नाराजगी इस तरह की थी कि उसके कोर वोट ही उससे बिदके रहे। ऐसे में गणित किस तरह से काम करेगा इस पर खूब बातें हुईं। शेखपुरा जिले की दो सीट में किसे कंफर्म मान लिया जाए इस पर दोनोंं गठबंधन अपना गणित लगाते रहे। नवादा जिले में पुराने क्षत्रपों का परेशानी पर भी गुना-भाग लगाया जाता रहा। सिकंदरा का भी दिलचस्प गणित बताया जा रहा था।
गठबंधन हारते-हारते जीत गया
औरंगाबाद में कभी फिफ्टी-फिफ्टी पर लॉक करने की बात आ गयी तो कभी एक को एक सीट अधिक आंका जाने लगा। औरंगाबाद की बैठकी में इस पर खूब बातें हुईं कि संबोधन का असर यह हुआ कि एक गठबंधन हारते-हारते जीत गया। सासाराम में देर रात यह बात होते रही कि ठीक से नंबर नहीं तय हो रहे। काराकाट की उलझन गणित के आधार पर सहज समझा दी गयी। चेनारी और नोखा का मामला किसके लिहाज से फंस गया इस पर भी खूब गणित लगाया जा रहा। वोटकटवा पर भी समीकरण तय होते रहे। किसी ने खूब काटा तो वह किसे नुकसान कर डाला इस पर भी देर रात तक विमर्श चलता रहा। पूरी चर्चा में दिलचस्प बात दोनों गठबंधनों के बीच यह है कि वे अपने-अपने कोर वोटरों पर ज्यादा केंद्रित रहे। यह तलाशा जाता रहा कि उनके कोर वाले किस तरह से आए।