Bihar Election 2020: विधान सभा चुनाव आते ही पक्ष-विपक्ष ने लगाई रोजगार की रट, बना चुनावी मुद्दा
Bihar Election 2020 कानून व्यवस्था सड़क बिजली शिक्षा जैसे मुद्दों से थोड़ा आगे निकल कर बिहार विधानसभा का चुनाव इस बार रोजगार पर केंद्रित होने जा रहा है। आखिर क्यों और कैसे रोजगार इस चुनाव में बड़ा मुद्दा बना है। जानिए इस रिपोर्ट में।
पटना, अरुण अशेष। Bihar Election 2020: कानून व्यवस्था, सड़क, बिजली, शिक्षा जैसे मुद्दों से थोड़ा आगे निकल कर बिहार विधानसभा का चुनाव इस बार रोजगार पर केंद्रित होने जा रहा है। इसका मतलब यह नहीं है कि राज्य पूरी तरह विकसित हो गया है। लोग विकास की मांग नहीं कर रहे हैं। ये मांगें अब भी कायम हैं। लेकिन, विकास के अगले चरण के तौर पर रोजगार का मुददा है। अच्छी बात यह है कि सत्तारूढ़ एनडीए और विपक्षी महागठबंधन इस मुद्दे को बराबर का दर्जा दे रहा है। मुख्यधारा की मीडिया के अलावा सोशल मीडिया में भी रोजगार से जुड़े सवाल आ रहे हैं।
रोजगार के सपने दिखाए, मगर पूरे नहीं हुए
ठीक दस साल पहले के विधानसभा चुनाव में भी रोजगार पर खूब चर्चा हुई थी। तब यह विपक्ष नहीं, सत्तारूढ़ एनडीए का मुद्दा बना था। उस चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बता रहे थे-हम ऐसा राज्य बनाएंगे, जहां दूसरे राज्य के लोग रोजी के लिए आएं। बिहार के विषय विशेषज्ञ युवा अपनी मर्जी से दूसरे राज्यों या देशों में नौकरी के लिए जा सकते हैं। लेकिन, राज्य का कोई नागरिक मजबूरी में मजदूरी करने के लिए राज्य से बाहर नहीं जाएगा। बेशक इन वर्षों में रोजगार और स्वरोजगार के उपाय पहले की तुलना में बेहतर हुए हैं। फिर भी बढ़ती आबादी की जरूरतों को ये पूरा करने के लिए ये काफी नहीं हैं। लिहाजा, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सोमवार की अपनी पहली चुनावी वर्चुअल रैली में रोजगार के सवाल पर जनता को भरोसा दिया कि अगली बार मौका मिला तो यह विषय उनकी प्राथमिकता सूची में शामिल होगा।
क्यों बना यह मुद्दा
आम दिनों की बात होती तो रोजगार चुनावी मुद्दा नहीं बनता। लेकिन, कोरोना संकट के दौरान राज्य के बाहर काम करने वाले श्रमिकों की पीड़ा गांव-घर तक पहुंच गई। कई पीढिय़ों से दूसरे राज्यों में काम करने वाले श्रमिक कोरोना के दौर में अपने घर लौटे। शुरुआती दिनों में इनकी घर वापसी काफी दुखद रही। बाद में राज्य सरकार ने इनकी घर वापसी को कष्ट रहित बनाने का प्रयास किया। रेल और सरकारी बसों से ये घर लौटे। क्वारंटाइन की अवधि खत्म होने के बाद भी जीवन की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के उपाय किए गए। राशन के अलावा नकदी का भी प्रबंध किया गया। लेकिन, रोजगार का स्थायी हल नहीं निकल पाया। बड़े पैमाने पर तुरंत रोजगार सृजन करना किसी सरकार के बूते की बात नहीं है। यहां भी कोशिश हुई। सरकार की योजनाओं के जरिए 16 करोड़ से अधिक श्रम दिवस सृजित किए गए। इससे रोजगार की मांग की पूरी तरह पूर्ति नहीं हो पाई। राज्य सरकार के लिए भी इतने बड़े पैमाने पर रोजगार की मांग अप्रत्याशित थी।
दस लाख को सरकारी नौकरी
सत्तारूढ़ दल का संकट यह भी है कि मुख्य विपक्षी राजद ने सरकार गठन के अगले दिन से 10 लाख लोगों को सरकारी नौकरी देने की प्रक्रिया शुरू करने का आश्वासन दिया है। राजद की ओर से जारी एक पोर्टल पर बेरोजगारों ने एक तरह से अपनी अर्जी भेजनी शुरू कर दी है। यह चुनावी वादा ही है। कोई सरकार इतने लोगों को तुरंत सरकारी नौकरी नहीं दे सकती है। लेकिन, चुनाव के लिए ऐसे ही मुद्दे लोकप्रिय होते हैं। नतीजा यह है कि एनडीए की ओर से भी अधिक से अधिक रोजगार अथवा स्वरोजगार उपलब्ध कराने के आश्वासन दिए जा रहे हैं। यानी विपक्ष के मुददा को सत्तारूढ़ दल ने भी गंभीरता से लिया है।
मजबूत आधारभूत संरचना
सड़क, बिजली, श्रमिक, बाजार आदि की उपलब्धता के बावजूद रोजगार के अवसर जरूरत के मुताबिक उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। राज्य सरकार ने कई बार कोशिश की। निवेशकों का सम्मेलन बुलाया। खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार निवेशकों के सम्मेलन में गए। सबसे बड़ी कमी जमीन की बताई जा रही है। हालांकि पुरानी और बंद पड़ी चीनी मिलों की जमीन पर उद्योग लगाने की मुहिम शुरू हुई थी। उम्मीद की जा सकती है कि नई सरकार के गठन के बाद इसे गति मिलेगी।
नजर डालते हैं नेताओं के रोजगार संबंधी चुनावी बोल पर
' हमलोग रोजगार देने की दिशा में काम कर रहे हैं। ताकि लोगों की आय बढ़े। लोगों को बड़े पैमाने पर इस स्तर का प्रशिक्षण दिया जाएगा कि काम न मिलने की मजबूरी में उन्हें बाहर न जाना पड़े। उद्यम के लिए युवाओं को सात प्रतिशत ब्याज पर कर्ज उपलब्ध कराएंगे।'
-नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री, बिहार
' अगर जनता अगले पांच साल के लिए मौका देगी तो अब सूबे में उद्योग-धंधों का जाल बिछाएंगे। इससे लोगों को नौकरी मिलेगी। एनडीए सरकार ने राज्य में उद्योग के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण कर दिया है। इससे उद्योग स्थापित करने में सुविधा होगी।'
- सुशील कुमार मोदी, उप मुख्यमंत्री, बिहार।
' रोजगार इस चुनाव का प्रमुख मुददा है। राज्य सरकार युवाओं को नौकरियां देना ही नहीं चाहती है। पुराने उद्योग बंद हो गए। नए उद्योग स्थापित नहीं हुए। सरकारी विभागों में लाखों पद वर्षों से रिक्त हैं। हम सत्ता में आए तो सबसे पहले सरकारी नौकरियों के रिक्त पदों को भरेंगे। राज्य में डोमिसाइल नीति लागू करेंगे।'
-तेजस्वी यादव, नेता, प्रतिपक्ष, बिहार विधानसभा।