Bihar Eleciton Seat Sharing News: महागठबंधन में मर्जी चली राजद की, सलट गया विवाद
Bihar Eleciton Seat Sharing कयास लगाया जा रहा था कि महागठबंधन के दलों के बीच सीटों के बंटवारा को लेकर इतना जबरदस्त घमासान होगा कि सभी दल अलग-थलग पड़ जाएंगे। अब राय बन रही कि राजद ने बड़ा दिल दिखाया और मामूली बहस के बाद सीटों का मसला सलट गया
पटना, अरुण अशेष । Bihar Eleciton Seat Sharing: उम्मीद के विपरीत राजद ने अपने पुराने साथियों के साथ सीट बंटवारे का मुद्दा निपटा लिया है। सवाल तेजस्वी की अनुभवहीनता, चुप्पी और लालू प्रसाद की गैरमौजूदगी को लेकर खूब उठे, लेकिन उतना हंगामा नहीं हुआ, जितने की चर्चा थी। ऐसा भी नहीं है कि राजद पीछे हट गया। ऐसा भी नहीं है कि किसी सहयोगी दल को दबा दिया गया। तेजस्वी ने अपनी मर्जी चलाई और सबको मना भी लिया। दूसरे दलों की तरह अड़ियल रुख अपानाए बिना राजद ने बड़ा दिल दिखाया और मामूली बहस के बाद सीटों का मसला सलट गया। हां, रालोसपा और हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा उससे जरूर अलग हो गए। ये दोनों महागठबंधन के नए पार्टनर थे। रालोसपा लोकसभा चुनाव के समय महागठबंधन से जुड़ी। हिन्दुस्तानी अवामी मोर्चा का जुड़ाव थोड़ा पहले हुए था। पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने विधानसभा उप चुनाव में राजद उम्मीदवारों की मदद की थी। बदले में उनके पुत्र को राजद ने विधान परिषद में भेज दिया। हिसाब बराबर हो गया। मांझी फिर से एनडीए के साथ हो गए। बता दें कि आज 3 अक्टूबर की शाम को महागठबंधन प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर सीटों के बंटवारे का एलान करेगी।
वामदल शुरुआती दिनों के साथी
रालोसपा और हम की तुलना में राजद ने उन दलों पर भरोसा किया, जिससे उसकी पुरानी दोस्ती है। मसलन, कांग्रेस और वाम दल। वाम दलों में भाकपा और माकपा उसके शुरुआती दिनों के साथी हैं। इन दोनों दलों ने 1990 मेंं लालू प्रसाद की सरकार का समर्थन किया था। 1995 में साथ चुनाव लड़े। लोकसभा और विधानसभा चुनावों में वाम दल और लालू प्रसाद की दोस्ती से शानदार नतीजे आए। भाकपा माले की पहली बार राजद से चुनावी दोस्ती 2019 के लोकसभा चुनाव में हुई। राजद ने आरा की सीट माले को दे दी। इससे पहले के चुनावों में राजद और भाकपा माले के बीच मुकाबला ही होता रहा। सिवान में तो माले की सीधी लड़ाई राजद के साथ ही रहती थी। लेकिन, वह मो. शहाबुददीन का दौर था। अब वह दौर नहीं रहा तो माले को भी राजद के साथ दोस्ती में एतराज नहीं है।
चुप्पी का निकला अच्छा परिणाम
प्रारंभ में तेजस्वी यादव पर यह आरोप लगा कि वह सहयोगी दलों से बातचीत नहीं करते हैं। इसे अहंकार माना गया, जबकि तेजस्वी रणनीति के तहत चुप रहे। अधिक बोलने से भ्रम फैलता है, जिसे लोजपा के संदर्भ में एनडीए के दो पुराने पार्टनर भाजपा और जदयू झेल रहे हैं। चुप्पी की अवधि में तेजस्वी ने किसी सहयोगी दल की मांग पर प्रतिक्रिया नहीं दी। इसबीच उनकी टीम विधानसभा की एक-एक सीट का ब्यौरा जुटाने में जुटी रही। क्षेत्र के अतीत, बीते चुनाव में जदयू की मदद से हुई जीत और अगले चुनाव की संभावनाओं के आकलन के बाद राजद ने एक सूची बनाई, जिसमें किस सीट पर कौन दल जीत सकता है, उसका हिसाब किया गया। उसी आधार पर सहयोगी दलों के बीच सीटों का बंटवारा हो रहा है।
लालू का न्यूनतम हस्तक्षेप
राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद ने लोकसभा चुनाव की तरह इसबार हस्तक्षेप नहीं किया। बंटवारा पर अंतिम निर्णय लेने से पहले लालू प्रसाद और तेजस्वी यादव के बीच आमने-सामने की बातचीत भी नहीं हुई। सबकुछ मोबाइल पर निबट गया। इस दौरान बड़ी संख्या में उम्मीदवार रांची के दौरे पर गए। लालू प्रसाद से मुलाकात की। उन्होंने सबको यही कहा कि पटना में तेजस्वी से मिलें। हां, कुछ पुराने समाजवादियों के स्वजनों के लिए उन्होंने टिकट की पैरवी की। लेकिन, उस पर भी जमीनी आकलन के आधार पर ही निर्णय लिया गया।
उपहार में उम्मीदवार भी
शुरू में एक फाॅर्मूला यह बना कि राजद और कांग्रेस 2015 में मिली सीटों को आधार मानकर सीटों का बंटवारा कर ले। राजद 101 पर लड़ा था। वह डेढ़ सौ सीट ले। कांग्रेस 41 सीटों पर लड़ी थी। वह 58-60 सीट ले। बाकी सीटें सहयोगी दलों को दे दी जाएगी। मोटे तौर पर बंटवारा का यही आधार कायम रहा। अब अगर कांग्रेस को अधिक सीटें दी जा रही हैं तो उपहार के तौर पर उसे कुछ उम्मीदवार भी दे दिए जाएंगे। ऐसा उपहार विकासशील इंसान पार्टी को भी मिल सकता है। वाम दलों को उपहार में राजद ने उम्मीदवार नहीं दिए। कुछ सीटों पर अच्छे उम्मीदवारों के नाम सुझाए। वाम दल उस पर अमल कर रहे हैं।