Bihar Chunav 2020: राजद के पोस्टर में न सही समर्थकों के दिल और विरोधियों के दिमाग में चस्पा हैं लालू
Bihar Chunav 2020 राजद के चुनावी पोस्टर से लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को रणनीति के तहत हटाया गया। यह एनडीए को यह कहने का अवसर दे रहा था कि देखिए एक सजायाफ्ता की तस्वीर लगाकर वोट मांगा जा रहा है।
पटना [ अरुण अशेष ]। Bihar Chunav 2020 यह शुरुआत थी। राजद के पोस्टर से लालू प्रसाद गायब हुए। सबसे अधिक चिंता विरोधियों को हुई। सत्तारूढ़ दल के नेताओं ने तेजस्वी यादव पर आरोप लगाया-वे अपने पिता की तस्वीर से परहेज कर रहे हैं। राजद ने ध्यान नहीं दिया। विरोधियों की चिंता वाजिब थी। 1990 के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव हो रहा है, जिसमें लालू प्रसाद सशरीर हाजिर नहीं हैं। सच यह भी है कि 1995 के सभी विधानसभा चुनाव लालू प्रसाद को केंद्र में रखकर ही लड़े गए। इन चुनावों में दो ही मुददा रहा है-लालू लाओ, लालू हटाओ। संयोग देखिए कि लालू खुद इस चुनाव से हटे हुए हैं। फिर भी सत्ता की लड़ाई में शामिल हरेक दल उनकी चर्चा कर रहा है। इस चुनाव का छुपा मुददा भी वही है-लालू राज लाओ। लालू राज को मत आने दो।
रणनीति के तहत पोस्टर से हटाए गए
राजद के चुनावी पोस्टर से लालू प्रसाद और राबड़ी देवी को रणनीति के तहत हटाया गया। यह एनडीए को यह कहने का अवसर दे रहा था कि देखिए, एक सजायाफ्ता की तस्वीर लगाकर वोट मांगा जा रहा है। यह उन वोटरों को भी नाराज कर सकता था, जो धुर लालू विरोधी हैं। फिर भी तेजस्वी के प्रति अच्छी राय रखते हैं। इससे लालू प्रसाद के नाम पर विरोधी वोटों को गोलबंद करने के इच्छुक दलों को निराशा भी हाथ लगी। यही वजह है कि पोस्टर से फोटो हटाने पर एनडीए के सबसे बड़े घटक दल भाजपा की तीखी प्रतिक्रिया आई। भाजपा के प्रदेश स्तरीय सभी नेताओं ने टिप्पणी की। भाव यही था कि तेजस्वी यादव अपने पिता का सम्मान नहीं कर रहे हैं। राजद की ओर से इन प्रतिक्रियाओं की नोटिस नहीं ली गई।
भाषण में भी कम चर्चा
पोस्टर से फोटो हटाकर ही तेजस्वी इत्मीनान नहीं हुए। अपने भाषण में भी लालू प्रसाद की चर्चा हिसाब से ही कर रहे हैं। सामाजिक न्याय की चर्चा वे अतीत की उपलब्धि की तरह करते हैं। बिना समय गंवाए वे रोजगार और आर्थिक न्याय पर चले आते हैं। उनकी सभाओं में युवाओं की भीड़ जुटती है, जिन्हें अतीत की घटनाओं से अधिक मतलब नहीं है। बेशक भीड़ तेजस्वी के साथ-साथ लालू प्रसाद का जिंदाबाद भी करती है। तेजस्वी ने एक सभा में सामाजिक न्याय के दौर में हुए परिवर्तन की चर्चा कर दी थी। बड़ी प्रतिक्रिया हुई। तेजस्वी ने फिर उस प्रसंग को दोहराया नहीं।
नाम के बदले प्रतीक का सहारा
एनडीए के बड़े नेता अपनी सभाओं में लालू प्रसाद या पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी का नाम सीधे नहीं लेते हैं। मगर, प्रतीकों के सहारे बता देते हैं कि वे उन्हीं दोनों को याद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लालू-राबड़ी के शासन को जंगलराज कहते नहीं थकते हैं। यह भी याद दिलाते हैं कि उस दौर में लोग शाम ढलने के बाद घरों से नहीं निकलते थे। वे बजुर्गों से अपने बच्चों को उस दौर के बारे में बताने के लिए भी कहते हैं। मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार सभी सभाओं में पति (लालू प्रसाद) पच्ी (राबड़ी देवी) की खूब चर्चा करते हैं। दूसरे और तीसरे चरण की सभाओं में तो वे इस विषय पर सबसे अधिक समय दे रहे हैं। बेगूसराय की एक चुनावी सभा में शोर मचाते युवाओं से कहा कि जंगलराज में क्या होता है, अपने पिता और दादा से पूछ लें।