Bihar Assembly Elections 2020: कोसी और सीमांचल के चुनावी दंगल में डेढ़ दशक से अब धनकुबेर लगा रहे दाव
कोसी और सीमाचंल में 2005 के बाद एक नए ट्रेंड में यहां सियायत कैद होती गई। खासकर 2010 के चुनाव से धनकुबेरों की दिलचस्पी चुनावी दंगल में बढऩे लगी और पर्दे के पीछे से बड़े संवेदक के साथ पूंजीपति इसमें दाव लगाने लगे।
कटिहार [प्रकाश वत्स]। नेपाल व बांग्लादेश की सरहद से लगे सीमांचल के इलाकों में काल क्रमानुसार सियायत का रंग बदलता रहा है। 1990 के बाद राजनीति में बाहुबलियों की जोरदार इंट्री ने यहां की सियासी फिजा को लगभग 20 वर्षों तक पूरी तरह बदरंग रखा। 2005 के बाद एक नए ट्रेंड में यहां सियायत कैद होती गई। खासकर 2010 के चुनाव से धनकुबेरों की दिलचस्पी चुनावी दंगल में बढऩे लगी और पर्दे के पीछे से बड़े संवेदक के साथ पूंजीपति इसमें दाव लगाने लगे। इस चुनाव में भी धनकुबेरों का एक बड़ा वर्ग पर्दे के पीछे से इस दंगल में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
दल की बजाय प्रत्याशियों पर लगता है दाव
इस ट्रेंड की एक बड़ी खासियत है कि इसमें दाव लगाने वालों को किसी दल से कोई लेना-देना नहीं होता है। वे चयनित प्रत्याशियों के लिए दाव लगाते हैं। टिकट लेने से लेकर चुनाव खर्च तक में उनका निवेश होता है और फिर संबंधित प्रत्याशी के चुनाव जीतने पर वे इसका इस्तेमाल अपने फायदे के लिए करते हैं। सीमांचल में दो दर्जन से अधिक ऐसे उद्योगपति, बड़े व्यवसायी व संवेदक भी हैं, जो एक साथ कई प्रत्याशी पर अपना दाव लगाते हैं। टिकट मैनेज करने से लेकर चुनाव प्रचार-प्रसार तक के लिए आवश्यक संसाधन उन्हें मुहैया कराया जाता है।
अलग-अलग गुटों में बंटा है संवेदकों व पूंजीपतियों की टोली
सीमांचल के पूर्णिया, कटिहार, अररिया व किशनगंज में ऐसे लोगों की टोली अलग-अलग गुटों में बंटा हुआ है। जिला की सीमा से पार संवेदकों व पूंजीपतियों का यह गुट बना हुआ है। सुनियोजित तरीके से यह पूरा खेल खेला जाता है।
योजनाओं के चयन से लेकर काम के बंटवारे में होता है खेल
यूं तो बड़े संवेदकों की इसमें दिलचस्पी कुछ ज्यादा होती है। इसके अलावा बालू-गिट्टी के बड़े कारोबारी से लेकर भवन निर्माण से लेकर भवनों के साज-सज्जा के बड़े सप्लायर सहित अन्य लोग भी इसमें दाव लगाते हैं। चुनाव जीतने के बाद ऐसे प्रत्याशियों के योजना चयन में भी इन लोगों का सीधा हस्तक्षेप होता है। सामानों की आपूर्ति से लेकर अन्य मामलों में वे अपनी रोटी सेंकते हैं। यही नहीं अवैध कारोबार में ऐसे जनप्रतिनिधि बाद में उनके लिए छत्रछाया बनते हैं और शासन-प्रशासन व कारोबार के बीच भी दीवार बनकर खड़े रहते हैं।