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Bihar Election 2020: उम्मीदवार और क्षेत्र बदलने से नहीं बन रही बात, जनता मांग रही हर कदम पर हिसाब

Bihar Assembly Election 2020 राजनीतिक दलों ने उम्मीदवार बनाने के पहले तमाम एहतियात बरते लेकिन विधायकों के प्रति नाराजगी का असर कम नहीं हुआ। चुनाव क्षेत्र में भेजे गए विधायकों को भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

By Amit AlokEdited By: Published: Tue, 20 Oct 2020 06:14 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 02:36 PM (IST)
Bihar Election 2020: उम्मीदवार और क्षेत्र बदलने से नहीं बन रही बात, जनता मांग रही हर कदम पर हिसाब
बिहार विधानसभा चुनाव में वोट मांगते नेताजी। प्रमीकात्‍मक कार्टून।

पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Election 2020: सभी दलों ने अपने विधायकों को फिर से उम्मीदवार बनाने के पहले खूब छानबीन की। निजी एजेंसियों से सर्वे कराए। उन विधायकों को टिकट देने से परहेज किया, जिनकी छवि जनता के बीच अच्छी नहीं पाई गई। यह सब इसलिए किया गया, ताकि विधायकों के प्रति जनता की नाराजगी का असर पार्टी की संभावना पर न पड़े। लेकिन इस सावधानी का खास असर चुनाव क्षेत्रों में नजर नहीं आ रहा है। पाक-साफ छवि और कामकाज की बेहतर उपलब्धियों के नाम पर क्षेत्र में भेजे गए विभिन्न दलों के विधायकों को भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है।

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मंत्री जी को लोगों ने घेरा, लौटाया

राज्य सरकार के एक कैबिनेट मंत्री को समस्तीपुर जिले के उनके विधानसभा क्षेत्र में लोगों ने घेर लिया। वे समर्थकों के साथ बाइक पर सवार होकर जनसंपर्क के लिए निकले थे। अनसूचित जाति के वोटरों ने उन्हें आगे बढ़ने से रोक दिया। माहौल तनावपूर्ण था। अगर मंत्री के समर्थक आगे बढ़ने की कोशिश करते तो झड़प हो सकती थी। मंत्री ने समझदारी दिखाई। मुस्कुरा कर लौट चले। यह मामूली बात नहीं है। विरोध करने वाले लोग पिछले चुनाव तक मंत्री के घोर समर्थक थे। उनका आरोप था: वादा करने के बाद भी उनके टोले की सड़क नहीं बनी। 2015 के  चुनाव में मंत्री की जीत 37686 वोटों के अंतर से हुई थी। विधानसभा चुनाव के लिए यह बड़ा फासला है।

कुछ विधायकों के बदल दिए क्षेत्र

दलों ने जनता की नाराजगी के बावजूद सामाजिक समीकरण को अपने पक्ष में करने के लिए कुछ विधायकों को बेटिकट नहीं किया। उनके क्षेत्र बदल दिए। बात फिर भी नहीं बनी। सरकार के एक मंत्री क्षेत्र बदल कर मैदान में गए। वे दक्षिण बिहार के एक विधानसभा क्षेत्र से उम्मीदवार बनाए गए। बदले हुए क्षेत्र में भी उनका पुरजोर विरोध हुआ। विरोध का स्तर ऐसा कि मंत्री गाड़ी से नहीं निकल पाए। हालांक, इस तरह का विरोध अक्सर अपने लोग करते हैं, जिनके बारे में दलों का भरोसा रहता है कि वे वोट के दिन तक ठीक हो जाएंगे। यह आकलन हमेशा सही नहीं होता है। अधिक मामलों में नाराजगी देर तक कायम रहती है। विरोध में वोट देकर ही खत्म होती है।

नए से मांग रहे भूतपूर्व का हिसाब

बक्सर जिले की एक विधानसभा सीट पर दल ने सीटिंग विधायक को बदल दिया। उनकी जगह नया उम्मीदवार दिया। वोटर उसी दल के नए उम्मीदवार से पहले वाले विधायक के कामकाज का हिसाब मांग रहे हैं। यह आश्चर्यजनक है कि अधिक शिकायत गांव की सड़कों के निर्माण से जुड़ी होती हैं। राज्य सरकार सबसे अधिक सड़क निर्माण का ही दावा कर ही है।

अजीबोगरीब कारण बता रहे ग्रामीण

मधुबनी जिला के एक विधानसभा क्षेत्र के कुछ वोटर वर्तमान के अलावा पूर्व विधायक, जो अभी उम्मीदवार बने हैं, उनसे भी नाराज हैं। नाराजगी का कारण एक गांव का तालाब है। दोनों ने अपने चुनावों के दौरान तालाब पर पक्का घाट बनाने का आश्वासन दिया था। पहला आश्वासन 2010 के विधानसभा चुनाव में मिला था। घाट नहीं बन पाया। 2015 के विधानसभा चुनाव में वे विधायक हार गए। उस चुनाव में जीते नए विधायक ने भी आश्वासन दिया। बावजूद इसके घाट नहीं बन पाया। गांव की जनता दोनों उम्मीदवारों को सबक सिखाने के मूड में है।

वोट मांगने गए विधायक को लौटाया

सोन नदी पर पुल निर्माण के लिए संघर्ष से मशहूर हुए अरवल जिले के एक विधायक को ग्रामीणों ने गांव में घूमकर वोट मांगने से मना कर दिया। उनके प्रवेश करते ही युवा एकजुट होकर विरोध करने लगे। अहिंसक प्रवृति के इस विधायक ने युवकों की भावना का सम्मान किया। बिना वोट मांगे वापस चले आए। इनके मामले में भी आंतरिक सर्वे की यही सलाह थी कि बदल देना ही अच्छा होगा। सामाजिक समीकरण न बिगड़े, इसके लिए उम्मीदवार बना दिया गया।


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